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भारत के पहले सैटेलाइट बैलगाड़ी पर ले जाने पर दुनिया ने बनाया मजाक, अब हो रही तारीफ

August 29, 2023

नई दिल्ली (New Delhi)। आज भारत चांद (India Moon) के उस हिस्से पर भी पहुंच गया है जहां अब तक दुनिया का कोई देश नहीं पहुंचा। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव (south pole) पर रूस ने पहुंचने की कोशिश की लेकिन उसका यान सतह से थोड़ी दूरी पर क्रैश हो गया। भारत दुनिया के उन चार देशों में शामिल है जो चांद तक पहुंच चुके हैं। हालांकि भारत में अंतरिक्ष यानों और सैटलाइट्स का सपना देखने वाले लोगों की मेहनत बहुत बड़ी है। कम संसाधनों और इन्फ्रास्ट्रक्चर के बगैर भारत के वैज्ञानिकों ने 1972 में ही भारत का पहला सैटलाइट ‘ आर्यभट्ट’ तैयार कर दिया था। बैलगाड़ी पर लदे इस सैटलाइट को देखकर दुनिया अचंभित हो गई थी।

चंद्रयान के लैंडर विक्रम का नाम हमारे देश के बड़े खगोलशास्त्री विक्रम साराभाई के नाम पर है। 1966 में इंडियन नेशनल कमिटी फॉर स्पेस रिसर्च (INCOSPAR) के डायरेक्टर रहने के दौरान उन्होंने अपने एक पीएचडी स्टूडेंट को बेंगलुरु बुलाया। उनका नाम था उडुपी रामचंद्र राव। उस वक्त वह अहमदाबाद में सोलर कॉस्मिक रेज फिनोमिना पर रिसर्च कर रहे थे। साराभाई ने उन्हें सैटलाइट रिसर्च टीम की जिम्मेदारी दे दी।

34 साल के यूआर राव ही अपनी टीम में एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने सैटलाइट को देखा था। उस समय सैटलाइट इंजिनियरिंग टीम दो हिस्सों में बंटी थी। एक थी थुंबा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन (त्रिवेंद्रम के पास) और दूसरी पीआरएल अहमदाबाद। 1971 में साराभाई के निधन के बाद सतीश धवन को INCOSPAR की जिम्मेदारी दी गई। उनके जिम्मेदारी संभालने से पहले ही 1969 में इसका नाम ISRO दे दिया गया था। धवन ने बेंगलुरु के बाहरी इलाके से शिफ्ट करके इसरो को कहीं अच्छी जगह देने के लिए सरकार से बात की ताकि यूआर राव सैटलाइट पर ठीक से काम कर सकें।
आपको जानकर हैरानी होगी कि इसरो को ऐसी जगह दी गई थी जहां छत तक नहीं थी। पहले तो इसे IISC के जिमखाना में शिफ्ट किया गया लेकिन बाद में सरकार ने पीन्या इंडस्ट्री इलाके में शहर से बाहर एक टिन शेड उपलब्ध करवाया। यहां भी सुविधाओं की भारी कमी थी। हालांकि वैज्ञानिकों ने यहां भी अपना दिमाग लगाया और थर्मॉकोल, टेप आदि की मदद से इस टिन शेड को भी एक स ाफ -सुथरे कमरे का रूप दे दिया। इसी टिन शेड में तीन साल की मेहनत के बाद यूआर राव के नेतृत्व में भारत का पहला सैटलाइट तैयार हो गया। इसको नाम दिया गया आर्यभट्ट।



अमेरिका के अखबारों में बैलगाड़ी पर लदे सैटलाइट आर्यभट्ट की तस्वीरें छपीं। राव ने एक और जुगाड़ लगाया। भले ही इस सैटलाइट को खुले एरिया में लॉन्च किया जाना था लेकिन उस दौरान कुछ ट्रक इस तरह खड़े किए गए थे कि जैसे वे एंटिना का काम कर रहे हों। 2017 तक यूआर राव ने करीब 18 और सैटलाइट डिजाइन किए। लंबे समय तक वह इसरो के चेयरमैन रहे और 2017 में 85 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। आज बेंगलुरु के इसरो सेंटर पर पूरी दुनिया की नजर रहती है। यहीं चंद्रयान तैयार किया गया जो कि आज चांद पर टहल रहा है। आपको बता दें कि चंद्रयान-3 को यूआर राव सैटलाइट सेंटर में ही तैयार किया गया।

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