
लंदन। मानव सभ्यता (Human Civilization) को आगे बढ़ाने और बेहतर बनाने के लिए मेडीकल जगत (Medical world) में नित नए प्रयोग होते रहते हैं। इसी क्रम में ब्रिटेन (Britain) ने भी आज से दस साल पहले माइटोकॉन्ड्रियल दान (Mitochondrial donation) को वैध बना दिया था। इस नियम के बनने के सालों बाद इसके नतीजे सामने आ रहे हैं। इस उच्च स्तरीय तकनीक के जरिए मानवीय डीएनए में आई खराबी को आगे बढ़ने से रोकना सबसे बड़ी चुनौती थी। अब डॉक्टरों ने इस शोध के नतीजे प्रकाशित किए हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक इस तीन माता-पिता वाले शिशु की इस तकनीक से अभी तक आठ बच्चे पैदा किए जा चुके हैं, खुशी की बात यह है कि यह आठों ही अभी स्वस्थ हैं।
न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रजनन उपचार पर प्रकाशित दो शोध पत्रों के मुताबिक सरकार से अनुमति मिलने के बाद इसका प्रयोग 22 महिलाओं के डीएनए के लिए किया गया। रिपोर्ट के मुताबिक यह वह महिलाएं थी जिनका जीन परेशानी खड़ा करने वाला था। यानी इनके जीन को लेकर अगर बच्चा पैदा होता तो वह गंभीर अनुवांशिक विकार यार जन्मजात विकलांगता के साथ पैदा होता। इन महिलाओं के जीन में लेह सिंड्रोम भी उपस्थित था।
रिपोर्ट के मुताबिक न्यूकैसल टीम द्वारा विकसित की गई इस तकनीक में तीन लोगों के डीएनए का उपयोग करके एक भ्रूण का निर्माण किया गया है। इसमें होने वाले माता पिता के न्यूक्लियर डीएनए को लिया गया और डोनर एक से स्वस्थ माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए को लिया गया।
आपको बता दें कि एक बच्चे के माइटोकॉन्ड्रिया के निर्माण के लिए उसकी माता ही जिम्मेदार होती है। ऐसे में अगर माता किसी बीमारी से ग्रसित है तो बच्चा भी उसी परेशानी के साथ पैदा हो सकता है। ऐसी स्थिति में यहां पर किसी दूसरी महिला के अंड़े से माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए लिया गया। इसके बाद इन तीनों को निषेचित करके भ्रूण का निर्माण किया गया।
2015 में जब ब्रिटेन की संसद से इस माइटोकॉन्ड्रियल दान के बारे में बहस की जा रही थी। तब इसकी प्रक्रिया और प्रभावशीलता के बारे में कई सवाल उठे थे। हालांकि बाद में संसद से इसे मंजूरी मिल गई थी। हालांकि अब जबकि रिपोर्ट सामने आ गई है तो इसके बाद भी ब्रिटिश मीडिया में इसे लेकर सवाल उठ रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल यही है कि अगर यह तकनीक सफल हो गई थी तो अभी तक इसके बारे में सार्वजनिक रूप से क्यों नहीं बताया गया, जबकि इसमें बहुत बड़ा वित्तीय निवेश किया गया था।
मीडिया के मुताबिक आखिर कार इस तकनीक को अभी तक दुनिया से क्यों छिपाया गया। अगर इसमें पारदर्शिता दिखाई जाती तो यह कई शोध टीमों के लिए महत्वपूर्ण साबित होती।
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