
नई दिल्ली । पाकिस्तानी(Pakistani) प्रोफेसर इश्तियाक अहमद (Ishtiaq Ahmed)का कहना है कि जम्मू-कश्मीर(Jammu and Kashmir) पर भारत(India) का वास्तविक हक है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ने विभाजन के बाद जूनागढ़ रियासत पर दावा किया था, जो उसकी सीमा से 250 किलोमीटर दूर गुजरात में स्थित थी। उसका यह दावा था कि जूनागढ़ के शासक मुसलमान हैं और वह चाहते हैं कि पाकिस्तान में आ जाएं। इसलिए जूनागढ़ को पाकिस्तान में रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि यही पाकिस्तान की गलती थी। जूनागढ़ में 91 फीसदी आबादी हिंदू थी और पाकिस्तान शासक के मुसलमान होने के नाम पर चाहता था कि उस हिस्से को अपने साथ मिला लिया जाए। अब यदि यही दलील जम्मू-कश्मीर में लागू की जाए तो पाकिस्तान का हक कैसे बनता है।
उन्होंने एक पॉडकास्ट में कहा कि यही गलती पाकिस्तान की थी और जम्मू-कश्मीर के महाराज हरि सिंह ने तो बाकायदा विलय पत्र पर साइन करके भारत में शामिल होने का फैसला लिया था। यही नहीं उन्होंने स्वीकार किया कि पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर में 1947 में मुजाहिद भेजे थे। इन लोगों ने बारामूला, पुंछ जैसे इलाकों में घुसकर लूटमार मचाई थी। उन्होंने यूएन के प्रस्ताव का भी जिक्र किया और कहा कि सबसे पहले तो नियम के अनुसार पाकिस्तान को ही सेना हटानी होगी। उसके बाद भारत वहां से फौज हटाएगा और फिर जनमत संग्रह होगा। यही नहीं उन्होंने यहां तक कहा कि भारत इस मामले में यूएन ना ही जाता तो ठीक रहता है और उसके हित में होता।
अपनी बेबाक राय के लिए चर्चित इश्तियाक अहमद ने कहा कि फिलहाल यही सही होगा कि दोनों देश एलओसी को ही सीमा मान लें। हालांकि यह दलील भारत कभी स्वीकार नहीं कर सकता। इसकी वजह है कि पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर के बड़े हिस्से पर अवैध कब्जा किया हुआ है। इश्तियाक अहमद ने कहा कि एक समय था कि अमृतसर से लाहौर तक लोग रोज ही आते-जाते थे। उन्होंने कहा कि शायद ही हम अपनी जिंदगी में अब दोबारा वैसे दिन देख सकेंगे। अहमद ने कहा कि आज हालात यह हैं कि पाकिस्तान के बाजार चौपट पड़े हैं। यदि भारत के साथ रिश्ते बहाल हों तो इकॉनमी को मदद मिलेगी।
इस दौरान इश्तियाक अहमद ने पाकिस्तान में सांप्रदायिकता की भी बात की। उन्होंने कहा कि आज पाकिस्तान में कोई अल्पसंख्यक समाज बचा ही नहीं है। प्रोफेसर ने कहा कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि जिन्ना के पास अपना कोई प्लान नहीं था। उन्होंने भारत का बंटवारा तो करा लिया, लेकिन कोई आइडिया नहीं था कि देश कैसे चलेगा। इसी कारण से पाकिस्तान में शुरुआत से ही कट्टरपंथी ताकतें हावी हो गईं। उन्होंने कहा कि भारत में गांधी और नेहरू जैसे नेता पढ़ते-लिखते थे। उनका भारत के संविधान को लेकर एक विजन था, लेकिन मोहम्मद अली जिन्ना के पास ऐसा कोई विचार नहीं था। इसी की कीमत आज भी पाकिस्तान चुका रहा है।
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