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भारतीय राजनीति में उत्तर प्रदेश का मतलब

– आरके सिन्हा

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के बहुप्रतीक्षित नतीजे सबके सामने हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को प्रचंड बहुमत मिला है। यह सबको पता है ही। इससे पहले वहां अन्य राज्यों के साथ विधानसभा चुनाव के लिए जोरदार कैंपेन हुई। उत्तर प्रदेश में मतदान के दौरान सुरक्षा, विकास, दलितों के हक में शुरू की गई योजनाओं, हिन्दुत्व के मुद्दों के साथ-साथ ‘देश को मजबूत करना है’ तथा ‘भारत का हित सर्वोपरि है’ जैसे जुमले सामान्य मतदाता की तरफ से भी सुनने को मिले। एक तरह से इसका यह अर्थ लगाया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश का हित और विकास भारत के विकास और मजबूती से जुड़ा हुआ है।

दरअसल, पत्रकारों के राज्य के चुनावी माहौल से जुड़े सवालों का जवाब देते हुए उत्तर प्रदेश का आम जन मौजूदा सरकार के कामकाज को लेकर राय देते हुए ‘भारत की मजबूती’ या ‘देश का विकास’ के मुद्दों को बहस के केन्द्र में लाता रहा। आपको इस तरह के बेबाक विचार देश के बाकी भागों में कम ही सुनने को मिलेंगे। इसका यह कतई मतलब नहीं है कि अन्य राज्यों में रहने वाले नागरिक भारत के समग्र विकास की कामना नहीं करते। वे भी उतनी ही देश की चिंता करते हैं, वे भी सारे देश को अपना मानते हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश की राजनीतिक रूप से जागरूक तथा परिपक्व जनता को एक तरह से यह दिखता है कि उत्तर प्रदेश लोकसभा में 80 सांसदों को भेजता है तो देश के विकास में उसकी भूमिका अति महत्वपूर्ण है। भारत की प्रगति का रास्ता उत्तर प्रदेश के गांवों, कस्बों और शहरों से होकर ही आगे बढ़ता है।

देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक देश के 15 में से 9 प्रधानमंत्री उत्तर प्रदेश से ही लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए हैं। इनमें लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, चरण सिंह, राजीव गांधी, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर, अटल बिहारी वाजपेयी भी शामिल हैं। अब जो सूबा देश को इतने प्रधानमंत्री देगा उसके नागरिकों को अपने राज्य की राजनीतिक ताकत पर गर्व होना लाजिमी है। इसलिए वे विधानसभा चुनाव के वक्त सिर्फ स्थानीय मसलों पर ही बहस नहीं कर रहे थे। वे अपनी बहस का दायरा अखिल भारतीय स्तर पर लेकर जा रहे थे।

देखिए, उत्तर प्रदेश का संबंध राम, कृष्ण, महावीर और बुद्ध से भी है। इसलिए इसके महत्व से कौन इनकार करेगा। राम की जन्मभूमि अयोध्या और कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा। इसी उत्तर प्रदेश के सारनाथ में बुद्ध ने धामेक स्तूप में अपना पहला उपदेश मगध शासन के अधीन दिया था। इसी उत्तर प्रदेश में तुलसीदास, कबीर और रविदास जैसे संत भी पैदा हुए। इधर ही मुगलों की राजधानी आगरा भी है। उत्तर प्रदेश में अनेक खास दरगाहें, मस्जिदें तथा मकबरे हैं, तो यह बौद्ध मत की हृदयस्थली व जैन मत की उद्गम स्थली भी है।

उत्तर प्रदेश के समावेशी चेहरे को देखने के लिए कभी काशी हो आइये। यहां के सेंट थॉमस चर्च के बारे में मान्यता है कि प्रभु ईसा के 12 शिष्यों में से एक सेंट थॉमस यहां आए थे। माना जाता है कि वह अरब सागर पार करके 52 ईसवी में केरल आए थे, जहां उन्होंने ईसाई धर्म का प्रसार किया था। वहां से वे काशी आए थे। इसलिए जो लोग कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में धार्मिक कट्टरता है, उन्हें इसके मूल चरित्र की समझ बेहद कम है। उत्तर प्रदेश की तासीर में सौहार्द और भाईचारा मिला हुआ है। ‘आजादी से पहले, आजादी के बाद’ के लेखक राज खन्ना कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में कभी पृथकतावादी आंदोलन नहीं हो सकता। भारत के विचार के प्रति इसकी निष्ठा अटूट तथा निर्विवाद है।

आपको पाकिस्तान के उन लाखों लोगों के उत्तर प्रदेश से रिश्तों को समझने के लिए पाकिस्तान के अखबारों में छपने वाले वैवाहिक विज्ञापनों को पढ़ना होगा, जिनके पुरखे 1947 में लखनऊ, मेरठ, अलीगढ़, सहारनपुर, अमरोहा, रामपुर आदि से सरहद पार चले गए थे। आप अगर पाकिस्तान के मशहूर अखबारों जैसे दि नेशन, दि डॉन या वहां के किसी अंग्रेजी अखबार में छपे वैवाहिक विज्ञापनों को पढ़ेंगे तो आप पाएंगे कि हर दूसरे विज्ञापन में वर या वधू पक्ष की तरफ से लिखा होता है, ‘मूलत: यूपी के परिवार से संबंध रखने वाले सुयोग्य वर या वधू सम्पर्क करें।’ यानी वतन की मिट्टी और उस नाम को अपने साथ जोड़े रखने की चाहत उनकी भी है, जिनके पूर्वजों ने धर्म के नाम पर बने देश पाकिस्तान में जाकर बसने के लिए उत्तर प्रदेश को छोड़ा था। उनके लिए उत्तर प्रदेश सिर्फ किसी प्रदेश का नाम ही नहीं है, उत्तर प्रदेश उनकी पहचान है।

उत्तर प्रदेश में कुछ दिनों के बाद योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में नई सरकार का गठन हो जाएगा। पिछले 35 वर्षों के बाद राज्य में दोबारा पूर्ण बहुमत की सरकार का नेतृत्व करने वाले वे पहले मुख्यमंत्री होंगे। नई सरकार के ऊपर यह दायित्व रहेगा कि वह उत्तर प्रदेश को देश के सर्वाधिक विकसित राज्य के रूप में स्थापित करे। यहां शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं स्तरीय और सर्वसुलभ हों। सरकारी दफ्तरों में काहिली समाप्त हो। राज्य में निवेश करने वाले उद्यमियों को प्रोत्साहित किया जाए।

योगी आदित्यनाथ ने पहले पांच साल के मुख्यमंत्रित्व काल में अपनी प्रशासनिक क्षमताओं को सिद्ध कर दिया है। अब वहां के सरकारी विभागों में करप्शन को पूरी तरह से खत्म भी करना होगा। यह भी विचार किया जाए कि राज्य में सबकुछ होने के बावजूद पर्याप्त देसी और विदेशी निवेश क्यों कम आ रहा है। जो आ रहा है, वह नोएडा और ग्रेटर नोएडा तक ही कमोबेश क्यों सीमित है। नोएडा और ग्रेटर नोएडा में दर्जनों छोटी-बड़ी और मल्टीनेशनल कंपनियां निवेश कर रही हैं। इनमें हजारों नौजवानों को शानदार रोजगार भी मिल रहा है। इससे उनकी जिंदगी यकीनन सुधर रही है। राज्य को भी करों के स्तर पर भारी लाभ हो रहा है। पर उत्तर प्रदेश के बाकी शहरों में निवेशक क्यों नहीं जा रहे? ये सवाल बना हुआ है।

उत्तर प्रदेश सिर्फ राजनीतिक रूप से जागरूक और महत्वपूर्ण होकर ही अपने पर गर्व नहीं कर सकता। उसे आर्थिक मोर्चे पर भी तेजी से कदम आगे बढ़ाने होंगे। उत्तर प्रदेश के नौजवान संभावनाओं से लबरेज हैं। उनमें उत्साह और उर्जा है। उन्हें सिर्फ सही दिशा देने की आवश्यकता है। तो उत्तर प्रदेश की नई सरकार को अपने यहां दुनिया भर से निवेश लाने के साथ-साथ युवाओं को उद्यमी बनने के लिए हर मुमकिन अवसर देने होंगे। यह जब होगा तो उत्तर प्रदेश वास्तव में भारत की ताकत बन जाएगा।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

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