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दलित वोट और 35 सीटों पर नजर, PM मोदी सागर में संत रविदास मंदिर की आधारशिला रखेंगे

भोपाल: मध्य प्रदेश में ज्यों-ज्यों चुनाव नजदीक आ रहे हैं, त्यों-त्यों राजनीतिक दलों के केंद्रीय नेतृत्व के दौरे भी उतने ही बढ़ते जा रहे हैं. इसी कड़ी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शनिवार को मध्य प्रदेश के दौरे पर हैं. प्रधानमंत्री मोदी यहां सागर जिले में संत रविदास मंदिर का भूमिपूजन करेंगे. लगभग 100 करोड़ रुपए की लागत से बन रहे भक्तिकाल के दलित संत रविदास के मंदिर के सामाजिक के साथ-साथ राजनीतिक मायने भी हैं.

पहले समझते हैं इसका सामाजिक पहलू और इसके लिए बीजेपी द्वारा चलाया गया राज्यव्यापी अभियान. बीजेपी ने संत रविदास के मंदिर के लिए सूबे के पांच अलग-अलग हिस्सों से संत रविदास समरसता यात्रा का आगाज किया, जिसका समापन आज सागर में हो रहा है. जुलाई के आखिर में मध्य प्रदेश के प्रभारी और केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने बालाघाट, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सिंगरौली, नरेंद्र सिंह तोमर ने श्योपुर, कैलाश विजयवर्गीय ने धार और एससी-एसटी मोर्चा के राष्ट्रीय प्रमुख लाल सिंह आर्य ने नीमच से यात्रा को हरी झंडी दिखाई थी.

45 जिलों से गुजरी समरसता यात्रा, जुड़े 25 लाख लोग
इस यात्रा के जरिए बीजेपी के कार्यकर्ता प्रदेश के 20 हजार से ज्यादा गांवों से मिट्टी और 313 नदियों से जल लेकर सागर पहुंच रहे हैं, जिसका इस्तेमाल मंदिर निर्माण में किया जाना है. ये यात्रा प्रदेश के 45 जिलों से होकर गुजरी. इस दौरान कई उप यात्राएं और कलश यात्राएं भी इससे जुड़ीं. बीजेपी का दावा है कि जिन 5 रूट से ये यात्राएं गुजरी, वहां 352 जन संवाद कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं लगभग 25 लाख लोग इस दौरान उनसे जुड़े.

बीजेपी का कहना है कि वो इन यात्राओं और संत रविदास के जरिए समाज में समरसता का संदेश देना चाहते हैं, लेकिन बात सिर्फ इतनी ही नहीं है. दरअसल मध्य प्रदेश में चुनावी माहौल है, ऐसे में हर घटना और कार्यक्रम के राजनीतिक मायने भी हैं. सूबे में 16 से 17 फीसदी आबादी अनुसूचित जाति यानी दलित समाज की है. मध्य प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से 35 सीटें दलित समाज के लिए आरक्षित हैं और कई सीटों पर इस समुदाय का जीत-हार तय करने में अहम रोल रहता है.

इतने बड़े वोट बैंक को सूबे की सत्ता में बैठने का सपना रखने वाला दल हरगिज भी छोड़ना नहीं चाहेगा. बीजेपी भी इसी जुगत में है. पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 35 सीटों में से 18 हासिल हुई थीं. जबकि 2014 के बाद से बीजेपी के चुनावी सक्सेस के ग्राफ को देखा जाए तो ये समुदाय लगातार उससे जुड़ रहा है. अब बीजेपी की तैयारी है कि उन 18 सीटों को तो सुरक्षित रखा ही जाए, साथ ही साथ नई सीटों को जोड़कर जीत को सुनिश्चित कर लिया जाए.


इसी रणनीति के तहत बीजेपी ने संत रविदास समरसता रैली निकाली और इसका समापन भी एक भव्य कार्यक्रम के तौर पर करने की ठानी, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हिस्सा लें. इससे पहले सूबे के एक और बड़े वोट बैंक आदिवासी समाज को लुभाने के लिए भी बीजेपी ऐसा ही कार्यक्रम कर चुकी है. बीजेपी ने वीरांगना रानी दुर्गावती गौरव यात्रा के नाम से भी ऐसा ही कार्यक्रम किया था. दुर्गावती गौंड जनजाति से आती थीं और बीजेपी का वो कदम आदिवासी समुदाय को लुभाने के लिए ही था.

जिसको मिला दलित-आदिवासी का साथ, सत्ता उसकी
मध्य प्रदेश की आबादी में 22 फीसदी आदिवासी समाज है. इस समाज के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं. दलित और आदिवासी समुदाय की सीटों को मिला लिया जाए तो आंकड़ा 82 का हो जाता है. मध्य प्रदेश में कहा जाता है कि जिन्होंने इन सीटों में बहुमत पा लिया या जिसने दलित-आदिवासी समुदाय को लुभा लिया, समझो उसने सत्ता का टिकट पा लिया. आदिवासियों को लुभाने के बाद बीजेपी की तैयारी संत रविदास के जरिए दलितों को लुभाने की है.

इसके लिए पार्टी ने सागर को चुना है. दरअसल सागर मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड का मुख्यालय माना जाता है. बीजेपी की नजर सागर के जरिए बुंदेलखंड से जुड़े ग्वालियर-चंबल और विंध्य क्षेत्र पर भी है. इन इलाकों में पिछले चुनाव में बीजेपी को काफी नुकसान हुआ था. हालांकि ऐसा नहीं है कि सिर्फ बीजेपी की ही नजर इस वर्ग या क्षेत्र पर है. कांग्रेस पार्टी भी दलित वर्ग को खुद से जोड़ने की कवायद में लगी है.

कांग्रेस ने दलित समाज को लुभाने के लिए अपने सबसे बड़े दलित चेहरे और पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को आगे किया है. सागर में ही कांग्रेस पार्टी ने प्रधानमंत्री मोदी की सभा के अगले ही दिन खरगे की सभा का कार्यक्रम रखा था. हालांकि ऐन मौके पर इस सभा को आगे के लिए टाल दिया गया है.

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