
पटना: बिहार (Bihar) विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) के दूसरे चरण में जब वोटिंग (Voting) के साथ राजनीतिक पारे चढ़े हैं. तो प्रदेश के उत्तर-पूर्वी इलाके सीमांचल का सियासी घाटा-फायदा अब सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं रहा. यहां पर असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस‑ए‑इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के लिए इस क्षेत्र की 24 सीटें निर्णायक बनी हुई हैं. यदि ओवैसी का दांव इस बार सफल नहीं हुआ तो मुस्लिम नेतृत्व-केंद्रित राजनीति को बहुत बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. जानकारों की नजर में सीमांचल में ओवैसी की AIMIM के लिए यह चुनाव एक महत्वपूर्ण मोड़ है. सफलता मिली तो उनकी राष्ट्रीय भूमिका मजबूत होगी और मुस्लिम राजनीति को नई दिशा मिलेगी. लेकिन, असफलता हुई तो यह बिहार की राजनीति में मुस्लिमों (Muslims) की भूमिका को लेकर बड़ा संकेत देगी.
सीमांचल में लगभग 47 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है और 2020 में AIMIM ने इस इलाके की 24 सीटों में से पांच सीटें जीतकर राजनीति का खाका बदल दिया था. अब इस बार AIMIM ने करीब कुल 27 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए हैं, इनमें करीब 15 सीटें सीमांचल की हैं. विरोधी दलों ने इसे पहचान लिया है और हर तरफ मोर्चा बढ़ा दिया है. कांग्रेस-आरजेडी-सपा से लेकर स्थानीय गठजोड़ तक सब ओवैसी की पकड़ को तोड़ने में जुटे हैं.
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सीमांचल अब सिर्फ बिहार का इलाका नहीं रह गया है-यह ओवैसी की मुस्लिम लीडरशिप वाले मॉडल का परीक्षण स्थल बन गया है. अगर वह यहां सफलता नहीं पाते तो यह मॉडल अन्य राज्यों में लागू करने का दावा कमजोर हो सकता है. वहीं दूसरे पक्ष पर मोदी-नीतीश के केंद्रित गठबंधन ने मुसलमान वोट बैंक को बांटने की रणनीति अपनाई है. AIMIM के खिलाफ स्थानीय मुस्लिम नेताओं को मैदान में उतारा गया है ताकि वोट टूट सके.
ओवैसी के समक्ष कई चुनौतियाँ हैं. पिछले चुनाव में जीतने वाले AIMIM विधायकों में से चार-पांच ने अन्य दलों में प्रवेश कर लिया था. कांग्रेस और आरजेडी समेत विपक्षी दलों ने इस बार मुस्लिम-बहुल इलाकों में अपना प्रभाव बढ़ाया है. मुसलमान वोटर अब सिर्फ धर्म के नाम पर नहीं बल्कि विकास-क्षमता, नेतृत्व और स्थानीय हित के आधार पर वोट कर रहे हैं. यदि ओवैसी इस बार सीमांचल में पिछड़ गए तो यह सिर्फ कुछ सीटों का नुकसान नहीं होगा. यह भाजपा-जदयू गठबंधन, कांग्रेस-आरजेडी गठबंधन और AIMIM की राजनीति की दिशा तय कर सकता है. जानकारों की नजर में बिहार चुनाव के नतीजे सिर्फ सीटों की घोषणा नहीं होंगी, बल्कि बिहार सहित पूरे देश में मुस्लिम राजनीति का स्वरूप तय करेंगे.
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