ब्‍लॉगर

यूएन में इस्लामोफोबिया पर आए प्रस्ताव की वास्तविकता व्यवहार में उलट !

– डॉ. मंयक चतुर्वेदी

अभी कुछ ही दिन पहले यूएन में ‘इस्लामोफोबिया’ पर प्रस्ताव लाया गया है। जिसमें पूरी दुनिया से यह कहा गया कि ‘इस्लाम से नफरत’ करने वालों पर अपने देशों में सख्त कदम उठाएं। कहा जा रहा था कि इस्लाम का आतंकवाद से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं । इस्लाम तो शांति का मजहब है, वह तो आपसी प्रेम और भाईचारे में विश्वास रखता है और अब इनका ये प्रेम देखिए कि जिसे ये रमजान का पाक महीना कहते हैं, उसी पवित्र महीने में दुनिया के तमाम देशों में इस्लामिक आतंकवादी घटनाएं घटी हैं।

रूस की राजधानी मॉस्को स्थित कॉन्सर्ट हॉल में आतंकी हमले को अंजाम देना हो या मध्यप्रदेश के इंदौर में दो हिन्दू युवाओं को इसलिए घेर कर मार देने के लिए आतुर हो जाना हो, जिसमें कि वे अपने ई-रिक्शा में भगवान श्रीराम जी का भजन सुन रहे थे । ताजा घटनाक्रम महाराष्ट्र में नासिक का है, जहां के जय भवानी इलाके में हजारों मुस्लिमों की भीड़ ने ”सर तन से जुदा” के नारे लगाए और सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया । मुस्लिमों ने सिटी लिंक बसों और हिंदुओं के निजी वाहनों पर भी हमले किए।


भीड़ ने संकेत सौदागर नाम के एक लड़के पर इस्लाम के पैगंबर मुहम्मद की बेटी फातिमा पर अपमानजनक टिप्पणी का आरोप लगाया। जबकि पूरी हकीकत यह है कि नासिक में हिंदू समुदाय आगामी रामनवमी उत्सव (17 अप्रैल) की तैयारी कर रहा है। इस दौरान सौदागर समेत हिंदू समुदाय के लोगों ने तैयारियों के बारे में इंस्टाग्राम पर पोस्ट करना शुरू किया तो उसे स्थानीय मुस्लिम समुदाय के कई लोग बर्दाश्त नहीं कर सके । इन मुस्लिमों ने हिंदुओं द्वारा पोस्ट की गई तैयारियों वाले पोस्ट पर भगवान राम के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी शुरू कर दी। इनमें ‘ख्वाजा’ नाम का एक लड़का भी शामिल था। उन्होंने अन्य मुस्लिमों के साथ मिलकर आगामी हिंदू त्योहार रामनवमी की तैयारियों का अपमान किया करना शुरू कर दिया। जिसके बाद इस हिन्दू लड़के ने भी कुछ इस्लाम की हकीकत बयान कर दी और मामले ने तूल पकड़ लिया।

अब रमजान के महीने में जिसे यह पाक महीना कहते हैं, शहर के मुस्लिम इकट्ठा होकर इस हिंदू व्यक्ति के लिए मौत की सजा की मांग कर रहे हैं । इस तीनों ही मजहबी आतंक से जुड़े अनेक वीडियो सोशल मीडिया पर आ गए हैं। रशिया टुडे मीडिया ग्रुप की प्रधान संपादक मार्गरीटा सिमोनियन ने रूस घटनाक्रम को लेकर सोशल मीडिया पर एक वीडियो जारी करते हुए संदिग्धों के कबूलनामे और बेहतर तरीके से स्पष्ट कर देती हैं। इनमें से एक ‘शम्सुद्दीन फरीद्दीन’ है, उसने कैमरे के सामने बताया कि पैसों के बदले बेगुनाह लोगों की जान लेने के अपने भयावह मिशन के बारे में चौंकाने वाले विवरण का खुलासा करता है। जैसे-जैसे पूछताछ आगे बढ़ती है, वह स्वीकारता है ”एक इस्लामी मौलवी ने बोला कि जाओ और लोगों को मार डालो, चाहे वे किसी भी प्रकार के हों।” उसे परिणामों की चिंता किए बिना हमले को अंजाम तक पहुंचाने का निर्देश दिया गया था। इसके अलावा, इस आतंकवादी ने अपनी भर्ती प्रक्रिया के बारे में जरूरी जानकारी भी दी है, जोकि लोगों को कट्टरपंथी (इस्लाम के लिए जीने और मरनेवाला) बनाने और हिंसक उद्देश्यों के लिए संगठित करने के लिए अपनाई गई खतरनाक रणनीति पर प्रकाश डालती है।

यह टैक्टिस ठीक वैसी ही है, जैसी कि 15 साल पहले 26 नवंबर, 2008 को समुद्री मार्ग से भारत में घुसे 10 पाकिस्तानी आतंकियों ने अपनाई थी। लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों ने मुंबई पर हमला किया था। 26/11 के हमलावर पाकिस्तान के कराची से अरब सागर होते हुए मुंबई आए थे। इस हमले में 18 सुरक्षाकर्मी समेत 166 लोग मारे गए और 300 से अधिक लोग घायल हुए थे। एक आतंकवादी ‘अजमल कसाब’ को जिंदा पकड़ने में पुलिस को सफलता मिली थी।

संयोग देखिए, रूस के कॉन्सर्ट हाल हमले में और 26/11 मुंबई आतंकी हमले में कितनी अधिक समानताएं हैं। दोनों में ही हमलावर दूसरे देश से आते हैं, जिन देशों से ये आए, वहां की सरकारें इन्हें अपना नागरिक मानने तक से इनकार कर देती हैं। रूस में जो इस्लामिक आतंकी शम्सुद्दीन फरीद्दीन पकड़ा जाता है तो वह रुपयों के लिए इस अपराध को किए जाने का बहाना बनाता है, ताकि सीधे तौर पर इस्लाम और आतंकवाद के कनेक्शन को सिद्ध न किया जा सके । वहीं, भारत में लश्कर-ए-तैयबा का जो आतंकवादी अजमल कसाब पकड़ा जाता है, तब उसके हाथों में कलावा बंधा होता है। जिससे कि यदि सभी दस आतंकवादी भारतीय सेना या पुलिस के हाथों मार भी दिए जाएं तो इस पूरे अटैक को ‘हिन्दू आतंकवाद’ घोषित किया जा सकता।

विचार करें, आतंकवादी अजमल कसाब के जिंदा नहीं पकड़े जाने पर कौन इस पूरे मामले की सच्चाई तुरन्त सामने लाता। उत्तर है कोई भी तत्काल इससे जुड़ी हकीकत को सामने नहीं ला सकता था। वास्तव में जब तक सच्चाई सामने आती, तब तक तो हिन्दुत्व, सनातन धर्म पूरी दुनिया में ”हिन्दू आतंकवाद” के नाम से लांछित होता रहता । यहां उन तमाम भारतीय हुतात्माओं, आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) के तत्कालीन प्रमुख हेमंत करकरे, मेजर संदीप उन्नीकृष्णन, मुंबई के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त अशोक कामटे और सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर विजय सालस्कर को शत् शत् नमन है, जिन्होंने अपने प्राणों को देकर इन आतंकवादियों से देश की रक्षा की और फिर एक बार यह सिद्ध किया कि इस्लामिक आतंकवाद मानवता का शत्रु है, इससे दुनिया को बचाओ।

आज आतंकी शम्सुद्दीन फरीद्दीन जो स्वीकार्य कर रहा है, वह सिर्फ रूस की सच्चाई नहीं है। यह विश्व के उन तमाम देशों की हकीकत है, जोकि लोकतंत्र और धर्म निरपेक्षता को मानते हैं। जब यह कहा जाता है कि ”इस्लामोफोबिया या इस्लाम से भय, मुसलमानों के प्रति तर्कहीन भय या घृणा का पूर्वाग्रह है।” यह अवधारणा मुसलमानों को देश के आर्थिक, सामाजिक और सार्वजनिक जीवन से बाहर करके मुसलमानों के विरुद्ध भेदभाव के व्यवहार को दर्शाती है। यह अवधारणा यह भी मानती है कि इस्लाम अन्य संस्कृतियों के साथ कोई भी मूल्य साझा नहीं करता हैं, यह एक धर्म के बजाय हिंसक राजनीतिक विचारधारा है। तब ऐसा माननेवालों की आलोचना बड़े स्तर पर की जाती है। लेकिन क्या आप इस हकीकत से आंख बंद कर सकते हैं कि दुनिया में जितने आक्रमण हो रहे हैं, जिहाद के माध्यम से बेगुनाहों को मौत के घाट उतारा जा रहा है, दारुल हरब को दारुल इस्लाम बना देने, गजबा-ए-हिंद का जो सपना इस्लाम को माननेवाले कट्टरपंथी देखते हैं, उसके पीछे इस्लाम की विचारधारा जिम्मेदार है। (टीचिंग द ग्लोबल डाइमेंशन : की प्रींसीपल्स एण्ड इफेक्टिव प्रैक्टिस, होल्डन, कैथी; हिक्स, डेविड व्ही, न्यूयार्क: राउट् ल्ज. पृ. 140)

भारत में घटी हाल की घटनाओं को देखो, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी में चौथे वर्ष का छात्र तौसीफ अली फारूकी कट्टरपंथी इस्लामी आतंकवादी संगठन आईएसआईएस में शामिल हो गया। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पोस्ट किए गए एक खुले पत्र के माध्यम से फारूकी के कट्टरपंथी होने का खुलासा हुआ। ‘एक खुला पत्र’ शीर्षक वाले इस पत्र में फारूकी ने भारतीय समाज, संस्थानों और भूमि के प्रति अपनी असहमति व्यक्त की और उन्हें ”काफिर समाज” का हिस्सा बताया। उसने खुलेआम आईएसआईएस के प्रति अपनी निष्ठा और समूह की गतिविधियों में भाग लेने के अपने इरादे की घोषणा की, इसे मुसलमानों और ”काफिरों” (काफिरों) के बीच लड़ाई के रूप में पेश किया।

फारूकी के पत्र में लिखी गई बातें और उसके इरादे भयावह हैं, वह कहता है कि ” मुसलमानों (जो अल्लाह के सामने आत्मसमर्पण कर चुके हैं) और काफिरों (काफिरों) के बीच की लड़ाई है और यह लड़ाई दुनिया के हर हिस्से में है क्योंकि धरती, यह सब अल्लाह की है।” इस घोषणा ने न केवल उसके कट्टरपंथी विश्वासों को उजागर किया, बल्कि यह भी बता दिया कि वह काफिरों के नाम से इस्लाम (मुसलमानों) को छोड़कर संपूर्ण मानव जाति से कितनी घृणा करता है, उन्हें पूरी तरह से समाप्त कर देने की सोच रखता है ।

वस्तुत: फारूकी ने जो कहा है, उससे इस्लाम को कैसे दूर रखा जा सकता है, जबकि मुसलमानों के कई मजहबी ग्रंथ यही शिक्षा देते हों! इस्लाम में शहीद वे होते है जो धर्म के लिए अपनी कुर्बानी दे। “पैगम्बर ने कहा; “शहीदो के लिए परमेशवर अल्लाह के पास छह चीजें हैं। उसे रक्त के पहले प्रवाह के साथ ही माफ कर दिया जाता है, उसे स्वर्ग में उसका स्थान दिखाया जाता है, उसे कब्र की सजा से छूट होती है, सबसे बड़े दुःख से सुरक्षित, गरिमा का ताज उसके सिर पर रखा गया है-जिसके रत्न दुनिया से बेहतर हैं। उसको जन्नत की अल-हुरिल-ऐन (अत्यंत सफेद और बड़े आखों वाली हुस्ना) के साथ कुल बहत्तर पत्नियों से शादी करवाई गई है” (तिरमिधि हदीथ 3:20:1663)।

यहां इस्लाम अल्लाह के रास्ते पर चलनेवालों के साथ दो तरह का व्यवहार करता है, एक- जो लोग सीधे तरीके से अपनी आयु पूरी कर मौत को प्राप्त होते हैं, उनके लिए “पैगंबर ने कहा, “पहला जत्था जो स्वर्ग में प्रवेश करेगा, वह पूर्णिमा की तरह चमकता हुआ) होगा, और उनके बगल में चमकता हुआ आकाश में सबसे शानदार सितारे की तरह होगा। उनके दिल होंगे मानो एक ही आदमी का दिल, क्योंकि उनमें न तो आपस में कोई मतभेद होगा और न ही ईर्ष्या। हर किसी की दो पत्नियां होंगी, जो इतनी सुंदर, शुद्ध और पारदर्शी होंगी कि उनके पैरों की हड्डियों का अस्थि मज्जा (marrow) देखा जा सकता है।” (हदीथ, सहीह बुखारी 4:54:476)।वस्तुत: इस तरह से अनेक हदीथों में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि आम आस्तिकों को कम से कम 2 हूरे मिलेंगी और जो लोग इस्लाम का प्रचार करते हुए, जिहादी युद्धों, संघर्षों में मारे जाते हैं वे सब शहीद हैं और ऐसे सभी लोगों को जन्नत में 72 हूरे मिलती हैं। इतना ही नहीं, “आस्तिक को जन्नत में संभोग में ऐसी-ऐसी ताकत दी जाएगी।” कहा गया: “ऐ अल्लाह के रसूल! और क्या वह ऐसा कर पाएगा?” उसने कहा; “उसे सौ की ताकत दी जाएगी।” (तिरमिधि हदीथ, 4:12:2536) । यानी हरेक पुरुष को 100 लोगों के बराबर ताकत मिलेगी। कुल मिलाकर प्रत्येक पुरुष को जन्नत में अनलिमिटेड शारीरिक सुख मिलने का पक्का भरोसा दिया जाता है। अब आप ही बताइए, यह कहां तक सही है? ऐसे में गैर मुसलमानों के बीच ‘इस्लामोफोबिया’ होगा कि नहीं?

वास्तव में आज यही कारण है कि भारत में बिहार, झारखंड, नई दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, केरल समेत अन्य कई राज्यों से युवा आतंक की राह पर चलते हुए पाए गए हैं और अभी भी लगातार पाए जा रहे हैं । जब यहां के युवा डार्क नेट से जुड़ते हैं तो दूसरे देशों के हैंडलर्स इनको वह सब परोसते हैं, जो कंटेन्ट इनको कट्टर बनाए । इन्हें जिहाद के संवाद और वीडियो दिखाए जाते हैं । वीडियो के अलावा एक किताब का इस्तेमाल प्राय: किया पाया जाता है, मशारी अल-अशवाक इल मशारी अल-उशाक, जिसे कि बोलचाल की भाषा में ”बुक ऑफ जिहाद” कहते हैं। इसे लिखने वाले लेखक का नाम, अहमद इब्राहिम मुहम्मद अल दिमश्की अल दुमयती है। इस लेखक ने हदीस में लिखी बातों को अपने तरीके से समझाया है। पुस्तक में लिखा है कि (इस्लाम पर) भरोसा न करने वालों से युद्ध करो, उनसे जंग लड़ो।

इस पुस्तक में लिखे विचारों की क्रूरता और खतरनाक सोच को इससे भी समझा जा सकता है कि केरल पुलिस ने राज्य सरकार से मांग की थी कि इस किताब को तत्काल बैन करवा दीजिए। केरल पुलिस इसे पढ़कर इस निष्कर्ष पर पहुंची थी कि किताब के लेख युवाओं को आतंकी संगठन से जुड़ने के लिए उकसाते हैं। ऐसे में आप स्वयं से अंदाजा लगा सकते हैं कि इस प्रकार की पता नहीं कितनी किताबें और वीडियो क्लिप होंगी जोकि इस्लाम में दिखाकर आतंक के रास्ते पर लोगों को चलाने के लिए प्रेरित किया जाता होगा। अकेले भारत में ही पिछले एक साल में इस्लामिक आतंकवाद से जुड़ी 100 से अधिक घटनाएं घटी हैं, जिसमें राष्ट्रीय जांच अभिकरण (एनआईए) ने कई आतंकवादियों एवं संदिग्ध आतंकियों को पकड़ा है। यह तो सिर्फ भारत में एक वर्ष की स्थिति है। पूरे विश्व के देशों का आकलन करेंगे तो ध्यान में आएगा कि इस्लामिक जिहादी सोच और इसके लिए कुछ भी कर गुजरने की जिद आज 21वीं सदी की दुनिया में भी मानवता की सबसे बड़ी शत्रु बनी हुई है।

डैनियल बेंजामिन और स्टीवन साइमन ने अपनी पुस्तक द एज ऑफ सेक्रेड टेरर के 40 वें पृष्ठ पर लिखा है कि इस्लामिक आतंकवादी हमले विशुद्ध रूप से पान्थिक हैं। उन्हें “एक संस्कार के रूप में देखा जाता है … ब्रह्माण्ड में इस्लाम को बहाल करने का इरादा एक नैतिक आदेश है।”… यह न तो राजनीतिक या रणनीतिक है बल्कि “मोचन का कार्य” का अर्थ “ईश्वर (अल्लाह) के अधिपत्य को नकारने वाले को अपमानित करना और उनका वध करना है”। चार्ली हेब्डो के ऊपर गोलीबारी के लिए उत्तरदायी कोउची भाइयों में से एक ने फ्रांसीसी पत्रकार को यह कहते हुए बुलाया, “हम पैगंबर मोहम्मद के रक्षक हैं।” (“डज इस्लाम फ्यूल टेररिज्म ?” सीएनएन 13 जनवरी 2015) ।

ब्रिटेन की मंत्री सुएला ब्रेवरमैन ने हाउस ऑफ कॉमन्स में उक्त विषय पर पिछले वर्ष ”कांटेस्ट:द यूनाइटेड किंग्डम्स स्ट्रेटेजी फॉर कॉउंटरिंग टेररिज्म 2023” नामक रिपोर्ट पेश की थी । रिपोर्ट बताती है, कैसे दुनिया के कई देशों में इस्लामिक जिहादियों की करतूतें चल रही हैं, जिनसे कि सचेत रहने की जरूरत है। ब्रिटेन के लिए इस्लामी आतंकवाद सबसे बड़ा खतरा बनकर उभरा है। जिहादी गुट अल कायदा तथा इस्लामिक स्टेट और उनसे जुड़े अन्य छोटे-बड़े गुट और ज्यादा इलाकों में फैलते जा रहे हैं और इनकी गतिविधियां बेरोकटोक जारी हैं। रिपोर्ट में साफ बताया गया है उनके देश ब्रिटेन में अगर सबसे बड़ा खतरा कोई है तो वह इस्लामी आतंकवाद ही है। कुल मिलाकर इस्लामिक आतंक या कट्टरपन्थी इस्लामी आतंकवाद हिंसक इस्लामवादियों द्वारा किये गये निर्दोष नागरिकों के विरुद्ध आतंकवादी कार्य हैं जिनकी एक पान्थिक प्रेरणा होती है। ( “टेररिज्म “. द ऑक्सफोर्ड इनसाइक्लोपीडिया ऑफ द इस्लामिक वर्ल्ड , संपादक: जॉन एल. एस्पोसिटोल ऑक्सफ़ोर्ड : ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस )।

”विद्वानों का कहना है कि इस्लाम में आतंकवाद के लिए कोई स्थान नहीं है,लेकिन दुर्भाग्यवश मुस्लिम-बहुल देशों कि सत्ता आतंक पर ही टिकी हुई है और इस्लाम का अनुसरण करनेवाले अनेक संगठन, आतंकवाद के माध्यम से ही अपने राजनीतिक उद्देश्यों को पूर्ण करना चाहते हैं। कश्मीरी समस्या के कारण भारत, मजबह आधारित आतंकवाद का लंबे समय से शिकार रहा है। लेकिन यह समस्या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा और बहस का विषय तब बनी जन 11 सितंबर को न्यूयार्क और वाशिंगटन में आतंकवादी प्रहार हुए और वर्ल्ड ट्रेड सेंटर ध्वस्त हो गया।” (मुस्लिम आतंकवाद बनाम अमेरिका, संपादक-राजकिशोर, वाणी प्रकाशन) ।

अंत में यही कि ”दशकों से ऐसे सबूत सामने आते रहे हैं, जो दिखाते हैं कि गैर अब्राहमिक धर्मों के मानने वाले भी ‘धार्मिक फोबिया’ से प्रभावित हुए हैं। इसमें भी खास तौर से एंटी हिंदू, एंटी बौद्ध, एंटी जैन और एंटी सिख तत्व हैं।” धार्मिक फोबिया का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि मंदिर, गुरुद्वारा और मोनेस्ट्री पर हमले आज भी लगातार किए जा रहे हैं। बामियान बुद्ध का ध्वंस, सिखों का नरसंहार, मंदिरों पर हमले और मूर्तियों को तोड़ना गैर इब्राहमिक धर्मों के खिलाफ फोबिया दिखाता है। वास्तव में इस्लामोफोबिया उन लोगों द्वारा गढा गया एक सिद्धांत है जो नहीं चाहते कि इस्लामिक सच्चाइयां सबके सामने आएं। कहना होगा कि आम इंसान को सच्चाई से अवगत नहीं कराने से बड़ा कोई गुनाह नहीं हो सकता है, जोकि इस वक्त यूएनओ कर रहा है।

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