
विभाग को वसूलनी हैं 39 करोड़ से अधिक की राशि
इंदौर। जिला पंजीयन विभाग (District Registration Department) की ओर से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, 1 अप्रैल से 31 अक्टूबर 2025 के बीच विभिन्न उप-पंजीयक कार्यालयों द्वारा बड़ी संख्या में रिकवरी केस (Recovery Case) के मामले निपटाए गए हैं। बावजूद इसके शहर में स्टांप शुल्क (stamp duty) चोरी का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। बिल्डरों और प्रॉपर्टी डेवलपर्स द्वारा किए गए कथित फर्जीवाड़े ने विभाग को करोड़ों का चूना लगाया है। ताजा रिपोर्ट के अनुसार, इंदौर के चारो कार्यालयों में कुल 147 निराकृत आरआरसी प्रकरणों में 6.34 करोड़ रुपये की वसूली की गई है। जबकि विभाग के मुताबिक अभी भी 3378 मामले लंबित हैं, जिनमें कुल 39 करोड़ 63 लाख रुपए की राशि बकाया है। यह आंकड़े यह दर्शाते हैं कि शहर में रजिस्ट्री प्रक्रिया के दौरान बड़े स्तर पर गड़बड़ी की जा रही है। कुछ छोटे बकायादार भूल बस या गलती करते हैं तो बड़े-बड़े बिल्डर जानबूझकर विभाग की आंखों में धूल झोंक रहे हैं।
किस-किस से हुई कितनी वसूली…
इंदौर रजिस्टर कार्यालय एक के सबसे बड़े बकाया दारो में असेट्स क्रिएटर प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर सुनील राजकुमार भाटिया से 69 लाख 8137 की वसूली निकलीगई है ,वहीं एमबीट नवनिर्माण प्राइवेट लिमिटेड के प्रदीप जैन पिता कन्हैया लाल के खिलाफ 39 लाख 59000 का बकाया बताया जा रहा है ।टॉप 3 में डॉक्टर रमेश निखार 32 लाख के बकायदार हैं वही रूप किशोर पिता दामोदर अग्रवाल से भी विभाग को 27 लाख 43000 से अधिक वसूलना है । ऐसे ही छोटे-बड़े कई बकायदाओं से चारों कार्यालय को लाखों की वसूली करना है ।अब तक इंदौर-1 में 1077 मामलों का निराकरण कर विभाग ने 460.09 लाख रुपए वसूले, लेकिन अब भी 219 मामले लंबित हैं। इंदौर-2 में 718 प्रकरणों में 199.71 लाख की वसूली हुई, जबकि 562 मामले अब भी अटके हुए हैं।
खरीदते कौडिय़ों में बेचते लाखों में
अधिकारियों का कहना है कि बिल्डरों द्वारा रजिस्ट्री के समय जमीन की कीमत वास्तविक से कई गुना कम दिखाई जाती है। कई बार प्लॉट की लोकेशन शहर की प्रमुख सडक़ से सटी होने के बावजूद उसे पिछली गली या अंदरूनी क्षेत्र बताकर स्टांप शुल्क कम कर दिया जाता है। इससे विभाग को भारी आर्थिक नुकसान होता है । जानकारी लगने पर विभाग इनके खिलाफ वसूली निकलता है। पंजीयन विभाग ने ऐसे बिल्डरों के खिलाफ कठोर कार्रवाई शुरू की है। कई प्रकरणों में नोटिस जारी किए गए हैं और आरआरसी के माध्यम से बकाया राशि की वसूली की जा रही है। विभाग अब रियल टाइम वैल्यूएशन सिस्टम को मजबूत करने की तैयारी कर रहा है, ताकि कोई भी जमीन अपने वास्तविक मूल्य से कम दर्ज न हो। जमीन की वास्तविक कीमत छिपाना, लोकेशन को अंदरूनी बताना और कम सर्किल रेट वाले क्षेत्रों में दर्ज कराना, स्टांप ड्यूटी चोरी का आम तरीका बन गया है। पंजीयन विभाग द्वारा अप्रैल से अक्टूबर तक के जारी आंकड़ों ने इस घोटाले की पुष्टि कर दी है। विभाग ने बताया कि इस अवधि में कुल 2697 स्टाम्प प्रकरण निराकृत किए गए, जिनमें से केवल 1075.13 लाख रुपए ही वसूले जा सके। जबकि अब भी 1561 मामले लंबित हैं। इससे प्रशासन को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ है।
खाते सीज करने मिल ही नहीं रहे अकाउंट
इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि शहर में स्टांप शुल्क चोरी न केवल बढ़ रही है, बल्कि उससे निपटने की रफ्तार भी बेहद धीमी है। विभाग ने कई बिल्डरों और प्रॉपर्टी रजिस्ट्रियों पर आरआरसी जारी की है। वसूली के लिए नोटिस भेजे गए हैं और कई को अंतिम चेतावनी भी दी गई है, लेकिन बिल्डरों के हौसले इतने बुलंद है कि नोटिस का जवाब देना भी जरूरी नहीं समझ रहे हैं। अब विभाग विभिन्न बैंकों के माध्यम से खाता सेट करने के लिए तलाश कर रहा है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस बात का अंदाजा बिल्डरों को भी है, इसलिए विभिन्न बैंक जिनकी जानकारी विभाग को है, के खाते ही बंद करवा लिए हैं।
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