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उत्तराखंड त्रासदी से डरा हिमाचल, जानें क्‍या है इसके कारण

February 07, 2021

धर्मशाला। उत्तराखंड के चमोली जिले में हिमस्खलन के बाद तबाही मची है। इस हिमस्‍खलन का कारण दो-तीन दिन पूर्व हुई बर्फबारी है। फरवरी में जब भी इस तरह की भारी बर्फबारी होती है तो हिमस्‍खलन की आशंका कई गुना अधिक रहती है। हिमाचल में इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है वर्ष 1984 में लाहुल-स्‍पीति में हुआ हिमस्‍खलन। इस विनाशकारी हिमस्‍खलन ने सैकड़ों लोगों की जान ली थी। यह भी फरवरी में हुआ था। उत्‍तराखंड के चमोली में हिमखंड टूटने के बाद हाइड्रो प्रोजेक्‍ट का बांध तबाह हो गया और बाढ़ जैसे हालात बन गए व कई लोग बह गए। हिमाचल में भी इस तरह का खतरा बन सकता है। पहाड़ी इलाकों में बने कई मेगावाट के हाइड्रो प्रोजेक्‍ट ऐसे हादसों का कारण बन सकते हैं।

 



हिमाचल में भी कई ऐसे स्थान हैं, जहां के लोगों को हिमस्खलन से सचेत रहने की जरूरत है। भू वैज्ञानिकों का मानना है कि हिमाचल के मनाली, किन्नौर, लाहुल-स्‍पीति, कांगड़ा का बड़ा भंगाल, चंबा का कुगती पास व मणिमहेश क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति भी ऐसी है कि वहां भी हिमस्‍खलन को खतरा बना रहता है। इसके अलावा रावी के किनारे बसने वाले लोग व प्रोजेक्टों में काम करने वाले लोगों को ज्यादा खतरा है, क्योंकि भू-विज्ञानियों के अनुसार मणिमहेश दक्षिण दिशा में आता है। इस दिशा में धूप ज्यादा पड़ती है। दक्षिण दिशा में उत्तर के मुकाबले हिमस्खलन का अधिक खतरा होता है।

फरवरी में हिमपात से हिमस्खलन के अधिक खतरे का वैज्ञानिक कारण यह है कि दिसंबर व जनवरी माह में कम तापमान में पड़ी बर्फ जल्‍दी जम जाती है। फरवरी माह में तापमान बढ़ जाता है या कहें तो मौसम गर्म हो जाता है। ऐसे में जैसे ही बर्फबारी शुरू होती है तो पुरानी व ताजा बर्फ के बीच तापमान में अंतर के कारण ऊपरी बर्फ पिघलकर पानी बन जाती है। पुरानी व ताजा बर्फ के बीच इक्कठा हुए पानी से ऊपरी बर्फ फिसलने लगती है, जिसकी चपेट में ठोस हो चुकी पुरानी बर्फ भी आ जाती है और हिमस्खलन का रूप ले लेती है।
भू-गर्भ वैज्ञानिक डॉ. अबरीश महाजन का कहना है फरवरी में होने वाली बर्फबारी से पहाड़ों में इस तरह से हिमस्ख्लन का खतरा शुरू से ही रहता है। ऐसे कई उदाहरण है कि फरवरी में हुई बर्फबारी से हिमस्खलन हुआ हो। हिमाचल में भी कई ऐसे पास हैं, जहां हिमस्खलन हो सकता है। इसे रोकना तो संभव नहीं है, लेकिन ऐसे प्रयास किए जा सकते हैं कि इससे नुकसान कम किया जा सके।

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