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यूपी में लौटा ‘बुलडोजर बाबा’ का राज

– प्रभुनाथ शुक्ल

उत्तर प्रदेश के चुनाव नतीजों ने जो राजनीतिक संदेश दिया है उसके अलग मायने हैं। प्रतिपक्ष की लाख कोशिशों के बावजूद भारतीय जनता पार्टी भारी बहुमत से सरकार बनाने में कामयाब रही। सत्ता में वापसी कर भाजपा ने साफ कर दिया है कि उसके मुकाबले विपक्ष कहीं नहीं ठहरता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता बरकरार है। भाजपा ने जातिवाद की राजनीति को ध्वस्त कर पुनः सत्ता में वापसी की है। उत्तर प्रदेश की राजनीतिक में यह बहुत बड़ी सफलता है। कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया। कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी के साथ सपा को यह संदेश देने में भाजपा सफल हुई है कि प्रदेश में अब विकास-विश्वास की राजनीति ही सफल होगी।

एक लंबे दौर तक राज्य में समाजवादी और बहुजन समाज पार्टी का सियासी दबदबा था। राज्य में 90 के दशक के बाद कांग्रेस की वापसी नहीं हो पाई। 40 साल तक उत्तर प्रदेश की सत्ता में रहने वाली कांग्रेस हर चुनाव में अपना जनाधार खोती गई। कांग्रेस धर्मनिरपेक्षता के लबादे में इतना उलझी कि मंडल-कमंडल की राजनीति में उसका अस्तित्व ही खत्म हो गया। उत्तर प्रदेश में 2017 के पहले जातिवादी राजनीति चरम पर थी।

उत्तर प्रदेश में भाजपा को घेरने के लिए सपा-बसपा और कांग्रेस ने कई प्रयोग दुहराए लेकिन उसका कोई खास प्रभाव नहीं दिखा। क्योंकि विपक्ष आंतरिक रूप से टूटा और बिखरा था जिसका सीधा फायदा भाजपा को मिला। केंद्र और प्रदेश में भाजपा की डबल इंजन की सरकार होने की वजह से विकास पर भी गहरा प्रभाव पड़ा। जिस मुद्दों से कांग्रेस बचती थी भाजपा उसे फ्रंटफुट पर खेलती रही। राममंदिर, धारा 370, तीन तलाक, एनआरसी और हिंदुत्व जैसे मुद्दों को धार दिया। ‘सबका साथ सबका विकास’ वाले मंत्र को अपनाकर भाजपा आगे बढ़ी और कामयाब हुईं। उत्तर प्रदेश में भाजपा जितनी मजबूत हुई विपक्ष उतना कमजोर हुआ। वर्तमान समय में बदले सियासी हालात में विपक्ष को गंभीरता से विचार करना होगा। उत्तर प्रदेश में भाजपा के मुकाबले विपक्ष कहीं दिख नहीं रहा है। इसमें संदेह नहीं है कि भाजपा की प्रचंड जीत ने 2024 का भी मार्ग प्रशस्त कर दिया है।

उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी दलित विचारधारा की मुख्य पार्टी मानी जाती रही। मायावती चार-चार बार प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। लेकिन बहुजन समाज पार्टी इतनी जल्द कमजोर हो जाएगी इसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती थी। देश में आज जिस हालात से कांग्रेस गुजर रही है, वही बहुजन समाज पार्टी की स्थिति है। हालांकि आज भी दलित मत उसके साथ है, लेकिन अब उसकी संख्या भी कम हो चली है। सिर्फ दलितों के भरोसे वह चुनाव नहीं जीत सकती। 2007 में सोशल इंजीनियरिंग के जरिए अगड़े और दलितों को लेकर उन्होंने सरकार बनायी थी। लेकिन इस बार के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी की जो दुर्गति हुई है वह चिंतनीय। चुनाव परिणाम को देखकर साफ होता है कि दलित विचारधारा की मुख्य पार्टी का अस्तित्व खत्म हो चला है। मायावती अभी तक कोई सियासी उत्तराधिकारी नहीं दे सकी हैं। साल 2017 में 19 सीटों पर जीत हासिल करने वाली बहुजन समाज पार्टी एक सीट पर सिमट गई। उसे करीब 12.9 फ़ीसदी मत मिले।

समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने जमीनी मेहनत की लेकिन उनके कार्यकर्ताओं ने जोश में होश खो दिया। अति उत्साह में समाजवादी कार्यकर्ताओं के जिस तरह सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हुए उसका खमियाजा उसे भुगतना पड़ा। अखिलेश यादव की तरफ से बहुत अच्छी मेहनत की गई लेकिन परिणाम उनके पक्ष में नहीं रहा। अकेले दम पर उन्होंने जो मेहनत की वह प्रशंसनीय है। सपा को 35 फ़ीसदी वोट मिले और 124 सीटों पर संतोष करना पड़ा। लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी 41.3 फ़ीसदी वोट हासिल कर 274 सीटों पर भगवा लहरा दिया।

प्रियंका गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस 2017 का भी प्रदर्शन दोहराने में कामयाब नहीं हुई। उसे सिर्फ दो सीटें मिली जबकि पांच सीटों का घाटा हुआ। कांग्रेस को ढाई फीसदी मत हासिल हुए। कांग्रेस और उसके शीर्ष नेतृत्व के लिए यह मंथन का विषय है।

निश्चित रूप से उत्तर प्रदेश की राजनीति में भाजपा ने नया इतिहास लिखा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बुलडोजर बाबा के नाम से प्रसिद्ध हो गए हैं। भाजपा को जीत दिलाने में उसका सांगठनिक अनुशासन, सामूहिक प्रयास और सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास एवं सबका प्रयास का नारा महत्वपूर्ण रहा। राशन, सुशासन का मुद्दा भी अहम रहा है। भाजपा के मजबूत सांगठनिक ढांचे से यह कामयाबी मिली है।

भाजपा अपने संगठन को मजबूत बनाने के लिए कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ती है। पार्टी के सांगठनिक ढांचे में सबको जिम्मेदारी दी जाती है। उसकी राजनीतिक सफलता के पीछे यह भी आम कारण रहे हैं। उत्तर प्रदेश में भाजपा आम लोगों का विश्वास जीतने में सफल रही। राज्य में जातीय मिथक को तोड़ने में भी वह सफल हुई है।

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