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Kargil Vijay Diwas : 26 जुलाई को क्यों मनाया जाता है कारगिल विजय दिवस, जाने क्‍या है इतिहास ?

नई दिल्‍ली (New Delhi) । भारत और पाकिस्तान (India and Pakistan) के बीच सीमा संघर्ष विभाजन के बाद से ही जारी है। आए दिन एलओसी (LOC) पर गोलीबारी होती रहती है। दोनों देशों का सैन्य बल कश्मीर (Kashmir) के लिए संघर्षरत रहता है। ये संघर्ष आज का नहीं, इसके पहले भी भारत पाकिस्तान के बीच युद्ध हो चुका है।

1999 में हुए कारगिल युद्ध में भारत पाक एक दूसरे के सामने था और भारतीय वीर जवानों ने पाकिस्तान के कब्जे से कारगिल की ऊंची चोटियों को आजाद कराया था। इस जंग में कई जवान शहीद हो गए लेकिन कारगिल युद्ध में विजय भारत के नाम कर गए। भारत की गौरवपूर्ण जीत और भारतीय जवानों की शाहदत इतिहास के पन्नों पर हमेशा के लिए दर्ज हो गयी। कारगिल की जीत और शहीदों की कुर्बानी की याद में हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस के तौर पर मनाया जाता है।

जानिए 26 जुलाई 1999 को ही कारगिल विजय दिवस के तौर पर क्यों मनाते हैं, क्या है इस दिन का इतिहास जो हर भारतीय के लिए बन गया गर्व का दिन।


भारत पाक समझौता
विभाजन के बाद दोनों देशों के बीच संघर्ष जारी रहा। परिणामस्वरूप 1971 में भारत पाक युद्ध हुआ। हालांकि इसके बाद से भी दोनों देशों के बीच सशस्त्र युद्ध होते रहे। कश्मीर को लेकर जारी विवाद को कम करने के लिए भारत पाक ने शांतिपूर्ण समाधान का वादा करते हुए फरवरी 1999 में हस्ताक्षर किए। लेकिन नियंत्रण रेखा के पार भारतीय क्षेत्र में पाकिस्तानी घुसपैठ होती रही।

कारगिल युद्ध का इतिहास
भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच सीमा विवाद के कारण 1999 में कारगिल का युद्ध छिड़ गया। पाकिस्तान की सेना ने भारतीय क्षेत्र कारगिल की ऊंची चोटियों पर कब्जा कर लिया, बदले में भारतीय सेना ने “ऑपरेशन विजय” को अंजाम दिया।

60 दिन कारगिल का युद्ध
भारत के जबांज सैनिकों ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ते हुए टाइगर हिल और अन्य चौकियों पर कब्जा कर लिया। भारत पाक के बीच ये जंग लद्दाख के कारगिल में 60 दिनों से अधिक समय तक जारी रही। 2 लाख भारतीय सैनिकों ने युद्ध में हिस्सा लिया।

भारतीय सेना की कारगिल शौर्य गाथा
सेना के मिशन को सफल बनाने के लिए कई वीर सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी, जिसने से एक कैप्टन विक्रम बत्रा भी हैं। 26 जुलाई 1999 को भारतीय सेना ने युद्ध में विजय की घोषणा कर दी। कारगिल युद्ध में भारतीय सेना के 527 सैनिकों की शहादत के साथ पाकिस्तान के 357 सैनिकों ने भी जान गंवाई।

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