
नई दिल्ली । कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने गुरुवार को राज्य में जातीय जनगणना (Caste Census) पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। हालांकि कोर्ट ने जाति आधारित सर्वेक्षण के खिलाफ दायर याचिका (Petition) पर सुनवाई के दौरान राज्य सरकार (State Government) को आंकड़ों की गोपनीयता बनाए रखने का निर्देश दिया है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा है कि सर्वेक्षण स्वैच्छिक होना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश विभु बाखरू और जस्टिस सी एम जोशी की खंडपीठ ने कहा कि उन्हें इस सर्वेक्षण पर रोक लगाने का कोई कारण नहीं दिखता।
पीठ ने कहा, ‘‘हमें चल रहे सर्वेक्षण पर रोक लगाने का कोई कारण नहीं दिखता। हालांकि, हम यह स्पष्ट करते हैं कि एकत्र किए गए आंकड़ों का खुलासा किसी के साथ नहीं किया जाए। कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (केएससीबीसी) यह सुनिश्चित करेगा कि आंकड़े पूरी तरह सुरक्षित और गोपनीय रहें।’’ इस दौरान ने हाईकोर्ट में यह सार्वजनिक अधिसूचना जारी करने का भी निर्देश दिया कि यह सर्वेक्षण स्वैच्छिक है और किसी को भी कोई जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा कि इस बात को गणना करने वालों को भी जनता को बताना होगा।
कोर्ट ने आगे कहा कि यह स्पष्टीकरण सर्वेक्षण प्रक्रिया की शुरुआत में ही दिया जाना चाहिए। उसने कहा कि अधिकारी उन लोगों पर दबाव नहीं डाल सकते जो इसमें भाग लेने से इनकार करते हैं। आयोग को एक दिन के अंदर एक हलफनामा दाखिल करने को भी कहा गया है जिसमें एकत्रित और संग्रहीत आंकड़ों की सुरक्षा के लिए उठाए गए कदमों की रूपरेखा दी गई हो।
जातीय जनगणना का विरोध
इससे पहले कर्नाटक सरकार की ओर से किए जा रहे जातीय जनगणना का विरोध किया जा रहा है और आरोप लगाए जा रहे हैं कि इसका राजनीतिक इस्तेमाल किया जा सकता है। इस सप्ताह की शुरुआत में कर्नाटक सरकार ने सर्वेक्षण का बचाव करते हुए तर्क दिया था कि केंद्र सरकार दोहरा रुख अपना रही है। राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने बताया कि केंद्र ने ही 2021 में 105वां संविधान संशोधन लागू किया था, जिसने राज्यों को पिछड़े वर्गों की पहचान करने और उन्हें सूचीबद्ध करने के अधिकार बहाल कर दिए। सिंघवी ने अदालत से कहा था, “इस संशोधन को लागू करने के बाद, केंद्र अब याचिकाकर्ताओं का समर्थन केवल इसलिए कर रहा है क्योंकि राज्य में एक अलग राजनीतिक दल सत्ता में है।”
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