विदेश

ताइवान को चारों ओर से घेर रहा चीन, कर रहा नेवी के जहाज, एयरक्राफ्ट और सैनिकों की ड्रिल


नई दिल्ली. चीन (china) और ताइवान (taiwan) के बीच स्वामित्व और वजूद (ownership and existence) की जंग बदस्तूर जारी है. इस बीच चीन ने ताइवान के आसपास दो दिनों की ड्रिल (drilling) शुरू कर दी है. इसे चीन ने ‘पनिशमेंट ड्रिल’ (punishment drill) का नाम दिया है चीन का कहना है कि उसने अलगाववादी गतिविधियों के जवाब में ताइवान स्ट्रेट और ताइवान के नियंत्रण वाले द्वीपों के आसपास ये ड्रिल शुरू की है. इसे अलगाववादी ताकतों को करारा जवाब देने के इरादे से शुरू किया गया है. बता दें कि चीन ने ये ड्रिल ऐसे समय पर की है, जब ताइवान के नए राष्ट्रपति लाई चिंग ते ने शपथ ली है. लाई चिंग को चीन का कट्टर विरोधी माना जाता है.


चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की ईस्टर्न थिएटर कमान ने कहा कि उन्होंने सुबह 7.45 बजे ताइवान के आसपास संयुक्त मिलिट्री ड्रिल शुरू की है, जिसमें सेना, नौसेना और वायुसेना के साथ रॉकेट फोर्स भी शामिल हैं. इस ड्रिल को ताइवान स्ट्रेट, उत्तर, दक्षिण और पूर्वी ताइवान और उसके आसपास के ताइवान के नियंत्रण वाले द्वीपों किन्मेन, मात्सू, वुकिउ और डोंगयिन में शुरू किया गया.

चीन की मिलिट्री ड्रिल पर ताइवान का जवाब

चीन की इस मिलिट्री ड्रिल की ताइवान के रक्षा मंत्रालय ने निंदा करते हुए कहा है कि उन्होंने ताइवान स्ट्रेट के आसपास अपनी सेनाओं को भेज दिया है ताकि अपने क्षेत्र की रक्षा की जा सके. इस ड्रिल से न सिर्फ ताइवान स्ट्रेट की शांति और स्थिरता बाधित होगी बल्कि इससे चीन की सैन्यवादी मानसिकता का भी पता चलता है.

चीन को ताइवान के नए राष्ट्रपति क्यों पसंद नहीं?

चीन, ताइवान पर अपना दावा करता है. चीन ने ताइवान के नए राष्ट्रपति लाई चिंग के सोमवार के भाषण की निंदा की है. इस भाषण में ताइवान के राष्ट्रपति ने चीन से उनके राष्ट्र को धमकाना बंद करने की दो टूक बात कही थी. उन्होंने कहा था कि केवल ताइवान के लोग ही अपने भविष्य पर फैसला ले सकते हैं. ताइवान के नए राष्ट्रपति लगातार चीन के साथ बातचीत की पेशकश कर चुके हैं लेकिन चीन हर बार उसे ठुकरा देता है.

ताइवान को क्यों डराता है चीन?

ताइवान चीन के दक्षिण पूर्वी तट से 100 मील यानी लगभग 160 किलोमीटर दूर स्थित छोटा सा द्वीप है. इस पर कभी चीन का ही कब्जा हुआ करता था. उस समय इसे फरमोसा द्वीप कहा जाता था. 1949 से चीन और ताइवान अलग-अलग है. इससे पहले ताइवान और चीन एक ही हुआ करते थे. लेकिन कम्युनिस्टों की सरकार आने के बाद कॉमिंगतांग की पार्टी के लोग भागकर ताइवान आ गए.

1949 में चीन का नाम ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ पड़ा और ताइवान का ‘रिपब्लिक ऑफ चाइना’. दोनों देश एक-दूसरे को मान्यता नहीं देते. लेकिन, चीन दावा करता है कि ताइवान भी उसका ही हिस्सा है. चीन और ताइवान में अक्सर जंग जैसे हालात बन जाते हैं.

चीन, ताइवान को कब्जाने की कोशिश करता है. हालांकि, जानकारों का मानना है कि चीन भले ही जंग की कितनी ही धमकी क्यों न दे, लेकिन उसके लिए ताइवान पर हमला कर पाना उतना आसान नहीं होगा. इसकी तीन बड़ी वजह है. पहली तो ये कि ताइवान चारों ओर से समुद्र से घिरा है. वहां के मौसम का अंदाजा लगाना भी मुश्किल है. वहां के पहाड़ और समुद्री तट उबड़-खाबड़ हैं. लिहाजा उसके इलाके में घुस पाना आसान बात नहीं है.

दूसरी वजह ये है कि ताइवान की सेना भले ही चीन की सेना के आगे बौनी नजर आती हो, लेकिन उसके पास एडवांस्ड हथियार हैं. 2018 में ताइवान ने बताया था कि उसके पास मोबाइल मिसाइल सिस्टम भी है. इसकी मदद से उसकी मिसाइलें बिना किसी को पता चले लक्ष्य तक पहुंच सकती हैं. साथ ही जमीन से हवा में मार करने वालीं मिसाइलें और एंटी-एयरक्राफ्ट गन चीन को नुकसान पहुंचा सकतीं हैं.

तीसरी वजह अमेरिका का साथ होना है. अमेरिका हमेशा ताइवान को अपना अच्छा दोस्त बताता है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने खुलेआम कहा था कि अगर चीन हमला करता है, तो अमेरिका ताइवान को सैन्य मदद जरूर देगा.

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