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अब सरकार का सहयोग करें किसान

November 21, 2021

– डॉ. वेदप्रताप वैदिक

सरकार ने तीनों विवादित कृषि-कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दी, फिर भी आंदोलनकारी किसान नेता अपनी टेक पर अड़े हुए हैं। वे कह रहे हैं कि जब तक संसद स्वयं इस कानून को रद्द नहीं करेगी, यह आंदोलन या यह धरना चलता रहेगा। उनकी दूसरी मांग है कि सरकार उपज के समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी मान्यता दे। मैं समझता हूं कि इन दोनों बातों का हल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा में उपस्थित है। यदि अब भी सरकार संसद के अगले सत्र में कुछ दांव-पेंच दिखाएगी और कृषि-कानूनों को बनाए रखेगी तो नरेंद्र मोदी की प्रतिष्ठा पेंदे में पैठ जाएगी। क्या मोदी कभी ऐसा होने देंगे? हम ज़रा सोचें कि मोदी को कौन बाध्य कर सकता है कि वे अपने वचन से मुकर जाएं? किसानों को संदेह है और उन्होंने उसे खुले-आम कहा भी है कि मोदी ने कुछ बड़े पूंजीपतियों के फायदे के लिए ये कानून बनाए हैं। क्या इन पूंजीपतियों की इतनी हिम्मत होगी कि वे मोदी को राष्ट्र के खिलाफ वादाखिलाफी के लिए मजबूर कर सकें? इस कानून-वापसी का सभी विपक्षी दलों ने भी स्वागत किया है।

यह ठीक है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त कमेटी के एक सदस्य ने मोदी की वापसी की इस घोषणा की निंदा की है और एक-दो कृषि-विशेषज्ञों ने इन कानूनों के संभावित फायदे भी गिनाए हैं लेकिन आमतौर से सभी लोग मान रहे हैं कि इन कानूनों को वापस लेने का फैसला साहसिक और उत्तम है। इस फैसले के बावजूद किसान आंदोलन को जारी रखने का तर्क यह है कि सरकार ने अभी तक खाद्यान्न के समर्थन मूल्यों को कानूनी रूप नहीं दिया है। यह बड़ा पेचीदा मामला है। यदि इस मुद्दे पर भी सरकार आनन-फानन कानून बना देती तो उसके दुष्परिणाम किसानों और जनता को भी भुगतने पड़ते। सरकार ने यह बिल्कुल ठीक किया कि इस मुद्दे पर विचार करने के लिए एक विशेषज्ञ कमेटी बना दी है।

किसान नेता यदि यह मांग करते कि उनसे परामर्श किये बिना यह कमेटी अपनी रपट पेश नहीं करे, तो यह सही मांग होती लेकिन उन्होंने आंदोलन जारी रखने की जो घोषणा की है, वह नेताओं के लिए तो स्वाभाविक है लेकिन क्या अब साधारण किसान इतनी कड़ाके की ठंड में अपने नेताओं का साथ देगा? हमारे किसान नेता भी बाद में मोदी की तरह पछता सकते हैं? उन्हें अपने अनुयायियों और हितैषियों से सलाह-मश्वरा करने के बाद ही ऐसी घोषणा करनी चाहिए। किसानों ने अपनी मांग के लिए जितनी कुर्बानियां दी हैं और जितना अहिंसक आंदोलन चलाया है, उसकी तुलना में पिछले सभी आंदोलन फीके पड़ जाते हैं। किसान नेताओं को चाहिए कि वे इस सरकार का मार्गदर्शन करें और इसके साथ सहयोग करें ताकि भारत के किसानों को सदियों से चली आ रही उनकी दुर्दशा से मुक्त किया जा सके। यदि वे ऐसा करेंगे तो मुझे विश्वास है कि देश की जनता भी उनका पूरा समर्थन करेगी और विपक्षी दल भी उनका साथ देंगे।

(लेखक सुप्रसिद्ध पत्रकार हैं)

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