
नई दिल्ली । केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने एक केस में फैसला सुनाते हुए समता, निष्पक्षता और मानवता की मिसाल पेश की है। माननीय हाई कोर्ट ने नशा मुक्ति कोर्स (drug de-addiction course) को पूरा करके आए एक युवा के आगे पढ़ने की इच्छा को न केवल समझा बल्कि उसको अपना भविष्य बनाने में आर्थिक मदद भी दी। इतना ही नहीं केस के दौरान न्यायालय ने कहा कि समाज को ख्याल रखना चाहिए कि नशा करने वालों को दंडित करने की बजाय उन्हें इस बात को विश्वास दिलाया जाए कि सिस्टम उनके साथ है।
न्यायमूर्ति ए. मुहम्मद मुस्ताक और न्यायमूर्ति हरिशंकर वी. मेनन की पीठ ने कहा कि नशेड़ी लोगों को अपनाने की जरूरत है। कोर्ट ने कहा, “हमें उनमें सुधार लाना होगा, यही नई पद्धति है।” इसके बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए युवा की इच्छा के अनुरूप कोर्स में एडमिशन दिलवाने का फैसला किया। फीस के तौर पर 91,000 रुपए की कमी की बात आने पर कोर्ट ने इसे दूसरे केस से मिलने वाली राशि से देने का फैसला किया।
दरअसल, यह पूरा मामला लड़के के पिता द्वारा दायर की गई अर्जी सुनने के दौरान सामने आया। लड़के के पिता ने अपनी याचिका में बताया कि उसका बेटा नशीली दवाईयों के अत्याधिक सेवन की वजह से गंभीर मानसिक बीमारियों से ग्रस्त है। इसके इलाज के लिए उसे एंटी-साइकोटिक और एंटी-कन्वल्सेंट दवाएँ दी गई थीं। इलाज के दौरान, उसके बेटे को नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (एनडीपीएस एक्ट) के तहत एक मामले में आरोपी बनाया गया था।
लड़के के पिता के मुताबिक उनके बेटे का दो महीने अस्पताल में इलाज चला, जैसे ही वह रिहा हुआ पुलिस ने उसको गिरफ्तार कर लिया। हिरासत में रहते हुए उसने अपनी दवा खाने से इनकार कर दिया, बाद में जब वह जमानत पर बाहर आया तब भी उसने अपनी नहीं ली। इसकी वजह से उसकी तबीयत बिगड़ गई।
इसके बाद अदालत के निर्देश पर याचिकाकर्ता के बेटे को सरकारी मेंटल हॉस्पिटल ले जाया गया, लेकिन वहां पर बाईस्टैंडर की उपस्थिति अनिवार्य थी। याचिकाकर्ता ने कोर्ट में अर्जी लगाई की बाईस्टैंडर को रखने की शर्त को हटा दिया जाए। क्योंकि उनका परिवार इस खर्च को वहन करने में सक्षम नहीं था। कोर्ट ने केस की सुनवाई की शुरुआत में ही एक आदेश पारित करके बाईस्टैंडर की शर्त को खारिज कर दिया था। बाद में, जब युवक को हॉस्पिटल से छुट्टी मिल गई तो न्यायालय ने खुद उसे अपने समक्ष उपस्थित होने को कहा। लड़के ने बातचीत को दौरान माननीय पीठ के समक्ष आगे पढ़ाई जारी रखने की इच्छा जाहिर की। उसने कहा कि वह औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (आईटीआई) के एक कोर्स में एडमिशन चाहता है।
कोर्ट ने तुरंत ही इस मुद्दे पर बात की लेकिन पता चला कि कोर्स में एडमिशन की तारीख निकल चुकी है। इसके बाद न्यायालय ने स्वतः संज्ञान लेते हुए राष्ट्रीय व्यावसायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीवीईटी) और केंद्र सरकार को पक्षकार बनाया और उनसे युवक के लिए अंतिम तिथि बढ़ाने पर विचार करने को कहा। अधिकारियों ने भी कोर्ट की बात को तुरंत ही स्वीकार करके उसे एडमिशन दे दिया।
याचिकाकर्ता के वकील, जॉन एस राल्फ ने शुरुआत में 25,000 की अग्रिम फीस का भुगतान किया। हालाँकि, न्यायालय ने जोर देकर कहा कि वह किसी अन्य मामले में लगाए गए खर्च से 91,000 की पूरी फीस का भुगतान करेगा। इसलिए, न्यायालय ने केरल राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को पूरी राशि जारी करने और वकील को भी राशि वापस करने का निर्देश दिया।इसके साथ ही कोर्ट ने संबंधित कॉलेज से युवक की समय-समय पर रिपोर्ट भी पेश करने का निर्देश दिया।
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