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‘उड़ता पंजाब’ के बाद यह नया ट्रेंड कैसा?

– ऋतुपर्ण दवे

पंजाब में दिनदहाड़े लोकप्रिय पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला की हत्या के बाद सुरक्षा के तमाम तरह के दावों की पोल खुल गई है। हालांकि हत्याकांड को आपसी गैंगवार से जोड़कर देखा जा रहा है। बावजूद इसके बड़ा सवाल यह कि ‘उड़ता पंजाब’ क्या हत्यारा पंजाब भी बनने जा रहा है? इस हत्याकांड को कतई साधारण नहीं कहा जा सकता। जिस तरह विदेश और जेल में बैठे गैंगस्टर ताल ठोंककर और फेसबुक पेज पर हत्या की जिम्मेदारी ले रहे हैं, उससे कई तरह के सवाल और बड़ी चुनौतियां खड़ी हो रही हैं। मजबूत साइबर प्रणाली के दावों के बावजूद जेल के अन्दर से ही गैंग ऑपरेट करना शर्मनाक और बड़ा सवाल है। अगर ऐसा है तो कहीं न कहीं यह खुफिया और साइबर तंत्र की बहुत बड़ी नाकामी है। विदेश से धमकी देना या कुबूलनामा थोड़ा समझ भी आता है। लेकिन राजस्थान के अजमेर जेल में बंद गैंगस्टर का नाम जुड़ना बहुत बड़ी चूक, लापरवाही या साजिश या मिलीभगत कुछ भी हो सकती है। यह हैरान और परेशान करता है। ऐसे चलन को रोकना ही होगा। हत्या की खुलेआम जवाबदारी लेना, ताल ठोंकना और सोशल मीडिया पर लिखना अपराधियों के मजबूत होते तंत्र की गवाही दे रहा है।यह राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ खिलवाड़ है?

ऐसे तत्वों की पहचान जरूरी है। हो सकता है कि अपराधी के साथ सरकारी मुलाजिम भी मिले हों जिनके साथ सख्त और वैसी कार्रवाई हो जो कई राज्यों में बुलडोजर के जरिए अंजाम दी जा रही है। इससे अपराधियों के साथ मुलाजिमों में भी डर पैदा होगा। अब वाकई कड़े और फौरन प्रभावी कानूनों की जरूरत है। कानून को चुनौती देना अब अमन पसंद लोगों को भाता नहीं है। लेकिन यह हरकतें रुक नहीं रहीं है जो चिंता बढ़ाती हैं। इस पर पूरी गंभीरता और जिम्मेदारी से सोचने की जरूरत है।आज हम बहुत तेजी से विकसित सूचना तकनीक और साइबर प्रणाली से लैस हो रहे हैं। हर रोज नए से नए संसाधन और तंत्र विकसित हो रहे हैं। ऐसे मजबूत सुरक्षा चक्र के दौर में अपराधियों का जेल में सुरक्षित बैठकर अपनी हरकतों को अंजाम देना बहुत बड़ा सवालिया निशान है। नशे के लिए पहले से ही बदनाम पंजाब अब फिरौती के नए तौर तरीकों को लेकर हर किसी के निशाने पर है। माना कि सरकार नई-नई है। लेकिन चुनौतियां तो पुरानी हैं। ऐसे में एकाएक तमाम लोगों को दी गई सुरक्षा एक झटके में हटा लेना और दूसरे ही दिन हत्या हो जाना भी मुख्यमंत्री के गले की फांस बनेगा।

मूसेवाला समेत 424 लोगों की पुलिस सुरक्षा उनकी हत्या से 24 घंटे पहले ही वापस ली गई थी। अब कहा जा रहा है कि उनको दो कमांडो दिए हुए थे। मूसेवाला की हत्या और बीते दो महीने में दो कबड्डी खिलाड़ियों की हत्या से भी पंजाब दहल उठा है। अंतरराष्ट्रीय कबड्डी खिलाड़ी संदीप सिंह नंगल की 14 मार्च को जालंधर और 5 अप्रैल को पटियाला स्थित यूनिवर्सिटी परिसर के बाहर ढाबे पर दूसरे कबड्डी खिलाड़ी धरमिंदर सिंह की हत्या से भी पंजाब की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठे थे। निश्चित रूप से पंजाब में जो हो रहा है वह सरकार और देश के लिए अच्छा नहीं है। माना कि सरकार की नीयत ठीक है। वह पंजाब के लिए कुछ करना चाहती है। लेकिन पंजाब के अतीत को देखते हुए सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी के मुखिया के उपदेश से हालात नहीं सुधरने वाले। सबसे पहले कठोरतम फैसले लेने होंगे। पंजाब की सुरक्षा व्यवस्था, सियासत और पुराने घटनाक्रमों को देखने के बाद इतना तो समझ आता है कि सबकुछ उतना आसान नहीं है जैसा बताने का प्रयास किया जाता है। निश्चित रूप से प्रदेश की सरकार को केन्द्र के साथ इस मसले पर बहुत ही संजीदगी से मिलकर काम करना होगा और पंजाब में गैंगस्टर वार या फिरौती की घटनाओं के खिलाफ सख्ती से काम करना होगा। कम से कम इतना तो करना ही होगा कि जेल में बैठे किसी आका का नाम दोबारा न आए और जितने भी बड़े और खूंखार अपराधी जेल में हैं उनको लेकर केंद्र के साथ नई समीक्षा की जाए। ऐसे अपराधियों को संरक्षण देने और जेल से गैंग ऑपरेट करने जैसी चुनौतियों से नए साइबर युग में सख्ती से निपटना ही होगा। इसके लिए भले ही नया कानून बने या तुरंत अध्यादेश लाया जाए। ऐसे डराने या गलत संदेश देने वाले सोशल मीडिया अकाउंट को तो फौरन निष्क्रिय किया ही जा सकता है। कम से कम देश में वह भी जेल में बैठे अपराधियों के बारे में ऐसी जानकारियां बेचैन करती हैं।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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