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कांग्रेस ने आखिर क्यों ठुकराया राम मंदिर का न्‍योता, क्‍या इसके पीछे की वजह?

नई दिल्‍ली (New Delhi) । कांग्रेस (Congress) ने करीब तीन सप्ताह तक सियासी नफा-नुकसान का आकलन करने के बाद राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम (Ram Mandir Pran Pratistha Program) के निमंत्रण को ससम्मान अस्वीकार (reject invitation) किया। पार्टी ने इस कार्यक्रम को राजनीतिक करार दिया है। पार्टी ने इस निर्णय से साफ कर दिया है कि राजनीतिक लाभ-हानि के मुकाबले उसके लिए विचारधारा ज्यादा अहम है। इससे पार्टी ने अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि को धार दी है।

राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर कांग्रेस के अंदर काफी विचार-विमर्श हुआ। इस मुद्दे पर पार्टी के अंदर दो राय थी। एक तबका चाहता था कि पार्टी के प्रतिनिधि के तौर पर कोई नेता कार्यक्रम में शामिल हों, जबकि दूसरा पक्ष चाहता था कि यह राजनीतिक कार्यक्रम है, इसलिए पार्टी को इससे दूर रहना चाहिए। आखिरकार पार्टी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निमंत्रण को ससम्मान अस्वीकार करने का सार्वजनिक ऐलान कर दिया।


कांग्रेस ने प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम से दूरी बनाकर अपने धर्मनिरपेक्ष सिद्धांत को मजबूती देने की कोशिश की है। पार्टी निमंत्रण स्वीकार कर भाजपा के एजेंडे में नहीं फंसना चाहती थी, क्योंकि कार्यक्रम में शामिल होने के बावजूद भाजपा से सीधा मुकाबले वाले राज्यों में उसे कोई राजनीतिक लाभ नहीं मिलता। वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव में दोनों पार्टियों के बीच 186 सीट पर सीधा मुकाबला था, इनमें से 170 सीट पर भाजपा ने शानदार जीत दर्ज की थी।

दक्षिण को ध्यान में रखा
इसके साथ कांग्रेस को डर था कि राम मंदिर के शुभारंभ में जाने से दक्षिण में गलत संदेश जा सकता है। दक्षिण के नेता पहले ही पार्टी पर कार्यक्रम में न जाने का दबाव बना रहे थे। कर्नाटक और तेलंगाना में पार्टी को बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है। पिछले चुनाव में पार्टी को दक्षिण से 28 सीट मिली थी। केरल में पार्टी ने 20 में 15 सीट पर जीत दर्ज की थी। ऐसे में पार्टी ने दक्षिण को ध्यान में रखते हुए निमंत्रण को अस्वीकार करने का फैसला किया।

इंडिया गठबंधन के साथ एकजुटता का प्रयास
कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन के घटकदलों के साथ एकजुटता दिखाने का भी प्रयास किया है। क्योंकि, गठबंधन के कई दलों के नेताओं को न्योता नहीं मिला है। कई दल अयोध्या जाने से इनकार कर चुके हैं। पार्टी प्राण प्रतिष्ठा को एक राजनीतिक कार्यक्रम मानती है, यही वजह है कि रणनीतिकार काफी सोच-विचार के बाद इस निर्णय पर पहुंचे कि भाजपा के एजेंडे में फंसने के बजाय विचारधारा को मजबूती देना ज्यादा अहम और आने वाले वक्त में फायदेमंद साबित होगा।

कट्टर हिंदुत्व की राजनीति से दूरी
पार्टी ने इस निर्णय के जरिये भाजपा की कट्टर हिंदुत्व की राजनीति से खुद को अलग रखने का भी संकेत दिया है। दरअसल, मध्य प्रदेश में कमलनाथ और छत्तीसगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर चलने की कोशिश की थी। हालांकि, इसका लाभ नहीं मिला। कमलनाथ ने बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र शास्त्री की कथा भी कराई थी पर विधानसभा में मतदाताओं ने कांग्रेस की इस कोशिश को ठुकरा दिया। इसलिए धर्म को व्यक्तिगत विषय बताते हुए पार्टी ने राजनीतिक दल के तौर पर खुद को अलग कर लिया है।

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