दो दिन तक संसद में राहुल गांधी गुर्राए…अडानी के नाम पर चीखे-चिल्लाए…आरोप पर आरोप लगाए…मोदी अडानी के समीकरण बताए…जहां-जहां मोदी गए, वहां-वहां अडानी ने अनुबंध पाए…चंद सालों में अरबपतियों में शुमार होने की सरकारी मदद के किस्से सुनाए… लगा था प्रधानमंत्री आएंगे… अडानी पर साफगोई जताएंगे…लेकिन राजनीति के मंजे धुरंधर कूटनीति के चाणक्य…सोच से परे सोच रखने वाले प्रधानमंत्री ने अडानी का ना नाम सदन में लिया…ना कोई अपना वक्तव्य दिया…ना आरोपों का प्रतिकार किया…उल्टा राहुल गांधी के भाषण को गैर प्रमाणिक बताकर संसद के वक्तव्य से ही हटवा दिया…यह शक्ति है सरकार की…यह ताकत है विचार की…प्रधानमंत्री के भाषण में कटाक्ष भी था…चुटकियां भी थीं और चुनौतियां भी थीं…बिना राहुल गांधी का नाम लिए इतने प्रहार किए कि न केवल विपक्ष के प्रहार हवा में लटक गए, बल्कि खुद पर हुए प्रहारों से बचाव के लिए जनता के विश्वास का कवच पहन लिया…क्योंकि प्रधानमंत्री यदि राहुल गांधी का नाम भी लेते तो राहुल का कद बढ़ जाता…उनके आरोपों में संज्ञान नजर आता, लेकिन अपने 88 मिनट के वक्तव्य में राहुल गांधी तो दूर, उनकी छाया तक नजर नहीं आई…यह भाषण नहीं एक सीख है…जो सिखाती है कि कोई उंगली उठाए तो विचलित नजर न आएं, उसे बताएं कि यदि एक उंगली उठाओगे तो तीन उंगलियों का इशारा तुम पर होगा…दूसरी बात जब कोई मिथ्या आरोप लगाए तो आक्रोश न दिखाएं…दिल ना जलाएं…उसे भूल जाएं और आगे बढ़ जाएं… तीसरी सीख यह है कि बुरी बातों को अच्छी यादों से ढंककर अपना मान बढ़ाएं… लोगों का ध्यान हटाएं… मोदी जी ने राहुल के आरोपों का जवाब नहीं दिया… बल्कि अपनी उपलब्धियों का बखान किया… और इतना किया कि आरोप उपलब्धियों में दब गए… समाचार अडानी के नहीं सरकार की उपलब्धियों के बन गए… यह सीख है मानसिक अवसाद से गुजरने वाले उन करोड़ों लोगों के लिए जो वक्त की किसी एक चोंट को दिल पर लेकर जान दे देते हैं… सामयिक मुसीबत से पीछा छुड़ाने के लिए आत्महत्या तक कर लेते हैं… खराब वक्त को मिटाने के लिए आने वाले अच्छे वक्त को वक्त ही नहीं देते हैं… और यह नहीं सोचते हैं कि जिंदगी में यदि एक अच्छा नहीं हुआ है तो बहुत कुछ अच्छा भी गुजरा होगा… और उन अच्छे पलों की यादें उनकी ऊर्जा बन सकती हंै… प्रेरणा बन सकती हैं… लडऩे की शक्ति बन सकती हैं… जो यह सोचते हैं कि लोग क्या कहेंगे… उनके लिए जवाब बन सकती हैं… और हार को जीत में बदलने की वजह भी बन सकती है… मोदी जी ने यही किया… आरोपों को उपलब्धियों से ढंक दिया… विपक्ष को भी सीखना चाहिए… हर शब्द को समझना चाहिए… फिक्र का जिक्र नहीं करना भी जवाब होता है… और खुद की महानता का जिक्र हर फिक्र को मिटा डालता है… सच तो यह है कि जो हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया, वो अपना आसमान बनाता चला गया…
Share:Next Post
'द कश्मीर फाइल्स' को लेकर फिर Prakash Raj का फूटा गुस्सा, कहा- अंतर्राष्ट्रीय जूरी ने उन पर थूका
Related Articles
सच कहते हैं…पर सपने में रहते हैं
मोदीजी…जो आपका कहना है… वो लगता केवल सपना है… आप कहते हैं भारत 25 साल बाद विकसित राष्ट्र बन जाएगा और विकसित भारत से भ्रष्टाचार, जातिवाद और संप्रदायवाद मिट जाएगा… लेकिन हकीकत तो यह है कि यह देश विकास की इस शर्त को कभी पूरा नहीं कर पाएगा, क्योंकि इस देश की रग-रग में भ्रष्टाचार […]
डुबा दिया ना बाप का नाम…
विरासत की हिफाजत करना इतना आसान नहीं होता… क्योंकि विरासत बिना मेहनत के हासिल होती है… उसमें ना अनुभव की धूप होती है ना मेहनत से हासिल सफलता की छांव… ना वो ठोकर खाकर मिलती है ना खोने का दर्द देती है… वो बाप का दिया ऐसा तोहफा होता है जिसे पाने वाला अहंकार की […]
फिर नादानी … अविश्वास प्रस्ताव मत लाओ… विश्वास का प्रस्ताव लेकर जनता के बीच जाओ…
अपनी-अपनी राह…अपनी-अपनी चाह…कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष गोविन्दसिंह के अविश्वास प्रस्ताव से पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के मुखिया कमलनाथ भी आंखे फेर ली…गोविन्दसिंह सदन में अपनी महत्ता साबित करना चाहते थे और कमलनाथ इसे उनकी नादानी मानते थे…कमलनाथ जानते है कि अविश्वास कांग्रेस का मत हो सकता है, लेकिन वह बहुमत में नहीं बदल सकता है…लिहाजा […]