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मौत को मात देकर ‘मार्कोस’ बनते हैं जवान, कश्मीर में इनके हवाले G20 बैठक

नई दिल्ली: G-20 की महत्वपूर्ण बैठकों के दौरान जम्मू कश्मीर में विदेशी मेहमानों की सुरक्षा में मार्कोस कमांडो तैनात किए जाएंगे. यह NSG कमांडो, CAPF के साथ मेहमानों को सुरक्षा कवर देंगे. मार्कोस कमांडो को खास तौर से श्रीनगर की डल झील और झेलम नदी पर तैनात किया जाएगा.

श्रीनगर में मार्कोस कमांडो को तैनात किए जाने का निर्णय जम्मू कश्मीर में हाल ही में हुए आतंकी घटनाओं के बाद लिया गया है. मार्कोस कमांडो को देश की सबसे तेज कमांडो फोर्सेज में गिना जाता है, ये स्पेशलाइज्ड कमांडोज हैं जो हवा-पानी-धरती तीनों जगहों पर दुश्मन को पलभर में धूल चटा सकते हैं. इनकी ट्रेनिंग इतनी कठिन होती है कि एक हजार में से बमुश्किल एक जवान ही मार्कोस कमांडो बन पाता है.

अमेरिकी नेवी सील से बेहतर है मार्कोस
आपने अमेरिकी नेवी सील के बारे में सुना होगा. यदि अलकायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन पर बनी हॉलीवुड फिल्म देखी होती तो इन कमांडो की करामात भी देखी ही होगी. असल में मार्कोस अमेरिकी नेवी सील की तरह ही होते हैं, लेकिन कई मामलों ये नेवी सील से भी बेहतर हैं. इंडियन नेवी की इस कमांडो फोर्स का गठन 1987 में हुआ था. दोनों कमांडो फोर्स कई बार संयुक्त अभ्यास भी कर चुकी हैं, जिनमें मार्कोस ने हर बार खुद को बेहतर साबित किया है.

1 हजार में से एक जवान बन पाता है ‘मार्कोस’
मार्कोस कमांडो फोर्स की ट्रेनिंग बहुत ही टफ होती है जो तकरीबन 3 साल तक चलती है. यह नेवी के प्रशिक्षण से बिल्कुल अलग तरह का प्रशिक्षण होता है, जिसमें जवानों को 25 से 30 किलो वजन लेकर कमर तक कीचड़ में घुसकर 800 मी की दूरी पूरी करनी होती है. इन्हें बर्फ में, पहाड़ों पर, समुद्र में, नदी, झील आदि जगहों पर किसी भी तरह के ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए तैयार किया जाता है. इसके बाद इन्हें पैरा जंपिंग के लिए तैयार किया जाता है. इसके लिए इन्हें बेहद 8 से 10 हजार मीटर की ऊंचाई से कूदना होता है.


ट्रेनिंग छोड़कर भाग जाते हैं जवान
नेवी का कोई भी जवान मार्कोस कमांडो बनने के लिए आवेदन कर सकता है, इसके लिए जवानों को एक महीने से ज्यादा समय तक एक ऐसी परीक्षा देनी पड़ती है जो नरक से भी बदतर होती है. इसमें जवानों को बहुत कम समय के लिए सोने दिया जाता है. ऐसा शारीरिक श्रम कराया जाता है जिससे ज्यादातर जवान अपना नाम वापस ले लेते हैं. जो इस ट्रेनिंग में पास हो जाते हैं, उन्हें तीन साल के प्रशिक्षण के लिए चुन लिया जाता है.

अलग-अलग स्थानों पर होती है ट्रेनिंग
मार्कोस हवा, पानी, धरती कहीं भी लड़ सकते हैं, ऐसे में उन्हें अलग-अलग तरह का प्रशिक्षण देकर तैयार किया जाता है. सबसे पहले उन्हें कोच्चि में स्थित डाइविंग स्कूल में गोताखोरी का प्रशिक्षण दिया जाता है. यहां उन्हें कई अत्याधुनिक हथियारों के साथ पनडुब्बी संचालन की ट्रेनिंग भी दी जाती है. इसके बाद इन्हें समुद्र में प्रशिक्षण के लिए भेजा जाता है. समुद्री इलाकों में प्रशिक्षण के बाद ये आगरा के पैरा स्कूल में ट्रेनिंग लेते हैं. कुछ समय के लिए इन्हें मैदानी और पहाड़ी इलाकों में भी ऑपरेशन के लिए ट्रेनिंग दी जाती है.

ऑपरेशन पवन, कैक्टस और मुंबई हमलों में दिखाया था दम
मार्कोस कमांडो फोर्स अब तक कई बड़े और सफल ऑपरेशनों को अंजाम दे चुकी है. इनमें सबसे खास ऑपरेशन 2008 में मुंबई हमलों के दौरान था, जिसे मार्कोस ने NSG के साथ अंजाम दिया था. इस फोर्स का पहला ऑपरेशन पवन था जो भारतीय शांति सेना ने श्रीलंका में चलाया था. इसका मुख्य मुद्देश्य जाफना को लिट्टे के कब्जे से मुक्त कराना था. इसके अलावा 1988 में ऑपरेशन कैक्टस में भी मार्कोस जवानों ने दम दिखाया था जिसमें मालदीव पर कब्जा किए हुए आतंकियों इस कमांडो फोर्स ने ढेर किया था और मालदीव के तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल गय्यूम को सफलता पूर्वक सुरक्षित ले आई थी.

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