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उप सेना प्रमुख बोले-सेना के पास स्वदेशी उपकरणों की कमी, आयात मजबूरी

October 11, 2020

नई दिल्ली । ​उप सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल एसके सैनी ने कहा है कि पूर्वी लद्दाख में चीन से मोर्चा लेने के लिए ​हमारे सैनिकों की तैनाती उन सुपर हाई एल्टीट्यूड क्षेत्रों में की गई है जहां का तापमान – 50 डिग्री सेल्सियस छूता है। ​​भारतीय सेना आधुनिक हथियारों, गोला-बारूद, सुरक्षा, किटिंग और कपड़ों के मामले में काफी विकसित हुई है। हालांकि अभी भी नवाचार की बहुत गुंजाइश है​​। नाइट-विजन चश्मे, लड़ाकू हेलमेट, बुलेटप्रूफ जैकेट, हल्के पोर्टेबल संचार सेट और कई अन्य चीजों पर ध्यान देने की आवश्यकता है​​​।​ ​वास्तव में सभी प्रकार के मौसम और सभी क्षेत्रों में ऑपरेशन को अंजाम देने वाले सैनिकों के पूरी तरह से नेटवर्क निकायों पर काम करना चाहिए।​

उन्होंने जवानों के लिए ​ठंड के मौसम के लिहाज से उपकरण बनाने में ‘स्वदेशी समाधानों की कमी’ को उजागर ​करते हुए कहा कि ​इसमें सैनिकों के लिए हेलमेट, बॉडी आर्मर और ​गर्म कपड़े भी आते हैं। ​​​​फोर्स प्रोटेक्शन का मतलब सैनिक की शारीरिक सुरक्षा से लेकर महत्वपूर्ण और संवेदनशील सैन्य संपत्तियों की सुरक्षा और व्यापक खतरों के खिलाफ बुनियादी ​ढांचे की सुरक्षा से है। ​​

​उन्होंने दोहराया कि युद्ध का चरित्र तेजी से बदल रहा है। नवीनतम तकनीकों द्वारा संचालित घातकता और तीव्रता, दोस्तों और दुश्मनों, लड़ाकों और नागरिकों के बीच की ​रेखाएं धुंधली पड़ रही हैं, इसलिए सेनाओं के लिए खुद को सुरक्षित रखने और संचालन में सफल होने के लिए सुरक्षा को नए सिरे से देखने की जरूरत है।​​ सैनी ने कहा​ कि ​​​ठंड से बचने के लिए सैनिकों को दिए जाने वाले विशेष कपड़ों और उपकरणों की कमी को देखते हुए हम अभी भी स्वदेशी समाधानों की कमी के कारण ​ठंड से बचाव के सामानों का आयात कर रहे हैं। ​उन्होंने यह भी कहा कि ‘आत्मनिर्भर भारत’ ​के दृष्टिकोण से सेना की जरूरतों को पूरा करने के लिए सहयोगी प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।

​​उप सेना प्रमुख​ सैनी ने इस बात पर चिंता जताई कि ​इंप्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइसेज टेररिस्ट और एंटी नेशनल एलिमेंट्स के लिए ​मुफीद हथियार बनते जा रहे हैं। रोबोटिक्स, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और बिग डेटा एनालिसिस का संयोजन ​इसका ​एक संभावित ​उपाय हो सकता है​​।​​​​​ अन्य खतरों के बीच ड्रोन और यूएवी अपने अभिनव रोजगार और विनाशकारी क्षमता में खड़े हैं। उनकी कम लागत, बहु-उपयोग और घने प्रसार को देखते हुए आने वाले वर्षों में यह खतरा कई गुना बढ़ जाएगा। इस संदर्भ में​ ​हमें अभी ​से ​योजना बनाने की आवश्यकता है।

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