
आज यानि 22 मार्च दिन सोमवार है और आज से ही होलाष्टक (Holashtak) प्रांरभ हो चुके हैं । धार्मिक मान्यता के अनुसार होली (Holi) से आठ दिन पहले से सभी शुभ कार्यों या मांगलिक कार्य करना वर्जित होतें हैं इसे होलाष्टक (Holashtak) कहते हैं। कहा जाता है कि शुभ कार्य होलिका दहन के बाद ही होंगे। शिव पुराण के मुताबिक भगवान शिव ने जब कामदेव को भस्म किया था, तब होलाष्टक लगा था। होलाष्टक (Holashtak) की अवधि भक्ति की शक्ति का प्रभाव बताती है। इस बार होलाष्टक की शुरुआत आज से हुई है जो 28 मार्च होलिका दहन (Holika Dahan) तक होगा। शास्त्रों के अनुसार होलाष्टक के प्रथम दिन फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी का चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहु अपने उग्र रूप में होता है। इस दौरान काम बिगड़ने के अधिक आसार होते हैं।
-शास्त्रों के अनुसार, होलाष्टक शुरू होने के साथ ही 16 संस्कार जैसे नामकरण संस्कार, जनेऊ संस्कार, गृह प्रवेश, विवाह संस्कार जैसे शुभ कार्यों पर रोक लग जाती है।
-किसी भी प्रकार का हवन, यज्ञ कर्म भी इन दिनों में नहीं किया जाता है। इसके अलावा नवविवाहिताओं को इन दिनों में मायके में रहने की सलाह दी जाती है।
पौराणिक कथा
मान्यता है कि होली के पहले के आठ दिनों यानी अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक विष्णु भक्त प्रह्लाद को काफी यातनाएं दी गई थीं। प्रहलाद को फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी को ही हिरण्यकश्यप (Hiranyakashyap) ने बंदी बना लिया था। प्रह्लाद को जान से मारने के लिए तरह-तरह की यातनाएं दी गईं लेकिन प्रह्लाद विष्णु भक्ति के कारण भयभीत नहीं हुए और विष्णु कृपा से हर बार बच गए। अपने भाई हिरण्यकश्यप की परेशानी देख उसकी बहन होलिका आईं। होलिका को ब्रह्मा ने अग्नि से न जलने का वरदान दिया था। यातनाओं से भरे उन आठ दिनों को ही अशुभ मानने की परंपरा बन गई।
इसके बाद भक्त की भक्ति से प्रसन्न होकर नृसिंह भगवान (Narsingha Bhagwan) प्रकट हुए और प्रह्लाद की रक्षा कर हिरण्यकश्यप का वध किया। तभी से भक्त पर आए इस संकट के कारण इन आठ दिनों को होलाष्टक के रूप में मनाया जाता है। होलाष्टक के दौरान शुभ कार्य वर्जित होते हैं। इसके साथ ही एक कथा यह भी है कि भगवान शिव की तपस्या को भंग करने के कारण शिव ने कामदेव को फाल्गुन (Phalgun) की अष्टमी पर ही भस्म किया था।
होलाष्टक का महत्व (Importance of Holashtak)
होलाष्टक (Holashtak) की अवधि भक्ति की शक्ति का प्रभाव बताती है। इस अवधि में तप करना ही अच्छा रहता है। होलाष्टक शुरू होने पर एक पेड़ की शाखा काट कर उसे जमीन पर लगाते हैं। इसमें रंग-बिरंगे कपड़ों के टुकड़े बांध देते हैं। इसे भक्त प्रह्लाद का प्रतीक माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, जिस क्षेत्र में होलिका दहन के लिए एक पेड़ की शाखा काट कर उसे जमीन पर लगाते हैं, उस क्षेत्र में होलिका दहन तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है।
नोट- उपरोक्त दी गई जानकारी व सूचना सामान्य उद्देश्य के लिए दी गई है। हम इसकी सत्यता की जांच का दावा नही करतें हैं यह जानकारी विभिन्न माध्यमों जैसे ज्योतिषियों (Astrologers) , धर्मग्रंथों, पंचाग आदि से ली गई है । इस उपयोग करने वाले की स्वयं की जिम्मेंदारी होगी ।
©2025 Agnibaan , All Rights Reserved