विदेश

बेल्ट एंड रोड के जरिए सैन्य इस्तेमाल का नेटवर्क बना रहा चीन, ड्रैगन के ख़तरनाक इरादों का खुलासा

अमेरिकी थिंक टैंक की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन अपनी अंतरमहाद्वीपीय बुनियादी ढांचे की रणनीति में बेल्ट एन्ड रोड इनीशिएटिव की कुछ परियोजनाओं को संभावित रूप से हथियारों से लैस कर सकता है. इसके पीछे की वज़ह इन परियोजनाओं की वाणिज्यिक और सैन्य उपयोग के लिए दोहरी क्षमता है.

साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की ख़बर के मुताबिक एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट (एएसपीआई) द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन ने श्रीलंका, पाकिस्तान, म्यांमार और कंबोडिया सहित देशों में “रणनीतिक स्ट्रॉन्ग साइट्स” नाम से बहुउद्देशीय बुनियादी ढांचे के निर्माण का एक मॉडल बनाया है. यह तर्क दिया गया कि चीन इसके ज़रिए “व्यापार, प्रौद्योगिकी, वित्त और रणनीतिक गठजोड़ का एक केंद्रित पारिस्थितिकी तंत्र बनाना चाहता है, जो इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सैन्य उपयोग का मार्ग प्रशस्त कर सके.

ये है चीन के असल मंसूबे

चीन के वाणिज्यिक बंदरगाह के जरिए राष्ट्रीय रक्षा आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता है. चीन स्वदेशी बाइडू उपग्रह नेटवर्क का इस्तेमाल निर्यात, बेल्ट और सड़क देशों के साथ सैन्य अभ्यास और हथियारों की बिक्री में भी तेज़ी लाने के लिए कर सकता है. थिंक टैंक ने निष्कर्ष निकाला कि चीन के बुनियादी ढांचे के नेटवर्क को अभी तक पूर्ण विकसित विदेशी सैन्य ठिकानों की जरूरत नहीं है, वह वैकल्पिक बुनियादी ढांचा कार्यक्रम के ज़रिए क्षेत्रीय भागीदारों के साथ काम करके अमेरिका का मुकाबला करना चाहता है. क्या चीन प्रभावी तौर पर बेल्ट एन्ड रोड को हथियारों से लैस करेगा ये बीजिंग की पसंद पर निर्भर करेगा.

चीन की आर्मी के मुताबिक काम कर सकते हैं ये

ये रिपोर्ट अमेरिका के पूर्वी एशियाई और प्रशांत मामलों के पूर्व सहायक सचिव और अब न्यूयॉर्क थिंक टैंक के उपाध्यक्ष, डैनियल रसेल द्वारा सह-लिखित है. इसमें बंदरगाहों का एक नेटवर्क- पाकिस्तान के ग्वादर, कंबोडिया के कोह बंदरगाह सहित रीम नेवल बेस, श्रीलंका के हंबनटोटा, और म्यांमार के क्युक्फ्यू को मिलाकर बनाने का जिक्र किया गया है. ये बंदरगाह चीन द्वारा फंड की गई साइट्स के रूप में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के मुताबिक काम कर सकते हैं.

हिंद महासागर में हस्तक्षेप बढ़ाने में मददगार

हालांकि ये पोर्ट पारंपरिक सैन्य ठिकानों के तौर पर डिजाइन नहीं किए गए हैं, बल्कि हाइब्रिड वाणिज्यिक और सैन्य रसद मुहैया कराने के लिए प्वॉइन्ट्स के रूप में बनाए गए हैं. ये सैन्य ठिकाने बनने के बजाय, सैनिकों को तैनात करने और वास्तविक युद्ध अभियानों का संचालन करने के लिए सुविधाएं, आपूर्ति के मुख्य केंद्र के रूप में चीन के काम के हैं. हिंद महासागर में चीन के हस्तक्षेप को बढ़ाने में ये महत्वपूर्ण केंद्र साबित होंगे.

सहयोगियों की पश्चिमी देशों से निर्भरता घटा रहा चीन

रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि इन परियोजनाओं से न केवल इसमें शामिल देशों की चीन पर आर्थिक निर्भरता बढ़ेगी, जबकि पश्चिमी देशों के नेटवर्क और प्रौद्दोगिकी पर निर्भरता भी घटेगी. रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान बाइडू सेटेलाइट की सैन्य कार्यक्षमता का इस्तेमाल करने वाला पहला देश बना. चीन बेल्ट एंड रोड परियोजना के देशों को 5G नेटवर्क के ज़रिए बाइडू से जोड़ रहा है. हालांकि रिपोर्ट में ये भी इशारा किया गया है कि चीन पर कोरोनावायरस का बुरा प्रभाव पड़ा जिस वज़ह से इन महत्वकांक्षी योजनाओं को आगे बढ़ाने में कमी आई.

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