
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) ने गुरुवार को कहा है कि अदालत(court) राज्य विधानसभाओं से पारित विधेयकों (Bills)को मंजूरी देने के लिए राज्यपालों (Governors)और राष्ट्रपति (President)के लिए कोई समयसीमा तय नहीं कर सकती। इसके बाद यह जानकारी सामने आई है कि विपक्षी दलों के शासन वाले चार राज्यों में कम से कम 33 विधेयक राज्यपाल या राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए लंबित हैं। इन 33 विधेयकों में से 19 विधेयक पश्चिम बंगाल विधानसभा से पारित हैं जबकि 10 विधेयक कर्नाटक, तीन तेलंगाना और कम से कम एक विधेयक केरल विधानसभा से पारित है।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पश्चिम बंगाल विधानसभा के अध्यक्ष बिमान बनर्जी ने कहा कि राज्य विधानसभा से पारित कम से कम 19 विधेयक अब भी राज्यपाल की स्वीकृति के लिए लंबित हैं। बनर्जी ने कहा कि जब कोई विधेयक बिना स्पष्टता के लंबित रहता है, तो उसकी अहमियत खत्म हो जाती है।
वहीं कर्नाटक विधानसभा से पारित कम से कम 10 विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए लंबित हैं, जिनमें मुसलमानों को सिविल कार्यों में ठेके देने के लिए चार प्रतिशत आरक्षण देने से जुड़ा विधेयक भी शामिल है। वहीं कर्नाटक के राज्यपाल के पास कोई विधेयक लंबित नहीं है। इसके अलावा तेलंगाना में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण विधेयक समेत तीन विधेयक लंबित है।
कोर्ट की अहम टिप्पणी
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा है कि अदालत राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति पर कोई समयसीमा नहीं थोप सकती, लेकिन राज्यपालों के पास विधेयकों को अनिश्चितकाल तक रोककर रखने की ‘‘असीम’’ शक्तियां नहीं हैं।
राष्ट्रपति द्वारा इस विषय पर परामर्श मांगे जाने पर, मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई की अगुवाई वाली पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने अपनी सर्वसम्मति वाली राय में कहा कि राज्यपालों द्वारा ‘‘अनिश्चितकालीन विलंब’’ की सीमित न्यायिक समीक्षा का विकल्प खुला रहेगा। पीठ ने यह भी कहा है कि कोर्ट अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेष अधिकार का उपयोग करके किसी विधेयक की स्वतः स्वीकृति (डीम्ड एसेंट) प्रदान नहीं कर सकता।
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