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जाति प्रथा के विरोधी थे डॉ. भीमराव आम्बेडकर

– रमेश सर्राफ धमोरा

भारतीय संविधान के रचयिता डॉ. भीमराव आम्बेडकर का सपना था कि भारत जाति-मुक्त हो, औद्योगिक राष्ट्र बने, सदैव लोकतांत्रिक बना रहे। लोग आम्बेडकर को एक दलित नेता के रूप में जानते हैं। जबकि उन्होंने बचपन से ही जाति प्रथा का खुलकर विरोध किया था। उन्होंने जातिवाद से मुक्त आर्थिक दृष्टि से सुदृढ़ भारत का सपना देखा था। मगर देश की गन्दी राजनीति ने उन्हें सर्वसमाज के नेता के बजाय दलित समाज के नेता के रूप में स्थापित कर दिया। डॉ.आम्बेडकर का एक और सपना था कि दलित धनवान बनें। वे हमेशा नौकरी मांगने वाले ही न बने रहें अपितु नौकरी देने वाले भी बनें।

बाबा साहब का मानना था कि वर्गहीन समाज गढ़ने से पहले समाज को जाति विहीन करना होगा। आज महिलाओं को अधिकार दिलाने के लिए हमारे पास जो भी संवैधानिक सुरक्षाकवच, कानूनी प्रावधान और संस्थागत उपाय मौजूद हैं, इसका श्रेय किसी एक मनुष्य को जाता है तो वे हैं- डॉ. भीमराव आम्बेडकर। भारतीय संदर्भ में जब भी समाज में व्याप्त जाति, वर्ग और लिंग के स्तर पर व्याप्त असमानताओं और उनमें सुधार के मुद्दों पर चिंतन हो, डॉ. आंबेडकर के विचारों और दृष्टिकोण को शामिल किए बिना बात पूरी नहीं हो सकती।

हर वर्ष 14 अप्रैल को बाबासाहेब डॉ. भीमराव आम्बेडकर की जयन्ती मनायी जाती है। बाबासाहेब की जयन्ती पर लोगों को संकल्प लेना चाहिये कि हम सब सच्चे मन से उनके बताये मार्ग का अनुशरण करेंगे। उनके बनाये संविधान का पालन करेंगे। ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जिससे देश के किसी कानून का उल्लंघन होता हो। चूंकि बाबासाहेब हमेशा जाति प्रथा, ऊंच-नीच के विरोधी थे इसलिए उनकी जयन्ती पर उन्हें याद करने का सबसे अच्छा तरीका है उनके सिद्धांतों को अपने जीवन में अपनायें।

बाबासाहेब भीमराव आम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के मऊ के एक गरीब परिवार में हुआ था। वे भीमराव रामजी मालोजी सकपाल और भीमाबाई की 14 वीं संतान थे। उनका परिवार मराठी था जो महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में स्थित अम्बावडे नगर से सम्बंधित था। उनके बचपन का नाम रामजी सकपाल था। एक अस्पृश्य परिवार में जन्म लेने के कारण उनको बचपन कष्टों में बिताना पड़ा था।

भारतीय संदर्भों में देखा जाए तो आम्बेडकर संभवतः पहले अध्येता रहे हैं, जिन्होंने जातीय संरचना में महिलाओं की स्थिति को समझने की कोशिश की थी। उनके संपूर्ण विचार मंथन के दृष्टिकोण में सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा महिला सशक्तिकरण था। आम्बेडकर यह बात समझते थे कि स्त्रियों की स्थिति सिर्फ ऊपर से उपदेश देकर नहीं सुधरने वाली, उसके लिए कानूनी व्यवस्था करनी होगी। हिंदू कोड बिल महिला सशक्तिकरण का असली आविष्कार है। इसी कारण आंबेडकर हिंदू कोड बिल लेकर आये थे। हिंदू कोड बिल भारतीय महिलाओं के लिए सभी मर्जों की दवा थी। पर अफसोस यह बिल संसद में पारित नहीं हो पाया और इसी कारण आम्बेडकर ने कानून मंत्री पद का इस्तीफा दे दिया था। स्त्री सरोकारों के प्रति डॉ. भीमराव आम्बेडकर का समर्पण किसी जुनून से कम नहीं था।

डॉ. भीमराव आम्बेडकर का मानना था कि भारतीय महिलाओं के पिछड़ेपन की मूल वजह भेदभावपूर्ण सामाजिक व्यवस्था और शिक्षा का अभाव है। शिक्षा में समानता के संदर्भ में आंबेडकर के विचार स्पष्ट थे। उनका मानना था कि यदि हम लड़कों के साथ-साथ लड़कियों की शिक्षा पर ध्यान दिया जाए प्रगति हो सकती है। शिक्षा पर किसी एक ही वर्ग का अधिकार नहीं है। समाज के प्रत्येक वर्ग को शिक्षा का समान अधिकार है। नारी शिक्षा पुरुष शिक्षा से भी अधिक महत्वपूर्ण है। चूंकि पूरी पारिवारिक व्यवस्था की धुरी नारी है, उसे नकारा नहीं जा सकता है। आम्बेडकर के प्रसिद्ध मूलमंत्र की शुरुआत ही ‘शिक्षित करो’ से होती है। इस मूलमंत्र की पालना से आज कितनी ही महिलाएं शिक्षित होकर आत्मनिर्भर बन रही है।

बाबा साहेब आम्बेडकर कुल 64 विषयों में माहिर थे। वे हिन्दी, पाली, संस्कृत, अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, मराठी, पर्शियन और गुजराती जैसे 9 भाषाओं के जानकार थे। इसके अलावा उन्होंने लगभग 21 साल तक विश्व के सभी धर्मों की तुलनात्मक रूप से पढाई की थी। डॉक्टर आम्बेडकर अकेले ऐसे भारतीय हैं जिनकी प्रतिमा लंदन संग्रहालय में कार्ल मार्क्स के साथ लगाई गई है। इतना ही नहीं, उन्हें देश-विदेश में कई प्रतिष्ठित सम्मान भी मिले हैं। डॉ. आंबेडकर के पास कुल 32 डिग्रियां थीं। उनके निजी पुस्तकालय राजगृह में 50 हजार से भी अधिक किताबें थी। यह विश्व का सबसे बड़ा निजी पुस्तकालय था।

जब 15 अगस्त 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस के नेतृत्व वाली नई सरकार बनी तो उसमें डॉ. आम्बेडकर को देश का पहले कानून मंत्री नियुक्त किया गया। 29 अगस्त 1947 को डॉ. आम्बेडकर को स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना के लिए बनी संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष नियुक्त किया गया। 26 नवम्बर 1949 को संविधान सभा ने उनके नेतृत्व में बने संविधान को अपना लिया। अपने काम को पूरा करने के बाद डॉ. आम्बेडकर ने कहा, मैं महसूस करता हूं कि भारत का संविधान साध्य है, लचीला है पर साथ ही यह इतना मजबूत भी है कि देश को शांति और युद्ध दोनों समय जोड़ कर रखने में सक्षम होगा। मैं कह सकता हूं कि अगर कभी कुछ गलत हुआ तो इसका कारण यह नहीं होगा कि हमारा संविधान खराब था बल्कि इसका उपयोग करने वाला मनुष्य गलत था। आम्बेडकर ने 1952 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप मे लोकसभा का चुनाव लड़ा पर हार गये। मार्च 1952 में उन्हें राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया। अपनी मृत्यु तक वे उच्च सदन के सदस्य रहे।

डॉ. आम्बेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में अपने लाखों समर्थकों के साथ सार्वजनिक समारोह में एक बौद्ध भिक्षु से बौद्ध धर्मग्रहण कर लिया। राजनीतिक मुद्दों से परेशान आम्बेडकर का स्वास्थ्य बिगड़ता चला गया। 6 दिसम्बर 1956 को डॉ. आम्बेडकर का दिल्ली स्थित उनके घर में निधन हो गया। 7 दिसम्बर को बम्बई में चौपाटी समुद्र तट पर बौद्ध शैली में उनका अंतिम संस्कार किया गया, जिसमें उनके हजारों समर्थकों, कार्यकर्ताओं और प्रशंसकों ने भाग लिया। 1990 में बाबासाहेब डॉ. आम्बेडकर को भारत रत्न से सम्मानित किया गया। सरकारों की उपेक्षा के चलते बाबा साहेब को भारत रत्न सम्मान बहुत देर से प्रदान किया गया। जिसके वे सबसे पहले हकदार थे।

डॉ. आम्बेडकर के दिल्ली स्थित 26 अलीपुर रोड के उस घर में एक स्मारक स्थापित किया गया है जहां वे सांसद के रूप में रहते थे। देशभर में आम्बेडकर जयन्ती पर सार्वजनिक अवकाश रखा जाता है। अनेकों सार्वजनिक संस्थानों का नाम उनके नाम पर रखा गया है। डॉ. आम्बेडकर का एक बड़ा चित्र संसद भवन में लगाया गया है। हर वर्ष 14 अप्रैल व 6 दिसम्बर को मुम्बई स्थित उनके स्मारक पर काफी संख्या में लोग उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए आते हैं।

(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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