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पैन्गोंग झील की ठंड ने ली 10 चीनी सैनिकों की जान

नई दिल्ली । पिछले एक सप्ताह में पूर्वी लद्दाख का तापमान शून्य से 10 डिग्री नीचे पहुंच चुका है। पैन्गोंग झील के उत्तरी किनारे पर तैनात पांच हजार से अधिक चीनी सैनिकों का बुरा हाल है। उनके लिए स्थाई बैरेक्स बनाई गई हैं, इसके बावजूद अब तक 10 से अधिक पीएलए सैनिकों ने एलएसी के साथ पूर्वी लद्दाख में अपना जीवन खो दिया है।​ अपने पेशेवर अंदाज और मानवीय संवेदना के लिए पहचानी जाने वाली भारतीय सेना ही बेहोश हो रहे चीनी सैनिकों को स्ट्रेचर के जरिए अस्पताल पहुंचा रही है। अभी तो यहां ठंड की शुरुआत है, अक्टूबर के अंत तक सारी पहाड़ियां बर्फ से जम जाएंगीं।

लद्दाख के सब-सेक्टर नॉर्थ के डेप्सांग और दौलत बेग ओल्डी क्षेत्रों में न्यूनतम तापमान पहले से ही माइनस 14 डिग्री के आसपास पहुंच गया है। आने वाले दिनों में तेजी से तापमान में गिरावट आएगी। इसी तरह पैन्गोंग झील के किनारे जमने लगे हैं, क्योंकि यहां का तापमान गिरकर शून्य से 10 डिग्री नीचे चला गया है। उत्तरी किनारे के फिंगर एरिया के उच्च ऊंचाई वाले स्थानों पर चार माह से जमे बैठे चीनी सैनिक अभी तक हटने को तैयार नहीं थे लेकिन तापमान गिरते ही उनकी हालत खराब होने लगी है। मौसम में तेजी से बदलाव आने की वजह से चीनी सैनिक ऑक्सीजन की कमी से बेहोश होने लगे हैं, जिन्हें भारतीय सैनिक स्ट्रेचर के जरिए इलाज के लिए अस्पताल पहुंचा रहे हैं।

पिछले एक हफ्ते में 10 से अधिक पीएलए सैनिकों ने एलएसी के साथ पूर्वी लद्दाख में अपना जीवन खो दिया है।​ इस दौरान तेज हवा और अत्यधिक ठंड की स्थिति और खराब होती जा रही है। फिंगर एरिया में जहां भारतीय और चीनी सैनिक हैं वहां अक्टूबर के अंत तक झील की सतह पूरी तरह से जम जाएगी। चीन ने ऊंचाइयों पर तैनात अपने सैनिकों को ठंड से बचाने के अत्याधुनिक इंतजाम किये हैं। प्रत्येक 15-15 दिन में 200-200 पीएलए सैनिकों की शिफ्टवार ड्यूटी लगाई जा रही है ताकि उन्हें लगातार ठंड का सामना न करना पड़े। यहां तापमान शून्य से 10 डिग्री नीचे जाने पर सर्दियों से बचने के लिए फिंगर-4 पर 200-200 पीएलए सैनिकों की शिफ्ट लगाई जा रही है। फिंगर एरिया से निकाले गए चीनी सैनिकों को अंतरिम उपचार के लिए फिंगर-6 के पास एक फील्ड अस्पताल में ले जाया जा रहा है।

डेप्सांग क्षेत्र में भारतीय सेना के फील्ड अस्पताल खुल गए हैं। यहां भारतीय सैनिकों को भीषण ठंड की खतरनाक स्थितियों से बचाने के लिए उच्च स्तरीय इलाज की व्यवस्था की गई है। हालांकि भारतीय सैनिकों को सियाचिन में करीब 22 हजार फीट और माउंट एवरेस्ट पर 29 हजार फीट की ऊंचाई पर तैनाती का अनुभव है, इसलिए पैंगोंग की 16 हजार फीट की ऊंचाई उनके लिए कोई मायने नहीं रखती है। इसीलिए भारतीय सेना के सैनिक उच्च ऊंचाई की लड़ाइयों में सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं।

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