भोपाल न्यूज़ (Bhopal News)

एविएशन कंपनी से नहीं वसूला किराया, चार आईएएस पर केस

भोपाल/उज्जैन। निजी एविएशन कंपनी को दताना-मताना हवाई पट्टी को समझौते की शर्त पूरा किए बिना देने के मामले में लोकायुक्त ने उज्जैन के चार पूर्व कलेक्टर संकेत भोंडवे, मनीष सिंह, शशांक मिश्र और नीरज मंडलोई पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मुकदमा कायम किया है। आरोपी अफसरों में से नीरज मंडलोई प्रमुख सचिव लोनिवि, संकेत भोंडवे केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के ओएसडी, मनीष सिंह इंदौर कलेक्टर और शशांक मिश्र मप्र ग्रामीण विकास प्राधिकरण के सीईओ हैं। हाईकोर्ट के आदेश पर लोकायुक्त इस मामले की जांच कर रहा है। हवाई पट्टी को मुफ्त में निजी कंपनी को देने के मामले में हाईकोर्ट के आदेश पर पूर्व में 5 आईएएस और 3 एग्जीक्यूटिव इंजीनियरों पर मामला दर्ज हो चुका है। अभी तक कुल 20 लोगों को आरोपी बनाया जा चुका है। लोकायुक्त पुलिस के इंस्पेक्टर बसंत श्रीवास्तव ने बताया कि सरकार ने इसे 2006 में यश एयर लिमिटेड और सेंटॉर एविएशन एकेडमी इंदौर को लीज पर दिया था। राज्य सरकार और कंपनी के बीच 7 साल के लिए अनुबंध हुआ था। यश एयरवेज को नाइट पार्किंग के लिए 5 हजार 700 किलो वजनी विमानों के लिए 100 रुपए चुकाने थे। ज्यादा वजनी विमानों के लिए यह चार्ज 200 रुपए था। कंपनी ने यह रकम सरकार को नहीं दी। हवाई पट्टी के रखरखाव के लिए पीडब्ल्यूडी की तरफ से खर्च किए गए रुपए भी चुकाने थे। कंपनी ने यह रकम भी नहीं चुकाई। सरकार और कंपनी का समझौता 2013 में खत्म हो गया। अनुबंध की शर्तों के मुताबिक, यश एयरवेज को सालाना 1.50 लाख रुपए जमा कराने थे। लेकिन, कंपनी ने 7 साल में कुल 1.50 लाख रुपए ही जमा किए। इस तरह सरकार को लाखों रुपए का चूना लगा।

ये पूर्व में बनाए गए थे आरोपी
हाईकोर्ट के आदेश पर पूर्व में आरोपी बनाई गई। एम. गीता छत्तीसगढ़ में रायपुर की कलेक्टर हैं। बीएम शर्मा और अजातशत्रु रिटायर हो चुके हैं। कविंद्र कियावत भोपाल कमिश्नर हैं। शर्मा मुख्यमंत्री के ओएसडी हैं। बताया गया कि समझौते की शर्तों में साफ लिखा गया था कि हवाई पट्टी की सुरक्षा की समीक्षा उज्जैन कलेक्टर करेंगे। यश एयर लिमिटेड ने सालाना फीस के 1.50 लाख रुपए जमा किए या नहीं, इसकी निगरानी भी कलेक्टरों को करनी थी। लेकिन, अफसरों ने यह नहीं किया। कंपनी से हवाई पट्टी के मेंटेनेंस की निगरानी पीडब्ल्यूडी के इंजीनियरों को करनी थी। तमाम अफसर कंपनी पर मेहरबान बने रहे। नतीजतन सरकार को लाखों रुपए का चूना लगता रहा।

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