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वैश्विक चुनौतियों का अर्थव्यवस्था पर कम होगा असर, वित्त मंत्रालय ने कहा- गति शक्ति और PLI से मिलेगी मदद


नई दिल्ली। महामारी से उबरकर अर्थव्यवस्था तेज सुधार के रास्ते पर चल पड़ी है। जीएसटी संग्रह के आंकड़े, ई-वे बिल, यूपीआई लेनदेन व समेत अनेक सूचकांकों में तेजी इसके संकेत हैं। वित्त मंत्रालय ने बृहस्पतिवार को मासिक आर्थिक समीक्षा में कहा, गतिशक्ति व उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाओं से वैश्विक चुनौतियों के असर से निपटने में मदद मिलेगी। निवेश को बढ़ावा मिलेगा, जिससे जीडीपी तेजी से आगे बढ़ेगी।

समीक्षा के अनुसार, भू-राजनीतिक संघर्ष, खाद्य पदार्थों, उर्वरक, कच्चे तेल के दाम में तेजी से वैश्विक वृद्धि की संभावनाएं धुंधली हुई हैं। भारत पर भी असर हो सकता है। हालांकि, यह इस पर निर्भर करेगा कि वित्त वर्ष में ऊर्जा और खाद्य बाजारों में तेजी कब तक बनी रहती है। साथ ही हमारी अर्थव्यवस्था प्रभाव को कम करने के लिए कितनी मजबूत है। इन झटकों से वास्तविक वृद्धि, महंगाई पर असर नहीं होगा। श्रम बल की भागीदारी में सुधार, बेरोजगारी दर में गिरावट और गरीबों को मदद देने की सरकार की प्रतिबद्धता से आगे वृद्धि के अधिक समावेशी रहने की संभावना है।

जीएसटी संग्रह : मार्च में सरकार को जीएसटी से रिकॉर्ड 1.42 करोड़ रुपये की कमाई हुई। इस लिहाज से 2021-22 भी ऐतिहासिक रहा। इस दौरान जीएसटी वसूली 14.83 लाख करोड़ रुपये रही। मासिक सर्वे में कहा गया है कि मार्च में जीएसटी संग्रह 2021 के समान महीने से 14.7 फीसदी और महामारी पूर्व स्तर से 45.6 फीसदी ज्यादा रहा। सरकार का कहना है कि अनुपालन को आसान बनाने, उल्टा शुल्क ढांचे में सुधार जैसे सुधारवादी कदमों से जीएसटी संग्रह में तेजी आई है।

ई-वे बिल में तेजी: 2021-22 के दौरान सालाना आधार पर 25.3 फीसदी ज्यादा यानी 77.3 करोड़ ई-वे बिल जेनरेट हुआ। मूल्य के लिहाज से यह आंकड़ा 232.5 लाख करोड़ रुपये रहा, जो सालाना आधार पर 35 फीसदी ज्यादा है।


बिजली खपत बढ़ी : महामारी की तीसरी लहर का देश की मांग और खपत पर ज्यादा असर नहीं रहा। पिछले वित्त वर्ष में बिजली खपत 2020-21 के मुकाबले 8.1 फीसदी और 2019-20 से 7.2 फीसदी ज्यादा रही। मार्च, 2022 में खपत सालाना आधार पर 5.9 फीसदी ज्यादा रही, जबकि मासिक आधार पर खपत 19 फीसदी बढ़ी है।

यूपीआई लेनदेन : 2021-22 के दौरान मूल्य के लिहाज से यूपीआई से लेनदेन सालाना आधार पर 105.1 फीसदी बढ़कर 84.2 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया। इस दौरान यूपीआई के जरिये 46 अरब लेनदेन हुए, जो सालाना आधार पर मात्रा के लिहाज से 105.8 फीसदी ज्यादा है।

महंगाई: 6.07 फीसदी रही थी खुदरा महंगाई फरवरी में, जो 8 महीने में सबसे ज्यादा

खुदरा महंगाई : 2021-22 की अप्रैल-फरवरी अवधि में खुदरा महंगाई की दर 5.4 फीसदी रही, जो आरबीआई के 6 फीसदी के दायरे में है। 2020-21 की समान अवधि में खुदरा महंगाई 6.3 फीसदी रही थी। इस दौरान खाद्य महंगाई की दर 8 फीसदी से कम होकर 3.4 फीसदी रह गई।

थोक महंगाई: 2020-21 की अप्रैल-फरवरी अवधि में थोक महंगाई की दर 0.7 फीसदी रही थी, जो पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में बढ़कर 12.7 फीसदी पहुंच गई। मासिक सर्वे में कहा गया है कि प्रतिकूल आधार प्रभाव की वजह से थोक महंगाई के मोर्चे पर झटका लगा है।

लक्ष्य से ज्यादा निर्यात
निर्यात : 2021-22 में बढ़कर 417.8 अरब डॉलर का ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच गया। लक्ष्य से ज्यादा निर्यात हुआ। यह आंकड़ा 2020-21 से 43.2 फीसदी और 2019-20 से 33.3 फीसदी ज्यादा है। अकेले मार्च में रिकॉर्ड 40.4 अरब डॉलर का निर्यात किया गया।

आयात : 610.22 अरब डॉलर का आयात हुआ। यह आंकड़ा 2020-21 के मुकाबले 54.7 फीसदी और 2019-20 से 28.6 फीसदी ज्यादा है। मार्च में 59.1 अरब डॉलर का आयात हुआ, जो सालाना आयात बिल का 10 फीसदी है।

ज्यादा कर्ज बांटे : उद्योगों को फरवरी, 2022 में 6.5 फीसदी ज्यादा कर्ज दिया गया। मासिक आधार पर इसमें 2.9 फीसदी तेजी रही। मझोले उद्यमों को 71.4 फीसदी और सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों को 19.9 फीसदी ज्यादा कर्ज बांटे गए। बड़े उद्योगों में 2.4 फीसदी तेजी रही।

आपूर्ति पर असर : रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण आपूर्ति प्रभावित हुई है। इसका सबसे ज्यादा असर खाद्य तेल पर पड़ा है। 2 मार्च 2022 से 31 मार्च के बीच पाम तेल के दाम 20.1 फीसदी बढ़ गए।


आईपीओ : इस साल फरवरी में 9 आईपीओ ने 6,831 करोड़ रुपये जुटाए। इनमें दो बड़ी कंपनियों ने 6,740 करोड़ और सात एसएमई/स्टार्टअप ने 82 करोड़ रुपये जुटाए।

मकान बिक्री में इजाफा : नाइटफ्रैंक के हवाले से समीक्षा में कहा, आठ प्रमुख शहरों में मकानों की बिक्री जनवरी-मार्च, 2022 में बढ़कर चार साल के उच्च स्तर पर पहुंच गई। इस दौरान 78,627 मकान बिके, जो सालाना आधार पर 9 फीसदी ज्यादा है।

कृषि : इस क्षेत्र की विकास दर 2021-22 में 3.3 फीसदी रही। एक अप्रैल, 2022 तक बोई गई फसलों का क्षेत्रफल सालाना आधार पर 7.7 फीसदी बढ़कर 52.9 लाख हेक्टेयर पहुंच गया है। इस दौरान मोटे अनाजों की बुवाई 54.4 फीसदी बढ़ी है।

उर्वरक की उपलब्धता: देश में उर्वरक की पर्याप्त उपलब्धता है। हालांकि, भू-राजनीतिक तनाव का उपलब्धता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। भारत उर्वरक और अन्य कच्चे माल के आयात के लिए रूस पर निर्भर है।

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