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पांच हजार से ज्यादा नहीं वसूल सकते नामांतरण शुल्क सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की प्राधिकरण की याचिका

January 29, 2025

  • इंदौर हाईकोर्ट आदेश को रखा बरकरार, रियल इस्टेट फर्म सहित अन्य आवंटितों को मिली बड़ी राहत
  • 6 फीसदी तक रोक दी थी नियम विरुद्ध शुल्क की राशि

इन्दौर। प्राधिकरण को एक बड़ा झटका लगा है और सुप्रीम कोर्ट में उसके द्वारा दायर की गई एसएलपी को खारिज कर दिया और इस संबंध में इन्दौर हाईकोर्ट द्वारा दिए गए आदेश को बरकरार रखा। दरअसल प्राधिकरण ने योजना 78 में लगभग 70 हजार स्क्वेयर फीट के एक भूखंड का नामांतरण शुल्क नियम विरुद्ध 6 फीसदी गाइड लाइन के मुताबिक जमा कराने के नोटिस जारी किए थे, मगर हाईकोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट कहा कि अधिकतम 5 हजार रुपये ज्यादा प्राधिकरण नामांतरण शुल्क नहीं वसूल सकता, जो शासन के नियम के आधार पर पर है। प्राधिकरण ने हाईकोर्ट के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, मगर उसे हार का मुंह देखना पड़ा। इससे पुराने नामांतरण प्रकरणों में भी राशि वापस लौटाने की स्थिति निर्मित हो सकती है।

प्राधिकरण ने संकल्प पारित कर नामांतरण शुल्क की राशि तीन फीसदी तय कर दी, मगर इस प्रकरण में 6 फीसदी तक अंतरण शुल्क और नामांतरण की राशि वसूल करने का नोटिस जारी किया गया। दरअसल यह मामला ब्रिलियंट इस्टेट लिमिटेड से जुड़ा है, जिसकी अपनी ही फर्म यूडीसीएस इस भूखंड का हस्तांतरण हुआ था, जिसके चलते फर्म की ओर से नामांतरण का आवेदन लगाया गया। इस पर प्राधिकरण ने अंतरण और नामांतरण शुल्क की राशि गाइड लाइन के मुताबिक 6 फीसदी जमा कराने को कहा, जिसे फर्म की ओर से हाईकोर्ट में चुनौती दी गई, जिसमें कहा गया कि मप्र नगर तथा ग्राम निवेश अधिनियम 2018 और उसके बाद 2021 में हुए संशोधन के मुताबिक .025 फीसदी या 5 हजार रुपये, जो ज्यादा है, उतनी ही राशि नामांतरण शुल्क की ली जा सकती है, मगर प्राधिकरण ने 2019 में एक संकल्प पारित किया, जिसके मुताबिक जो प्रापर्टी 1975 में बेची, उस पर 3 फीसदी ही नामांतरण शुल्क लेना और 2013 के बाद बिकी सम्पत्तियों पर 1 प्रतिशत और उसी के अनुरूप शुल्क लेना तय किया गया, मगर इन्दौर हाईकोर्ट ने प्राधिकरण के इस नोटिस को नियम विरुद्ध माना और अपने आदेश में स्पष्ट कहा कि नियम के मुताबिक प्राधिकरण अधिकतम 5 हजार रुपये तक का ही नामांतरण शुल्क वसूल कर सकता है, उससे अधिक नहीं।

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इसके पश्चात् प्राधिकरण ने हाईकोर्ट के इस आदेश के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की, मगर सुप्रीम कोर्ट ने उसे सुनवाई योग्य भी नहीं माना और खारिज करते हुए इन्दौर हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा, इसके चलते रियल इस्टेट फर्म को तो बड़ी राहत मिली, साथ ही प्राधिकरण को झटका लगा, मगर अब एक और समस्या यह उत्पन्न होगी कि जिन भूखंड आवंटितों ने प्राधिकरण द्वारा मांगी गई तीन फीसदी नामांतरण शुल्क की राशि जमा करा दी है, क्या वे इस आदेश के प्रकाश में अब अपनी जमा की गई राशि वापस हासिल करने के आवेदन देंगे? बहरहाल प्राधिकरण ने जो नियम विरुद्ध शुल्क वसूली की कार्रवाई की, वह सर्वोच्च न्यायालय से भी अवैध घोषित की गई।

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