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पारुल यूनिवर्सिटी ने की अपने इंटरनेशनल फोकलोर फेस्टिवल के तीसरे संस्करण की सफलतापूर्वक मेज़बानी

December 03, 2025

वडोदरा (गुजरात) [भारत] पारुल यूनिवर्सिटी (Parul University) ने पीयू के इंटरनेशनल फोकलोर फेस्टिवल (International Folklore Festival) के तीसरे एडिशन में 30 देशों को एकत्र किया गया, जो कि यूनिवर्सिटी के अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक समझ के दृष्टिकोण की तरफ एक और कदम है। “वसुधैव कुटुम्बकम” (“Vasudevam Kutumbkam”) के सदीवी मंत्र की पालना करते हुए, इस साल के इंटरनेशनल फोकलोर फेस्टिवल ने एक बार फिर दुनिया को एक वैश्विक परिवार के तौर पर सांस्कृतिक सहयोग और जश्न के लिए एक मंच पर एक साथ लाया है।

इस साल, 30 से अधिक देशों से 600+ कलाकार इकट्ठा हुए। भारत, लिथुआनिया, पोलैंड, नेपाल, दक्षिण कोरिया, स्लोवाकिया, ग्रीस, रूस, क्यूबा, श्रीलंका, स्पेन, इक्वाडोर, अल्जीरिया, मलेशिया, किर्गिस्तान, कज़ाकिस्तान, कराकल्पकस्तान, इथियोपिया, लेसोथो, मेडागास्कर, तंजानिया, दक्षिण सूडान, ज़ाम्बिया, मोज़ाम्बिक, भूटान, ज़िम्बाब्वे, म्यांमार, बांग्लादेश, युगांडा और घाना के डैलिगेटों ने कैंपस को अपनी लय, रंग और विरासत से भर दिया, क्योंकि प्रत्येक ग्रुप अपनी खास पहचान लेकर आया, और अलग-अलग महाद्वीपों की परंपराओं, कहानियों और आर्ट फॉर्म्स का जीता-जागता मोज़ेक बनाया।


इस उत्सव का शानदार उदघाटन 25 नवंबर को स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी पर किया गया। दुनिया भर के कलाकार दुनिया की सबसे बड़ी मूर्ति के बैकग्राउंड में ग्लोबल यूनिटी और शांति की शपथ लेने के लिए एकत्र हुए। यह पल सरदार वल्लभभाई पटेल को श्रद्धांजलि के तौर पर पेश किया गया और इस उत्सव के साझे उदेश – एकता, आपसी सम्मान और एक बेहतर दुनिया की चाहत को दिखाता था। पांच दिनों के दौरान, पारुल यूनिवर्सिटी कैंपस एक रंगीन सांस्कृतिक स्थान बन गया। हर देश के खास लोकगीत, सांस्कृतिक रस्में और रंगीन डांस ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध और हैरान कर दिया। इस उत्सव में अलग-अलग सांस्कृति को कला की वैश्विक भाषा के ज़रिए एक साझी जगह मिली।

भारत सरकार की पूर्व विदेश और संस्कृति राज्य मंत्री, श्रीमती मीनाक्षी लेखी ने कहा, “सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती को वैश्विक सांस्कृतिक उत्सव के साथ मनाना सच में बहुत महत्वपूर्ण है। उनकी विरासत हमें सिखाती है कि जब लोग मिलकर काम करते हैं, तो उनकी ताकत कई गुना बढ़ जाती है। ऐसे उत्सव हमें याद दिलाते हैं कि कला रुकावटों को तोड़ सकती है और हमारी पहचान को मज़बूत कर सकती है।” इसी बारे में बोलते हुए, डॉ. दर्शना वसावा, MLA, नंदोद, नर्मदा ने कहा, “यहां हर प्रदर्शन सिर्फ कला ही नहीं है, बल्कि इतिहास का एक हिस्सा, परंपरा की आवाज़ और देशों के बीच एक ब्रिज भी है। दुनिया को एक ही मंच पर एक करना सिर्फ एक घटना ही नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी सांस्कृति है जिसका समर्थन करने पर हमें गर्व है।”

इस सफल एडिशन पर टिप्पणी करते हुए, पारुल यूनिवर्सिटी के प्रेसिडेंट, डॉ. देवांशु पटेल ने कहा: “इस उत्सव ने हमें एक बार फिर याद कराया कि जब सांस्कृति एक साथ आते हैं, तो दुनिया थोड़ी और जुड़ जाती है, और थोड़ी और दयालु हो जाती है। यहां प्रदर्शन करने वाले हर आर्टिस्ट ने न सिर्फ अपना टैलेंट, बल्कि अपनी विरासत, अपना गर्व और एकता की भावना भी दिखाई है। हम इस सेलिब्रेशन को और मतलब वाला बनाने के लिए वहां मौजूद हर देश के लोगों का धन्यवाद करते हैं।”

इस साल का इंटरनेशनल फोकलोर फेस्टिवल न सिर्फ अपने प्रदर्शन के लिए बल्कि देशों, समुदायों और इसे महसूस करने वाले हर इंसान के बीच बनी अपनी गर्मजोशी के लिए भी याद किया जाएगा। अपने तीसरे एडिशन के शानदार तरीके से खत्म होने के बाद, पारुल यूनिवर्सिटी ने कला के ज़रिए वैश्विक सांस्कृतिक संवाद को बढ़ावा देने और विविधता का जश्न मनाने का अपनी प्रतिबद्धता को जारी रखा है।

 

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