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UPA सरकार में भी जारी हुआ था संसद में धरने पर रोक का आदेश, अब बवाल क्यों?


नई दिल्ली। संसद के मानसून सत्र से पहले राज्यसभा सचिवालय ने शुक्रवार को एक सर्कुलर जारी किया है। इसके मुताबिक संसद भवन परिसर का इस्तेमाल धरना, प्रदर्शन, हड़ताल, अनशन या धार्मिक समारोहों के लिए नहीं किया जा सकता। राज्यसभा सचिवालय के बुलेटिन में कहा गया है, “सदस्य किसी भी प्रदर्शन, धरना, हड़ताल, उपवास या किसी धार्मिक समारोह के लिए संसद भवन के परिसर का उपयोग नहीं कर सकते हैं।”

सचिवालय के इस सर्कुलर के बाद से विपक्ष केंद्र सरकार पर हमलावर है। हालांकि यह पहली बार नहीं है जब इस तरह का आदेश जारी किया गया है। इससे पहले खुद कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में भी ठीक इसी तरह का आदेश जारी किया गया था। पार्लियामेंट्री बुलेटिन के नाम से 2 दिसंबर 2013 को ठीक इसी तरह का सर्कुलर जारी किया गया था। उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार की थी। तब के सर्कुलर में भी संसद के अंदर प्रदर्शन, धरना, हड़ताल, उपवास या किसी धार्मिक समारोह का प्रतिबंध की बात की गई थी।


हालांकि इन एडवायजरी के बावजूद संसद भवन में लगभग हर सत्र के दौरान धरना प्रदर्शन और हड़ताल होती रही है। ताजा सर्कुलर की बात करें तो इसको लेकर कांग्रेस महासचिव एवं राज्यसभा में पार्टी के मुख्य व्हिप जयराम रमेश ने सरकार पर निशाना साधते हुए ट्वीट किया। उन्होंने लिखा, ‘विषगुरू का ताजा प्रहार…धरना मना है।’’ उन्होंने इसके साथ 14 जुलाई का बुलेटिन भी साझा किया।

विपक्ष की नाराजगी खारिज करते हुए लोकसभा कार्यालय का कहना है कि यह एक रूटीन प्रक्रिया है। उन्होंने कहा कि इस तरह का सर्कुलर साल 2013-14 से हमेशा ही जारी हो रहा है। एक दिन पहले ही, संसद में बहस आदि के दौरान सदस्यों द्वारा बोले जाने वाले कुछ शब्दों को असंसदीय शब्दों की श्रेणी में रखे जाने के मुद्दे पर विपक्षी दलों ने सरकार को घेरते हुए कहा था कि सरकार की सच्चाई दिखाने के लिए विपक्ष द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले सभी शब्द अब ‘असंसदीय’ माने जाएंगे।

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