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महंगाई ने बदला बाजार का ट्रेंड

– डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

महंगाई की मार के साथ आम उपभोक्ताओं की मानसिकता में भी तेजी से बदलाव देखने को मिल रहा है। बाजार के बदलते हालात ने आमलोगों को ब्राण्डेड के स्थान पर आम उत्पादों यानी लोकल उत्पादों की ओर प्रेरित किया है, तो अनावश्यक खर्चों में कटौती के लिए भी मजबूर किया है। एक्सिस माई इंडिया द्वारा हाल ही कराए गए कंज्यूमर सेंटिमेेंट इंडेक्स सर्वे की नवीनतम रिपोर्ट में यह तथ्य उभरकर आया है।

सभी तरह की उपभोक्ता वस्तुओं के दामों की बढ़ोतरी का असर सीधे बाजार में दिखाई देने लगा है। अब कोई भी वस्तु खरीदने से पहले आम आदमी दस बार सोचने लगा है और ब्रॉण्ड के साथ ही उसकी कीमत भी देखने लगा है। हालात यह है कि लग्जरियस वस्तुओं की खरीद को तो आम नागरिक कुछ समय के लिए टालने में ही भलाई समझने लगा है।

बाजार के जानकारों की मानें तो देश में तेज गर्मी के बावजूद एसी सहित अन्य इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की खरीद मेें 25 प्रतिशत तक की कमी दर्ज की गई है। संपन्न लोग भी मोबाइल हैण्डसेट बदलने की इच्छा टाल रहे हैं तो नामीगिरामी स्थान पर लोग स्थानीय उत्पादों को तरजीह देने लगे हैं। यही नहीं रोजमर्रा के खाने-पीने की वस्तुओं में भी अब लोकल का दबदबा होने लगा है। यह सब बाजार में बढ़ती कीमतों के कारण हो रहा है।

दरअसल कोरोना दौर का असर अभी तक जारी है। पूरी तरह से मार्केट संभल भी नहीं पाया है तो रूस- यूक्रेन युद्ध ने कोढ़ में खाज का काम कर दिया है। पर्यावरण असंतुलन के चलते तेज गर्मी व प्राकृतिक आपदाओं से दुनिया के देश जूझ रहे हैं तोे आतंकवादी या हिंसक घटनाओं से कई देशों को दो-चार होना पड़ रहा है। दुनिया के देशों में राजनीतिक अस्थिरता के कारण भी हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। दुनिया के देशों के सामने खाद्यान्न संकट मुंह बाये खड़ा है तो कच्चे तेल के बढ़ते भाव के कारण महंगाई दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।

रूस- यूक्रेन युद्ध से अलग हट कर भी देखें तो इंग्लैण्ड, इजरायल और कुछ हद तक अमेरिका के राजनीतिक हालात अच्छे नहीं कहे जा सकते। श्रीलंका के हालात सामने आ चुके हैं। पाकिस्तान के हालात किसी से छिपे नहीं हैं तो अफगानिस्तान के हालात की सभी को जानकारी है। ऐसे में आर्थिक स्थित पटरी पर आने की बात बेमानी है। यदि पेट्रोल-डीजल के भावों को लेकर ही विश्लेषण किया जाए तो हम पाएंगे कि इनके बढ़ते दाम का असर पूरे बाजार पर तत्काल पड़ता है। क्योंकि वस्तुओं का परिवहन महंगा हो जाता है तो मूल्य में बढ़ोतरी स्वाभाविक है। यह कोई अकेला कारक नहीं है पर इसका अपना और महत्वपूर्ण असर देखा जा सकता है।

देखा जाए तो लोगों की आय सीमित हो गई है। कोरोना का असर यह रहा है कि लोगों की नौकरियां छूटी तो नौकरी को बचाने के लिए कई समझौते करने पड़े। नियोक्ताओं ने कार्मिकों के वेतन भत्तों में तेजी से कटौती की। कोरोना के बाद भी कई क्षेत्र तो ऐसे हैं जिनके पटरी पर आने में लंबा समय लगना तय माना जा रहा है। पर्यटन उद्योग, होटल उद्योग अभी पूरी तरह से पटरी पर नहीं आ पाया है तो कृषि लागत में बढ़ोतरी और न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी से खाद्यान्न महंगे होते जा रहे हैं। चीन के कारण भी दुनिया के देशों की आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हुई है। कोरोना के बाद से दुनिया के अधिकांश देशों की नजर में चीन विलेन के रूप में उभरा है, वहीं चीन अभी भी कोरोना संकट से गुजर रहा है।

उपभोक्ता का अपना मिजाज होता है। समय के साथ उसके मिजाज में बदलाव भी आता है। बाजार के हालिया हालात से यह साफ हो जाता है। भारतीय बाजार की चर्चा करें तो भारतीय उपभोक्ता की मानसिकता को इसी से समझा जा सकता है कि 16 माह में स्मार्टफोन बदलने वाले उपभोक्ता अब इसे आठ से बारह महीने व इससे भी अधिक के लिए डेफर करने लगे हैं तो बेतहाशा गर्मी के बावजूद एसी मार्केट उतना नहीं उठ पाया जितनी संभावना थी।

वास्तव में देखा जाए तो सरकारों की लाख योजनाओं के बावजूद लोगों की स्वास्थ्य खर्च की चिंता अधिक बढ़ी है। कोरोना के बाद लोग स्वास्थ्य के प्रति अधिक सचेत हुए हैं। इसके साथ ही मेडिकल इंश्योरेंस के प्रति लोगों का रुझान बढ़ा है। हालांकि इसके प्लस-माइनस अलग विश्लेषण का विषय है। देखा जाए तो जिस तरह से लोगों ने पेट्रोल-डीजल के भावों से समझौता कर ही लिया है तो फिर उसकी खानापूर्ति अपने अन्य खर्चों यहां तक कि घरेलू दिन प्रतिदिन के खर्चों में भी कमी करके की जाने लगी है।

ऐसे में सवाल महंगाई पर अंकुश लगाने का हो जाता है। बढ़ते मूल्यों पर रोक और इकोनॉमी को पटरी पर लाना सरकार के सामने बड़ी चुनौती है। इस चुनौती का हल निकाल कर ही लोगों को राहत दी जा सकती है। ऐसे में अब सरकार की पहली प्राथमिकता महंगाई बढ़ने के कारकों को नियंत्रण में लाना होना चाहिए तभी बाजार में मांग और आपूर्ति में गति आ सकेगी।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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