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हेट स्पीच न होने पाए, वीडियोग्राफी भी कराई जाए- मुंबई रैली पर SC का निर्देश

मुंबई: मुंबई में हिंदू जन आक्रोश मोर्चा द्वारा आयोजित की जाने वाली रैली के खिलाफ दाखिल अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. वकील निजाम पाशा ने मामले को कोर्ट के सामने उठाते हुए कहा कि मुंबई में जन आक्रोश मोर्चा के द्वारा 5 फरवरी को रैली का आयोजन किया जाना है. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि इस बात का ख्याल रखा जाए कि हेट स्पीच नहीं होगी और कानून का पूरी तरह से पालन किया जाएगा.

सुनवाई के दौरान एसजी तुषार मेहता ने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ ऐसे मामलों पर अगर अदालत सुनवाई करने लगा तो यहां पर याचिकाओं की बाढ़ लग जाएगी. उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी पर प्री-सेंशरशिप नहीं होनी चाहिए. वकील निजाम पाशा ने इस रैली में हेट स्पीच का आरोप लगाते हुए रैली पर रोक लगाने की मांग की है.

महाराष्ट्र सरकार ने क्या कदम उठाएः SC
इस पर जस्टिस केएम जोसेफ ने कहा कि केंद्र को कुछ करना होगा ताकि ऐसा न हो. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से भी पूछा आपकी ओर से क्या प्रिवेंटिव कदम उठाए जा रहे हैं. एसजी मेहता ने कहा कि यदि आप ऐसा कहते हैं तो आपका फैसला पूर्व-निर्णय होगा कि इस मंच का दुरुपयोग किया जा रहा है. हम भी बहुत सी बातें व्यक्त नहीं कर रहे हैं.


सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम एसजी तुषार मेहता की ओर से दिए गए आश्वासन को रिकॉर्ड कर रहे हैं कि सकल हिंदू समाज की ओर से मंजूरी की मांग की गई और मंजूरी दी गई तो यह ख्याल रखा जाए कि पब्लिक ऑर्डर में कोई समस्या नहीं होगी. हेट स्पीच नहीं होगी और कानून का पालन किया जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि वीडियोग्राफी की जा सकती है और उसे अदालत में पेश किया जा सकता है. हम इसे स्वीकार करने के इच्छुक हैं. रैली होने पर एसजी को वीडियोग्राफी पर कोई आपत्ति नहीं है. क्षेत्र के पुलिस निरीक्षक इस पर नजर रखेंगे.

आदेश के बावजूद कार्रवाई नहीं की जा रही: SC
इससे पहले कोर्ट ने कल गुरुवार को सुनवाई के दौरान कहा कि उसके आदेशों के बावजूद नफरत फैलाने वाले हेट स्पीच पर कोई कार्रवाई नहीं कर रहा. इसने कहा कि अगर शीर्ष अदालत को ऐसे बयानों पर रोक लगाने के वास्ते आगे निर्देश देने के लिए कहा गया तो उसे बार-बार शर्मिंदा होना पड़ेगा.

जस्टिस के एम जोसेफ, जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस हृषिकेश रॉय की बेंच ने कहा, “आप हमें एक आदेश लेकर बार-बार शर्मिंदा होने के लिए कहते हैं. हमने बहुत सारे आदेश पारित किए हैं फिर भी कोई कार्रवाई नहीं कर रहा. सुप्रीम कोर्ट को घटना दर घटना के आधार पर आदेश पारित करने के लिए नहीं कहा जाना चाहिए.”

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