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वन्दे मातरम् को लेकर विवाद, नेहरू के फैसले और भाजपा-कांग्रेस बहस ने बढ़ाई राजनीतिक गर्मी

November 08, 2025

नई दिल्‍ली । ‘वन्दे मातरम्’ (Vande Mataram) भारत का राष्ट्रगीत इस समय पर पक्ष और विपक्ष की राजनीति का केंद्र बना हुआ है। एक तरफ महाराष्ट्र (Maharashtra) की भाजपा नीत एनडीए (NDA) की सरकार है, जो स्कूल में पूरा वन्दे मातरम् का कार्यक्रम करवा रही है और इसके साथ ही पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू (Former Prime Minister Nehru) के ऊपर इसमें कांट-छांट करवाने का आरोप लगा रही है। भाजपा का कहना है कि 1937 में कांग्रेस ने अपनी तुष्टिकरण की राजनीति की वजह से इस गीत का अपमान किया और इसके कुछ हिस्से को ही राष्ट्रगीत के रूप में अपनाया। वहीं, दूसरी और कांग्रेस पार्टी है, जो इस गीत पर अपना अधिकार बताते हुए कह रही है कि आजादी की लड़ाई में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने ही इस गीत को अपना हथियार बनाया था। राष्ट्रगीत पर उठे मुद्दे के कई और पहलू भी हैं, जैसे की समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आजमी, जिन्होंने धार्मिक कारणों का हवाला देते हुए वंदे मातरम गाने से इनकार कर दिया है।

पक्ष और विपक्ष की इस राजनीति के बीच आइए जानते हैं कि आखिरकार इस विवाद की जड़ में क्या है। आखिर क्यों और कब पंडित नेहरू ने बंकिम चंद्र चटोपाध्याय द्वारा लिखे गए इस गीत के कुछ हिस्से को हटवा दिया था।


क्या है पूरा विवाद?
19वीं सदी में भारत के महान विचारक बंगाली लेखक बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय 1875 में इस गीत की रचना की थी। छह पैराग्राफ वाली इस कविता को उन्होंने पहली बार अपने उपन्यास आनंदमठ में प्रकाशित किया था। चट्टोपाध्याय ने अपनी इस कविता में ‘मां’ के रौद्र और कोमल रूप का वर्णन किया था। शुरुआती पैराग्राफ, जो आजकल स्कूलों में गाया जाता है, उसमें किसी हिंदू देवी का जिक्र नहीं है। लेकिन अंतिम पैराग्राफ में उन्होंने देवी दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती की जिक्र करते हुए उन्हें दैवीय संरक्षक का स्थान दिया था।

बाद में, यह गीत स्वतंत्रता सेनानियों के लिए अंग्रेजों के खिलाफ एक हथियार बन गया। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही उठा कि क्या मुसलमान अपनी धार्मिक वजहों से इसे स्वीकार करेंगे। इसकी वजह से साल 1937 में पंडित नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस ने फैजपुर में निर्णय लिया कि किसी भी कार्यक्रम में वंदे मातरम के केवल दो पैराग्राफ ही गाए जाएंगे। उन्होंने अपने इस फैसले को लेकर तर्क दिया कि चूंकि आखिरी तीन पैराग्राफ में हिंदू देवियों का जिक्र है इसलिए मुस्लिम समुदाय इसे स्वीकार नहीं कर पाएंगे।

कांग्रेस के इस फैसले के बाद वंदे मातरम के दो पैराग्राफ को ही गाना शुरू कर दिया गया। आजादी के बाद भी इसे दो पैराग्राफ के रूप में ही स्वीकार किया गया।

वर्तमान विवाद
इस गीत के रचे जाने के 150 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। पीएम मोदी इस कार्यक्रम में शामिल हुए और उन्होंने पूरा गीत पढ़ा। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस पार्टी पर आरोप लगाया कि पंडित नेहरू की पार्टी ने इस गीत को खंड-खंड कर दिया है, चीर फाड़ दिया है। इसके बाद भाजपा ने कांग्रेस नेता और पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा नेताजी सुभाष चंद्र बोस को लिखे एक पत्र को भी सार्वजनिक किया, जिसमें उन्होंने सुझाव दिया था कि वंदे मातरम की वजह से मुसलमान असहज हो सकते हैं।

इसी मुद्दे को लेकर भाजपा लगातार कांग्रेस पर निशाना साध रही है। भाजपा की तरफ से जारी हमलों का कांग्रेस पार्टी ने भी बखूबी जवाब दिया है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने मोर्चा संभाला। उन्होंने कहा,”यह विडंबना ही है कि आज जो राष्ट्रवाद के ठेकेदार बनकर घूम रहे हैं। उन लोगों ने कभी इसका सम्मान नहीं किया था। आरएसएस और बीजेपी ने कभी भी वन्दे मातरम् नहीं गाया था।”

इस सब के बीच इस विवाद को बढ़ाने वाली सबसे बड़ी टिप्पणी महाराष्ट्र में समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आजमी की तरफ से आई। उन्होंने कहा कि एक धार्मिक मुसलमान कभी भी इसे स्वीकार नहीं कर सकता। इतना ही नहीं उन्होंने भाजपा को लेकर कहा कि यह भारत जलाओ पार्टी है।

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