नई दिल्ली। शिवपुराण के अनुसार, भैरव भी भगवान शंकर के ही अवतार हैं। भैरव के बारे में प्रचलित है कि ये अति क्रोधी, तामसिक गुणों वाले तथा मदिरा के सेवन करने वाले हैं। शिव के भैरव अवतार का मूल उद्देश्य है कि मनुष्य अपने सारे अवगुण जैसे- मदिरापान, तामसिक भोजन, क्रोधी स्वभाव आदि भैरव को समर्पित कर पूर्णत: धर्ममय आचरण करें। बनारस(Banaras) को हमेशा से ही देव भूमि के नाम से जाना जाता रहा है। काशी गंगा नदी के किनारे बसा है। बनारस धार्मिक महत्व के कारण दुनियाभर में प्रसिद्ध है। यहां दूर-दूर से यात्री बाबा के दर्शन के लिए आते हैं। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख मंदिर विश्वनाथ(Mandir Vishwanath) अनादिकाल से ही काशी में है। सह भगवान शिव और माता पार्वती का आदि स्थान है। यहां काशी में गंगा आरती (Ganga Aarti) में शामिल होने के लिए दूर-दूर से आते हैं। और भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि दैविकत काल से ही महादेव काशी में ही रहते थे। आइए जानते हैं काशी विश्वनाथ मंदिर की पौराणिक कथा (mythology) के बारे में।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, एक बार देवताओं ने ब्रह्मा देव और विष्णु जी से पूछा कि ब्रह्मांड में सबसे श्रेष्ठ कौन है? ये सवाल सुनकर ब्रह्मा और विष्णु जी में श्रेष्ठता साबित करने की होड़ लग गई। इसके बाद सभी देवता, ब्रह्मा और विष्णु जी कैलाश पर्वत पहुंचे और भगवान भोलेनाथ (Lord Bholenath) से पूछा कि ब्रह्मांड में सबसे श्रेष्ठ कौन हैं?
भोलेशंकर ने ली परीक्षा
देवताओं का ये सवाल सुनते ही तत्क्षण भगवान शिव (Lord Shiva) जी के शरीर से ज्योति कुञ्ज निकली, जो नभ और पाताल की दिशा की ओर बढ़ी। इसके बाद महादेव ने ब्रह्मा और विष्णु जी से कहा कि आप दोनों में जो इस ज्योति की अंतिम छोर पर सबसे पहले पहुंचेगा, वही श्रेष्ठ है। भोलेशंकर की बात सुनते ही ब्रह्मा और विष्णु जी अनंत ज्योति की छोर पर पहुंचने के लिए निकल पड़े। कुछ समय दोनों वापस आ गए। तब शिव जी ने पूछा कि क्या आप दोनों में से किसी को अंतिम छोर प्राप्त हुआ?
ब्रम्हा जी ने झूठ बोल दिया
भोलेशंकर की बात का जवाब देते हुए विष्णु जी बोले, यह ज्योति अनंत है, इसका कोई अंत नहीं। जबकि ब्रम्हा जी ने झूठ बोल दिया। उन्होंने कहा कि मैं इसके अंतिम छोर तक पहुंच गया था। ब्रह्मा जी की बात सुनते ही शिव जी ने विष्णु जी को श्रेष्ठ घोषित कर दिया। इससे ब्रह्मा जी क्रोधित हो उठें और शिव जी के प्रति अपमान जनक शब्दों का इस्तेमाल करने लगे।
क्रोध से उत्पन्न हुए काल भैरव
ब्रह्मा जी के अपशब्द सुनते ही भगवान शिव क्रोधित हो उठे और उनके क्रोध से काल भैरव की उत्पत्ति हुई। काल भैरव ने ब्रम्हा जी के चौथे मुख को धड़ से अलग कर दिया। उस समय ब्रह्मा जी को अपनी भूल का एहसास हुआ और उन्होंने उसी समय भगवान शिव जी से क्षमा प्रार्थना की। इसके बाद कैलाश पर्वत पर काल भैरव देव के जयकारे लगने लगे। यह ज्योति द्वादश ज्योतिर्लिंग काशी विश्वनाथ कहलाया।
नोट– उपरोक्त दी गई जानकारी व सूचना सामान्य उद्देश्य के लिए दी गई है। हम इसकी सत्यता की जांच का दावा नही करतें हैं यह जानकारी विभिन्न माध्यमों जैसे ज्योतिषियों, धर्मग्रंथों, पंचाग आदि से ली गई है । इस उपयोग करने वाले की स्वयं की जिम्मेंदारी होगी ।
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