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Nirjala Ekadashi 2023: निर्जला एकादशी व्रत आज, जानिए महत्‍व, कथा से लेकर पूजा विधि के बारे में सबकुछ

नई दिल्‍ली (New Delhi)। हिंदू धर्म में एकादशी के व्रत को महत्वपूर्ण व्रत माना गया है. हर महीने दो, पूरे साल में कुल 24 और अधिकमास में कुल 26 एकादशी तिथि पड़ती है। इस दिन विशेष रूप से भगवान विष्‍णु की पूजा की जाती है। साल में पड़ने वाली सभी एकादशी व्रतों को अलग-अलग नामों से जाना जाता है और सभी का अपना विशेष महत्व भी होता है. लेकिन सभी एकादशी में निर्जला एकादशी व्रत को कठोर और महत्वपूर्ण व्रत माना गया है. पंचांग के अनुसार निर्जला एकादशी का व्रत हर साल ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन रखा जाता है. निर्जला एकादशी जो कि बुधवार यानि आज मनाई जा रही है। निर्जला एकादशी पर सर्वार्थ सिद्धि एवं रवि योग बन रहा है । सर्वार्थ सिद्धि,रवि योग का समय सुबह 5 बजकर 16 मिनट से लेकर सुबह 06 बजे तक रहेगा । सनातन परंपरा में रखे जाने वाले तमाम व्रतों में निर्जला एकादशी का व्रत सभी मनोकामनाओं को पूरा करने वाला है।

निर्जला एकादशी का महत्व (Significance of Nirjala Ekadashi)
ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी निर्जला एकादशी पर किया गया व्रत, अनुष्ठान बेहद फलदायी है। इस दिन किए गए पूजन व दान-पुण्य से अक्षय पुण्य की प्रप्ति होती है। मान्यता है कि भगवान विष्णु का आशीर्वाद दिलाने वाली सभी एकादशी व्रत में निर्जला एकादशी व्रत सबसे कठिन होती है। अगर आप साल की 24 एकादशी का व्रत नहीं पाते तो इस एक व्रत को करने मात्र से ही आप सारा पुण्य कमा सकते हैं। सभी एकादशियों पर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले भगवान विष्णु की पूजा करते हैं व उपवास रखते हैं। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने, पूजा और दान करने से व्रती जीवन में सुख-समृद्धि का भोग करते हुए अंत समय में मोक्ष को प्राप्त होता है। लेकिन इन सभी एकादशियों में से एक ऐसी एकादशी भी है जिसमें व्रत रखकर साल भर की एकादशियों जितना पुण्य कमाया जा सकता है। यह है ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी। इसे निर्जला एकादशी कहा जाता है।


पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं (mythology) के अनुसार महाभारत के संदर्भ में निर्जला एकादशी की कथा मिलती जो इस प्रकार है। सभी पांडवों को धर्म,अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्ति के लिये महर्षि वेदव्यास ने एकादशी व्रत का संकल्प करवाया। अब माता कुंती और द्रोपदी सहित सभी एकादशी का व्रत रखते लेकिन भीम जो कि गदा चलाने और खाना खाने के मामले में काफी प्रसिद्ध थे। कहने का मतलब है कि भीम बहुत ही विशालकाय और ताकतवर तो थे लेकिन उन्हें भूख बहुत लगती थी। उनकी भूख बर्दाश्त के बाहर होती थी इसलिये उनके लिये महीने में दो दिन उपवास करना बहुत कठिन था। जब पूरे परिवार का उन पर व्रत के लिये दबाव पड़ने लगा तो वे इसकी युक्ति ढूंढने लगे कि उन्हें भूखा भी न रहने पड़े और उपवास का पुण्य भी मिल जाये। अपने उदर पर आयी इस विपत्ति का समाधान भी उन्होंने महर्षि वेदव्यास से ही जाना। भीम पूछने लगे हे पितामह मेरे परिवार के सभी सदस्य एकादशी का उपवास रखते हैं और मुझ पर भी दबाव बनाते हैं लेकिन मैं धर्म-कर्म,पूजा-पाठ, दानादि कर सकता हूं लेकिन उपवास रखना मेरे सामर्थ्य की बात नहीं हैं। मेरे पेट के अंदर वृक नामक जठराग्नि है जिसे शांत करने के लिये मुझे अत्यधिक भोजन की आवश्यकता होती है अत:मैं भोजन के बिना नहीं रह सकता। तब व्यास जी ने कहा, भीम यदि तुम स्वर्ग और नरक में यकीन रखते हो तो तुम्हारे लिये भी यह व्रत करना आवश्यक है। इस पर भीम की चिंता और भी बढ़ गई, उसने व्यास जी कहा, हे महर्षि कोई ऐसा उपवास बताने की कृपा करें जिसे साल में एक बार रखने पर ही मोक्ष की प्राप्ति हो। इस पर महर्षि वेदव्यास ने गदाधारी भीम को कहा कि हे वत्स यह उपवास है तो बड़ा ही कठिन लेकिन इसे रखने से तुम्हें सभी एकादशियों के उपवास का फल प्राप्त हो जायेगा। उन्होंने कहा कि इस उपवास के पुण्य के बारे में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने मुझे बताया है। तुम ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का उपवास करो। इसमें आचमन व स्नान के अलावा जल भी ग्रहण नहीं किया जा सकता। अत: एकादशी के तिथि पर निर्जला उपवास रखकर भगवान केशव यानि श्री हरि की पूजा करना और अगले दिन स्नानादि कर ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देकर, भोजन करवाकर फिर स्वयं भोजन करना। इस प्रकार तुम्हें केवल एक दिन के उपवास से ही साल भर के उपवासों जितना पुण्य मिलेगा। महर्षि वेदव्यास के बताने पर भीम ने यही उपवास रखा और मोक्ष की प्राप्ति की। भीम द्वारा उपवास रखे जाने के कारण ही निर्जला एकादशी को भीमसेन एकादशी और चूंकि पांडवों ने भी इस दिन का उपवास रखा तो इस कारण इसे पांडव एकादशी भी कहा जाता है।

निर्जला एकादशी व्रत है कठिन
जैसा कि महर्षि वेदव्यास ने भीम को बताया था एकादशी का यह उपवास निर्जला रहकर करना होता है इसलिये इसे रखना बहुत कठिन होता है। क्योंकि एक तो इसमें पानी तक पीने की मनाही होती है दूसरा एकादशी के उपवास को द्वादशी के दिन सूर्योदय के पश्चात खोला जाता है। अत: इसकी समयावधि भी काफी लंबी हो जाती है।

निर्जला एकादशी पूजा
सभी व्रत, उपवासों में निर्जला एकादशी को सबसे श्रेष्ठ माना जाता है इसलिये पूरे यत्न के साथ इस व्रत को करना चाहिये। व्रत करने से पहले भगवान से प्रार्थना करनी चाहिये कि प्रभु आपकी दया दृष्टि मुझ पर बनी रहे, मेरे समस्त पाप नष्ट हों। निर्जला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करें और एकादशी के सूर्योदय से लेकर द्वादशी के सूर्योदय तक अन्न व जल का त्याग करें। अन्न, वस्त्र, जूते आदि का अपनी क्षमतानुसार दान कर सकते हैं। जल से भरे घड़े को भी वस्त्र से ढककर उसका दान भी किया जाता है ब्राह्मणों अथवा किसी गरीब व जरुरतमंद को मिष्ठान व दक्षिणा भी देनी चाहिये। इस दिन ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का उच्चारण भी करना चाहिए। साथ ही निर्जला एकादशी की कथा भी पढ़नी या सुननी चाहिये। द्वादशी के सूर्योदय के बाद विधिपूर्वक ब्राह्मण को भोजन करवाकर तत्पश्चात अन्न व जल ग्रहण करें। व्रती को ध्यान रखना चाहिये कि गलती से भी स्नान व आचमन के अलावा जल ग्रहण न हों। आचमन में भी नाममात्र जल ही ग्रहण करना चाहिए।

निर्जला एकादशी व्रत में क्या करें
1. भगवान विष्णु की पूजा करें।
2. किसी भी स्थिति में पाप कर्म से बचें अर्थात पाप न करें।
3. माता पिता और गुरु का चरण स्पर्श करें।
4. श्री विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें।
5. श्री रामरक्षा स्तोत्र का पाठ करें।
6. श्री रामचरितमानस के अरण्यकाण्ड का पाठ करें।
7. धार्मिक पुस्तक का दान करें।
8. यह महीना गर्मी का होता है इसलिए प्याऊ की व्यवस्था करें।
9. अपने घर की छत पर पानी से भरा पात्र अवश्य रखें।
10 श्री कृष्ण की उपासना करें।

नोट- उपरोक्‍त दी गई जानकारी व सुझाव सिर्फ सामान्‍य सूचना के आधार पर पेश की गई है हम इन पर किसी भी प्रकार का दावा नहीं करते हैं.

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