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ट्रंप का ‘गोल्डन डोम’ सपना अधूरा, चीन ने पहले ही तैनात कर दिया अपना मिसाइल डिफेंस नेटवर्क

October 22, 2025

नई दिल्‍ली । अमेरिका (America) महज सपने बुन रहा था, लेकिन चीन (China) ने उसे हकीकत का जामा पहना दिया। यूं कहें तो पूरी दुनिया ने एक ऐसी अभूतपूर्व शक्ति परिवर्तन का साक्ष्य देखा, जिसकी कोई कल्पना भी न कर सकता। दशकों से अमेरिका यह सोच रहा था कि वह पृथ्वी को मिसाइल रक्षा (missile defense) के एक नए युग में ले जाएगा। मानवता को तबाही से बचाने वाला एक अंतरिक्ष-आधारित किलेबंदी तैयार करेगा। लेकिन वाशिंगटन अभी-अभी योजनाएं गढ़ ही रहा था कि बीजिंग (Beijing) ने इसे साकार कर दिखाया। और दुनिया को स्पष्ट संदेश दे दिया कि तय कर लो, सुपरपावर कौन है?

दरअसल चीन ने ‘बिग डेटा प्लेटफॉर्म’ नामक एक वास्तविक, कार्यशील वैश्विक मिसाइल रक्षा नेटवर्क का प्रोटोटाइप विकसित कर लिया है। पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने किसी अनुमति या पूर्णता के इंतजार के बिना इसे सीधे तैनात कर दिया। अब इस प्रोटोटाइप के सक्रिय होते ही एक चमत्कारिक परिवर्तन हो चुका है। जहां अमेरिका के पास केवल एक अवधारणा है, वहीं चीन के पास ठोस हकीकत।


अमेरिका ने अपने इस दृष्टिकोण को ‘गोल्डन डोम’ नाम दिया था। एक ग्रहीय सुरक्षा कवच, जो अंतरिक्ष-आधारित और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) से संचालित हो, तथा पृथ्वी के किसी भी कोने से प्रक्षेपित किसी भी मिसाइल का पता लगाकर उसे नष्ट करने में सक्षम हो। 2025 में डोनाल्ड ट्रंप द्वारा घोषित यह प्रणाली वैश्विक सुरक्षा में क्रांतिकारी बदलाव का वादा कर रही थी। लेकिन जब पेंटागन बजट और डेटा प्रवाह पर बहसों में उलझा था, चीन के इंजीनियर मैदान में कूद पड़े थे।

चीन के प्रमुख रक्षा अनुसंधान संस्थान, नानजिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स टेक्नोलॉजी में ली जुदोंग की टीम के अनुसार, यह सफलता महज मिसाइलों या उपग्रहों में नहीं, बल्कि डेटा प्रसंस्करण की क्रांति में छिपी है। उनका सिस्टम पृथ्वी के किसी भी भाग से एक साथ चीन पर दागी गईं 1000 मिसाइलों को ट्रैक कर सकता है। अंतरिक्ष, समुद्र, वायु और भूमि पर फैले सेंसरों के विशाल जाल के सहारे, यह वास्तविक समय में खतरों को संग्रहित, विश्लेषित और प्राथमिकता निर्धारित करता है।

हर प्रक्षेप पथ, हर वारहेड, हर छलावे की पहचान होती है, उसे सूचीबद्ध किया जाता है और प्रभाव से पहले ही केंद्रीय कमांड को सूचना भेजी जाती है। पीएलए की यह प्रणाली केवल रडार या उपग्रहों पर निर्भर नहीं है; यह विभिन्न आपूर्तिकर्ताओं से, अलग-अलग समयों में और विविध सैन्य मंचों से प्राप्त डेटा को एकीकृत करती है।

उधर, प्रशांत महासागर के उस पार अमेरिकी गोल्डन डोम अभी भी एक सपना मात्र है, जो आंतरिक विवादों में फंसा पड़ा है। इसकी अनुमानित लागत 140 अरब पाउंड से लेकर खरबों पाउंड तक बताई जा रही है। जुलाई में अमेरिकी स्पेस फोर्स के जनरल माइकल गुएटलिन ने कबूल किया था कि किसी को, यहां तक कि उन्हें भी ‘गोल्डन डोम’ के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है।

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