
नई दिल्ली। कोरोना वायरस ()corona virus महामारी के दौरान वैज्ञानिकों (scientists) ने समुद्र में एक बड़ी खोज की है। इस नई खोज में दुनियाभर के महासागरों से वायरस (विषाणु) की 5,500 नई प्रजातियां पाई गई हैं, जिन्हें शोधकर्ता उनकी विविधता के अनुसार अलग-अलग श्रेणियों में वर्गीकृत करने का काम कर रहे हैं।
शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम के नेतृत्व में दुनियाभर के महासागरों में यह खोज की गई। समुद्र से लिए गए लगभग 35,000 हजार नमूनों पर शोध करने के बाद यह नए वायरस पाए गए। शोधकर्ताओं ने बताया कि खोजे गए इन विषाणुओं में से लगभग 100 विषाणुओं की प्रजातियां मनुष्यों, जानवरों और पौधों (animals and plants) को नुकसान पहुंचाने की क्षमता रखती हैं। यह अध्ययन 7 अप्रैल को साइंस जर्नल में प्रकाशित हुआ था।
पांच नए फाइला में किया जा सकता है वर्गीकरण
शोध के निष्कर्षों में बताया गया है कि जहां सैकड़ों नई आरएनए वायरस प्रजातियां (virus species) मौजूदा डिवीजनों में फिट होती हैं, वहीं हजारों अन्य प्रजातियों को अब पांच नए प्रस्तावित फाइला में वर्गीकृत किया जा सकता है। इनमें ताराविरिकोटा, पोमिविरिकोटा, पैराक्सेनोविरिकोटा, वामोविरिकोटा और आक्र्टीविरिकोटा शामिल हैं। साथ ही शोध में यह भी बताया गया कि नई प्रजातियों का सबसे बड़ा समूह ‘ताराविरिकोटा’ फाइलम से संबंधित है।
कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं ये वायरस
मैथ्यू सुलिवन ने कहा- दुनियाभर के महासागरों में वायरस विविधता के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने से जलवायु परिवर्तन के लिए समुद्र के अनुकूलन में समुद्री रोगाणुओं की भूमिका को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिल सकती है। शोधकर्ताओं ने बताया कि पृथ्वी का बड़ा हिस्सा पानी से घिरा है और जलवायु परिवर्तन में इसकी बड़ी भूमिका है।
समुद्र में पाए जाने वाले वायरस मानव गतिविधियों से उत्पन्न आधे वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं। इससे हमें जलवायु परिवर्तन की जटिलताओं को समझने में भी आसानी होगी।
समुद्र में लगातार बढ़ रही विषाणुओं की संख्या
वैज्ञानिकों ने बताया कि समुद्र में विषाणुओं का अस्तित्व तब से है जब पृथ्वी पर पहली बार जीवन का पता चला। साथ ही उन्होंने बताया कि समुद्र में पाए जाने वाले इन विषाणुओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। हालांकि इनमें ज्यादातर वायरस ऐसे हैं, जो मनुष्य, जानवरों और पौधों को नुकसान नहीं पहुंचाते।
शोध के सह-लेखक डॉ. अहमद जायद ने बताया कि दुनियाभर के महासागरों में पाए गए इन विषाणुओं का वर्गीकरण किया जा रहा है। इन वायरसों में कई ऐसे हैं, जो अरबों साल से समुद्र में मौजूद थे। इसलिए हम न केवल वायरस की उत्पत्ति का पता लगा रहे हैं, बल्कि इसके जरिए जीवन की उत्पत्ति का भी पता लगा रहे हैं।
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