
नई दिल्ली । चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बी.आर. गवई (CJI BR Gavai) के करीब छह महीने के कार्यकाल के दौरान देश के अलग-अलग हाईकोर्ट (High Court) में अनुसूचित जाति (एससी) वर्ग के दस, अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) के 11 जज की नियुक्ति की गई। जस्टिस गवई ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के तीन सदस्यों वाले कोलेजियम को लीड किया। कोलेजियम ने अलग-अलग हाईकोर्ट के जज के तौर पर नियुक्ति के लिए सरकार को 129 नामों की सिफारिश की, जिनमें से 93 नामों को मंजूरी दी गई।
उनके कार्यकाल के दौरान पांच जज जस्टिस एन.वी. अंजारिया, जस्टिस विजय बिश्नोई, जस्टिस ए.एस. चंदुरकर, जस्टिस आलोक अराधे और जस्टिस विपुल मनुभाई पंचोली को भी सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त किया गया। सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर 14 मई से अपलोड किए गए जज की नियुक्ति की जानकारी के मुताबिक, जब जस्टिस गवई भारत के चीफ जस्टिस बने, तो सरकार ने हाईकोर्ट के लिए जिन 93 नामों को मंजूरी दी, उनमें 13 अल्पसंख्यक समुदाय के जज और 15 महिला जज शामिल थीं।
जस्टिस सूर्यकांत बोले- खंडपीठ बनाना बड़ा मुद्दा
एक कार्यक्रम के दौरान देश के अगले प्रधान न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत ने मेरठ में हाईकोर्ट की खंडपीठ बनाने के मुद्दे पर कहा कि यह बड़ा मुद्दा है। उन्होंने साफ किया कि यह मामला सीधे सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है और इसमें कई संस्थागत हितधारक शामिल हैं। जस्टिस ने कहा कि उत्तर प्रदेश, जो एक बहुत बड़ा राज्य है, वहां हाईकोर्ट के किसी भी नई पीठ के लिए एक पूरी और अच्छी तरह से सोची-समझी विचार की जरूरत होगी। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि राष्ट्रीय महत्व से जुड़े मामलों की सुनवाई कभी की की जा सकता है।
उन्होंने कहा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि मामले में कोई बड़ा कद वाला वकील पेश हो रहा है या जूनियर वकील। उन्होंने इस बात को सिरे से नकार दिया कि आम वकील के पेश होने पर मामले को सुना नहीं जाता है या फिर हाईकोर्ट भेज दिया जाता है। दिल्ली के प्रदूषण का जिक्र करते हुए कहा कि यह चिंताजनक है, लेकिन मैं सुबह की सैर करना बंद नहीं करता। जस्टिस ने कहा कि सोशल मीडिया पर होने वाले टीका-टिप्पणी का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
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