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इंदौरः 200 वर्ष पुरानी परम्परा टूटने से बची, अंधेरे में पुलिस के हटते ही चले हिंगोट

November 07, 2021

-आधे घंटे तक दोनों सेनाओं के योद्धा होते रहे आमने-सामने

इंदौर। शहर से करीब 65 किलोमीटर दूर गौतमपुरा में दीपावली के दूसरे दिन धोक पड़वा (Dhoka Padwa on the second day of Deepawali) पर होने वाला परंपरागत हिंगोट युद्ध (Traditional Hingote War) पुलिस और प्रशासन के सारे प्रयासों के बाद भी हुआ। बस सख्ती का असर यह रहा कि शाम से लेकर रात तक तो दोनों दलों के योद्धा आमने-सामने नहीं हुए, लेकिन शुक्रवार की रात करीब 11 बजे जैसे ही पुलिस और प्रशासन की टीम हटी तो दोनों दलों के दस-दस योद्धा मैदान में उतर आए और एक-दूसरे पर हिंगोट चलाए। इसके साथ 200 वर्षों से चली आ रही परम्परा टूटने से बच गई।

दरअसल, गौतमपुरा में 200 वर्षों से हिंगोट की परम्परा चली आ रही है। यहां दीपावली के दूसरे दिन दो गांवों के योद्धाओं के बीच गोला-बारूद से बने हिंगोट चलाए जाते हैं, जिसमें कई लोग घायल हो जाते हैं। इस बार कोरोना के चलते प्रशासन ने सख्ती से हिंगोट पर प्रतिबंध लगाया था। शुक्रवार को दिनभर कड़ा पहरा रहा और शाम तक पारंपरिक बड़े स्तर पर हिंगोट युद्ध नहीं हो सका। पुलिस ने युद्ध में शामिल होने वाले 32 लोगों को चिन्हित कर उनसे बांड भरवाया था। इसमें उन्हें चेतावनी दी गई है कि माहौल बिगड़ने पर वे जिम्मेदार होंगे। उन पर शांति भंग करने की कार्रवाई की जाएगी।


पारंपरिक हिंगोट युद्ध को रोकने के लिए पुलिस ने मैदान में अस्थायी चौकी बनाई थी। इसमें जिला प्रशासन के अधिकारी भी मौजूद थे। रास्ते में कई स्थानों पर पुलिस की चौकियां भी बनी थी और रास्ते भी बंद कर दिए थे। प्रशासन ने कोरोनाकाल का नाम लेकर हिंगोट युद्ध नहीं होने देने के लिए कमर कस ली और किसी को भी मैदान में जाने नहीं दिया गया। हालांकि शुक्रवार देर रात करीब 11 बजे जब पुलिस और जिला प्रशासन के अधिकारियों को यह पूर्णत: विश्वास हो गया कि अब हिंगोट युद्ध नहीं होगा तो सभी रवाना हो गए।

सूत्रों के मुताबिक अधिकारियों और पुलिस के जाते ही दोनों कलिंगा और तुर्रा की सेना के करीब दस-दस योद्धा मैदान में आ गए और एक-दूसरे पर हिंगोट चलाए गए। लगभग आधे घंटे तक युद्ध चला। हालांकि इन हिंगोट से कोई घायल नहीं हुआ। इस बार पुलिस की सख्ती देर रात युद्ध नहीं हुआ तो 200 वर्ष पुरानी परम्परा के टूटने का खतरा मंडराने लगा, लेकिन आधी रात को ग्रामीणों ने चोरी-छिपे परंपरा का निर्वाह कर ही दिया। हालांकि, किसी अधिकारी ने इस युद्ध की पुष्टि नहीं की है, क्योंकि बाद में पुलिस पहुंची तो यहां कोई भी नहीं मिला। इस पर सूचना मिलते ही काफी देर तक पुलिस मौके पर मौजूद रही और देर रात वापस लौट आई।

पिछले साल भी नहीं माने थे योद्धा
पिछले साल भी प्रशासन ने इसी तरह मैदान में अस्थाई चौकी बनाकर युद्ध रोकने का प्रयास किया था, लेकिन योद्धा माने नहीं और युद्ध शुरू कर दिया। युद्ध रोकने के दौरान पुलिस जवान रमेश गुर्जर की वर्दी जलने के साथ उन्हें मामूली चोट भी आई थी। इसके बाद तुर्रा ओर कलंगी दल के योद्धाओं ने मैदान पर न जाते हुए नगर के विभिन्न स्थानों पर जाकर एक साथ हिंगोट फेंकना शुरू कर दिया था। पुलिस योद्धाओं को एक जगह रोकने जाती थी। दूसरी तरफ दूसरे योद्धा हिंगोट फेंकना शुरू कर देते थे। आखिरी में तो एक योद्धा ने बीच मैदान में जाकर हिंगोट फेंक दिया। परंपरा को कायम रखने की बात कही थी। (एजेंसी, हि.स.)

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