ब्‍लॉगर

वनवासी बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए प्रयत्नशील सेवा समर्पण संस्थान

– बृजनन्दन

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समाज के लगभग हर क्षेत्र में तीव्र गति से सेवा कार्य कर रहा है। निर्बल और उपेक्षित वर्गों के प्रति सेवा को प्रमुखता दी जा रही है। इनमें वनवासियों की तरफ तो संघ का ध्यान कुछ अधिक ही है। हालांकि, वनवासियों की समस्याएं और चुनौतियां जटिल हैं लेकिन, बावजूद इसके संघ के स्वयंसेवक उनकी समस्याओं के निराकरण हेतु तल्लीनता से लगे हुए हैं।

वनवासियों के उत्थान के लिए सबसे पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कर्मठ कार्यकर्ता बाला साहब देशपांडे ने अपने आपको समर्पित किया। संघ की प्रेरणा और जशपुर के महाराजा के सक्रिय सहयोग से 1952 में बाला साहब देशपांडे ने वनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना की। आश्रम द्वारा सबसे पहले जशपुर में वनवासियों के बच्चों के लिए छात्रावास और प्राथमिक पाठशाला खोला गया। इसके बाद देश के विभिन्न भागों में छात्रावास और स्कूल खोलने का सिलसिला शुरू हुआ।

वनवासी कल्याण आश्रम द्वारा 1990 में लखनऊ शहर से बाहर रायबरेली रोड पर मोहनलालगंज स्थित बिन्दौआ आश्रम में छात्रावास शुरू किया गया। इस छात्रावास में जनजातीय छात्रों के आवास, भोजन एवं शिक्षा की निःशुल्क व्यवस्था की गयी है। यहां पर गौशाला, कुष्ठ आश्रम और चिकित्सा केन्द्र संचालित है। वर्तमान में 45 छात्र इस छात्रावास में रह कर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। आश्रम की गौशाला में 10 गायें हैं। उनसे निकलने वाला दूध छात्रावास में रहने वाले छात्रों को ही दिया जाता है।

बिन्दौआ आश्रम पर एक कुष्ठ आश्रम भी संचालित है, जहां वर्तमान में कुष्ठ रोगियों के 10 परिवार हैं। आश्रम द्वारा इनकी चिकित्सकीय व्यवस्था भी की जाती है। इसी प्रकार अयोध्या और गोण्डा जनपद में भी वनवासी छात्रों के लिए छात्रावास का संचालन किया जाता है। इसके अलावा वनवासी कल्याण आश्रम की ओर से बलरामपुर में वनवासी बालिकाओं के लिए छात्रावास का संचालन हो रहा है। यहां पर 18 बालिकाएं शिक्षा ग्रहण कर रही हैं।

बड़े परिश्रमी होते हैं वनवासी बालक
वनवासी कल्याण आश्रम द्वारा संचालित ये आवासीय विद्यालय तथा छात्रावास केवल उपाधि या डिग्री प्रदान करने वाले ही शिक्षा के केन्द्र नहीं हैं। यहां वनवासी बालकों में उदात्त हिन्दू आदर्शों की प्रतिष्ठा भी की जाती है। दरअसल, वनवासी बालक बड़े परिश्रमी होते हैं। छात्रावास में रहने वाले बालकों के लिए खेल कूद की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। तीरंदाजी व भाला फेंक में वे बहुत अच्छा प्रदर्शन करते हैं। छात्रावास में रहने वाले कई बालक राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर चुके हैं। यहां रहने वाले छात्रों में सामाजिक समता और सम्मान की भावना भी जागृत की जाती है। इसके अलावा इन छात्रावासों में रहने वाले छात्रों को व्यवसायिक पाठ्यक्रमों का भी प्रशिक्षण दिया जाता है, जिससे आगे चलकर वे स्वावलम्बी बन सकें।

कल्याण सिंह ने आवंटित की थी 10 बीघा जमीन
स्वर्गीय कल्याण सिंह जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तब उन्होंने वनवासी कल्याण आश्रम के नाम से 10 बीघा जमीन आवंटित की थी। राज्यसभा सदस्य स्वर्गीय राजनाथ सिंह सूर्य ने भी अपनी सांसद निधि से 20 लाख रूपये देकर इस आश्रम में कमरे का निर्माण कराया था।

लखनऊ में छात्रावास खोलने के पीछे की कहानी
मोहनलालगंज में वर्ष 1981-82 में कुष्ठ रोगियों के 250 परिवार रहते थे। ईसाई मिशनरियां उनके बीच काम करती थीं। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर कुष्ठ रोगियों ने जन्माष्टमी मनाई तो मिशनरी की नन ने कहा कि यहां पर कोई हिन्दू त्योहार नहीं मना सकते। इस दौरान कई कुष्ठ रोगियों पर ईसाईयों ने चोरी का गलत आरोप लगाकर पुलिस से प्रताड़ित भी करवाया। इसके बाद कुष्ठ रोगियों ने प्रदर्शन किया। उनका कहना था कि हम तो कहीं भी मांग खा लेंगे लेकिन हमारे बच्चे कहां जायेंगे। उस समय जय गोपाल जी संघ के प्रान्त प्रचारक थे। उन्होंने मालवीय मिशन से कहकर उनके छात्रावास में बच्चों को रखवाया।

राष्ट्रीय स्तर का खुलेगा तीरंदाजी प्रशिक्षण केन्द्र
यहां पर तीरंदाजी का प्रशिक्षण केन्द्र प्रस्तावित है। तीरंदाजी का प्रशिक्षण केन्द्र खुल जाने से वनवासी बच्चों को प्रशिक्षण मिल सकेगा और वह अपनी प्रतिभा का उपयोग राष्ट्रीय स्तर पर करने का अवसर मिलेगा।

वनवासी कल्याण आश्रम के क्षेत्रीय संगठन मंत्री मनीराम पाल ने हिन्दुस्थान समाचार को बताया कि कल्याण आश्रम से सम्बद्ध पूर्वी उत्तर प्रदेश की पंजीकृत प्रान्तीय इकाई ‘सेवा समर्पण संस्थान’ वनवासी बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए प्रयत्नशील है।

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