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गाजियाबाद के सुराना गांव में 12वीं सदी से ही लोग नहीं मनाते रक्षाबंधन


नई दिल्ली । गाजियाबाद (Ghaziabad) के सुराना गांव में (In Surana Village) 12वीं सदी से ही (Since 12th Century) लोग रक्षाबंधन नहीं मनाते हैं (People do not Celebrate Rakshabandhan) । गांव के लोगों के मुताबिक, इस गांव में मोहम्मद गोरी ने कई बार आक्रमण किए, लेकिन हर बार उसकी सेना गांव में घुसने के दौरान अंधी हो जाती थी, क्योंकि देवता इस गांव की रक्षा करते थे। वहीं रक्षाबंधन के दिन देवता गंगा स्नान करने चले गए थे, जिसकी सूचना मोहम्मद गौरी को लग गई और उसी का फायदा उठाकर मोहम्मद गौरी ने इस गांव पर हमला बोल दिया था। तब से गांव के लोग इस दिन को काला दिन भी मानते हैं और रक्षाबंधन नहीं मनाते हैं।


इस गांव की बहू तो अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं, लेकिन इस गांव की लड़कियां रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाती। इतना ही नहीं इस गांव के लोग यदि कहीं दूसरी जगह भी जाकर बस जाते हैं तो वह भी रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाते हैं। इसके साथ ही गांव में हर घर से एक व्यक्ति सेना या पुलिस में अपनी सेवा दे रहा है और हर साल उनके हाथों की कलाई सुनी रह जाती है। गांव निवासी छाबड़िया राहुल सुराना ने बताया कि, छाबड़िया गौत्र के व्यक्ति रक्षाबंधन का त्यौहार नहीं मनाते हैं। छाबड़िया गौत्र की कुल आबादी करीब 8 हजार है जो यह रक्षाबंधन नहीं मनाते। इसके अलावा बाहर से बसे कुछ अन्य गौत्र उस त्यौहार को मना लेते हैं। हालांकि गांव के कुछ लोग ऐसे हैं जिनके घर रक्षाबंधन के दिन बेटा या उनके घर में पल रही गाय को बछड़ा हुआ। इसके बाद उन्होंने फिर त्यौहार को मनाने का प्रयास किया, लेकिन घर में हुई दुर्घटना के चलते फिर कभी किसी ने रक्षाबंधन नहीं मनाया। गांव की प्रधान रेनू यादव बताती हैं कि, गांव में पुरानी परंपरा है कि यहां रक्षाबंधन नहीं मनाया जाता।

सैकड़ों साल पहले राजस्थान से आए पृथ्वीराज चौहान के वंशज सोन सिंह राणा ने हिंडन नदी के किनारे डेरा डाला था। जब मोहम्मद गौरी को पता चला कि सोहनगढ़ में पृथ्वीराज चौहान के वंशज रहते हैं, तो उसने रक्षाबंधन वाले दिन सोहनगढ़ पर हमला कर औरतों, बच्चों, बुजुर्ग और जवान युवकों को हाथियों के पैरों तले जिंदा कुचलवा दिया।

गाजियाबाद से 30 किलोमीटर दूर स्थित मुरादनगर के सुराना गांव को पहले सोनगढ़ के नाम से जाना जाता था। गांव के निवासी महावीर सिंह यादव ने बताया, सन् 1206 में रक्षाबंधन के दिन हाथियों द्वारा मोहम्मद गौरी ने गांव में आक्रमण किया था। आक्रमण के बाद यह गांव फिर बसा, क्योंकि गांव की रहने वाली एक महिला ‘जसकौर’ उस दिन अपने पीहर (अपने घर) गई हुई थी, इस दौरान जसकौर गर्भवती थी, जो कि गांव में मौजूद न होने के चलते बच गई। बाद में जसकौर ने दो बच्चों ‘लकी’ और ‘चुंडा’ को जन्म दिया और दोनों बच्चों ने बड़े होकर वापस सोनगढ़ को बसाया।

सुराना एक विशाल ठिकाना है छाबड़िया गोत्र के चंद्रवंशी अहीर क्षत्रियों का। राजस्थान के अलवर से निकलकर छाबड़िया गोत्र के अहीरों ने सुराना में छोटी सी जागीर स्थापित कर गांव बसाया। ग्राम का नाम सुराना यानि ‘सौ’ ‘राणा’ शब्द से मिलकर बना है। ऐसा माना जाता है कि, जब अहीरों ने इस गांव को आबाद किया तब वे संख्या में सौ थे और राणा का अर्थ होता है योद्धा इसीलिए उन सौ क्षत्रीय अहीर राणाओं के नाम पर ही इस ठिकाने का नाम सुराना पड़ गया। गांव की कुल आबादी 22 हजार के करीब है, इसमें अधिकतर निवासी रक्षाबंधन का त्यौहार नहीं मनाते। क्यूंकि वह छाबड़िया गौत्र से हैं और वह इस दिन को अपशगुन मानते हैं। हालांकि जो लोग बाद में यहां निवास करने आए वह भी गांव की इस परंपरा को मानने लगे हैं।

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