वाशिंगटन। संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय (UN) के शौचालयों में अब पेपर टॉवल (paper towel) नहीं मिलेंगे। विश्व की सबसे बड़ी शांति रक्षा संस्था ने सालाना करीब 1 लाख डॉलर बचाने के लिए यह छोटा-सा लेकिन चौंकाने वाला कदम उठाया है। अब 42 मंजिला सचिवालय भवन में हाथ सुखाने का एकमात्र विकल्प हाई-स्पीड इलेक्ट्रिक हैंड ड्रायर ही रह जाएगा। संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता फरहान हक ने बुधवार को पत्रकारों से कहा कि हमें अपना मूल काम जारी रखना है। सदस्य देशों से कई सालों से विश्वसनीय फंडिंग नहीं मिल रही, इसलिए हमें हर तरह से बचत करनी पड़ रही है।
फरहान हक ने स्पष्ट किया कि मुख्यालय के शौचालयों से पेपर टॉवल पूरी तरह हटा दिए जाएंगे, जिससे हर साल लगभग 1 लाख अमेरिकी डॉलर की बचत होगी। परिचालन खर्च कम करने और सुविधाओं को पर्यावरण के अनुकूल बनाने की निरंतर कोशिशों के तहत यह फैसला लिया गया है। सुविधा टीम के एक ईमेल में कर्मचारियों को सलाह दी गई है कि अब हर शौचालय में मौजूद एक या अधिक हाई-स्पीड इलेक्ट्रिक हैंड ड्रायर का ही इस्तेमाल करें।
ईमेल में कहा गया है कि इलेक्ट्रिक हैंड ड्रायर का कार्बन फुटप्रिंट रिसाइकिल्ड पेपर टॉवल की तुलना में एक-तिहाई है। साथ ही, फ्लश किए गए पेपर टॉवल से टॉयलेट बार-बार जाम हो जाते हैं, जिससे महंगी मरम्मत और गंदगी की समस्या पैदा होती है।
इतना ही नहीं, महासचिव एंटोनियो गुटेरेस बजट और स्टाफ में भारी कटौती कर रहे हैं, क्योंकि प्रमुख दानदाता देश, खासकर अमेरिका अपने वादों से मुकर रहे हैं। अमेरिका सामान्य बजट का 22% देता है, लेकिन इस साल उसने 80 करोड़ डॉलर से अधिक के बकाया का भुगतान अभी तक नहीं किया है और पिछले कुछ वर्षों के कुछ बकाया भी बाकी हैं।
वित्तीय संकट नई बात नहीं
संयुक्त राष्ट्र में वित्तीय संकट कोई नई बात नहीं है। कोविड महामारी और डोनाल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल में भी मानवीय एवं विकास कार्यों की फंडिंग बुरी तरह घटी थी। पिछले साल मई से ही बढ़ते वैश्विक संकटों के बावजूद मुख्यालय जल्दी बंद होने लगा था, एयर कंडीशनिंग कम कर दी गई थी और नई भर्तियां रोक दी गई थीं। इस साल स्थिति और भी गंभीर हो गई है।
इस सप्ताह की शुरुआत में संयुक्त राष्ट्र के मानवीय सहायता कार्यालय (OCHA) ने पिछले पांच साल में सबसे कम राशि की अपील की और स्वीकार किया कि उसे अब ‘यथार्थवादी’ होना पड़ेगा। अवर महासचिव टॉम फ्लेचर ने कहा कि इतनी कम राशि मांगना दिल दहला देने वाला है। संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों के अनुसार, धन की कमी ने दक्षिण सूडान तथा डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो जैसे देशों में शांति रक्षा मिशनों पर भारी दबाव डाला है और दुनिया भर में बीमारी, गरीबी तथा अन्य मानवीय प्रयासों को गंभीर खतरे में डाल दिया है।

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