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ये पॉलिटिक्स है प्यारे

September 29, 2025


दिग्विजय सिंह के आंदोलन से अलग हो गई कांग्रेस
प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री (Former Chief Minister)  दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) को यह अच्छी तरह से मालूम है कि कब कहां जाकर, कौन से मुद्दे को किस तरह से उठाना है और पब्लिसिटी (publicity) कैसे मिलेगी। यही कारण है कि पिछले दिनों जब वे उच्च न्यायालय (High Court) में लगाई गई अपनी याचिका की सुनवाई के लिए इंदौर आए तो उनकी जानकारी में सीतलामाता बाजार में दुकानों से मुस्लिम कर्मचारियों को निकालने का मामला मौजूद था। उन्होंने अपनी जानकारी के आधार पर इंदौर आने के बाद तय कर लिया कि वह सीतलामाता बाजार जाएंगे और वहां मुस्लिमों और व्यापारियों से मिलेंगे। उन्होंने इस बात की सूचना शहर कांग्रेस अध्यक्ष चिंटू चौकसे को भी दे दी। इसके बावजूद दिग्गी राजा के इस आंदोलन से शहर कांग्रेस के नेता और जीतू पटवारी के समर्थक गायब रहे। बात केवल इन लोगों के गायब होने की ही नहीं है, बल्कि फोन लगाकर दूसरे नेताओं को भी इस आंदोलन में नहीं जाने के लिए दबाव बनाए जाने की भी जानकारी सामने आ रही है। कमलनाथ के समर्थकों को तो दिग्विजय सिंह से कोई मतलब है ही नहीं। ऐसे में दिग्विजय सिंह अपने मु_ीभर समर्थकों के साथ सीतलामाता बाजार पहुंचे और उन्होंने वहां भाजपा द्वारा तैयार किए गए माहौल के बीच में अपनी राजनीति पूरी कर ली। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने तो 1 दिन पहले संभाग आयुक्त को कार्यालय में जाकर ज्ञापन देकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली थी, लेकिन ऑफिस की राजनीति पर राजा की मैदानी राजनीति भारी पड़ी….


खामोश है भाजपा
सीतलामाता बाजार के विवाद पर भाजपा के शहर अध्यक्ष सुमित मिश्रा से लेकर सभी नेताओं ने खामोशी साध रखी है। जब मामला गरमाने लगा और सीतलामाता बाजार से व्यापारियों ने अपने मुस्लिम कर्मचारियों को निकालने का काम किया तो उस समय भी भाजपा के नेता खामोश ही रहे। सुमित मिश्रा ने तो तय कर लिया है कि विवाद के मामलों में अपने को बोलना ही नहीं है। खासतौर पर जब मामला विधानसभा क्षेत्र क्रमांक 4 से जुड़ा हुआ हो तो फिर उस पर यदि कुछ बोलना होगा तो महापौर बोलेंगे। महापौर पुष्यमित्र भार्गव भी निश्चित कर चुके हैं कि अपने को अपना काम करना है और ऐसे किसी विवाद के मामले में नहीं बोलना है। इस तरह पूरी भाजपा खामोश हो गई और बोलने का काम अकेले विधायक पुत्र एकलव्यसिंह गौड़ करते रहे। यह पूरा विवाद वैसे भी उनकी छवि को सपोर्ट करने वाला है, इसलिए वह अपनी छवि को मजबूत बनाने में लगे रहे।

चिंटू की चेतावनी
शहर कांग्रेस के अध्यक्ष चिंटू चौकसे ने आए दिन इंदौर में अलग-अलग नेताओं द्वारा किए जाने वाले आंदोलन को लेकर चेतावनी जारी कर दी है। कांग्रेस की समन्वय समिति की बैठक में चिंटू ने साफ शब्दों में कहा कि अब किसी को भी इंदौर में कोई कार्यक्रम करना है, कहीं भी धरना प्रदर्शन करना है, ज्ञापन देना है, किसी बड़े नेता को बुलाकर आंदोलन करना है तो उन्हें पहले शहर कांग्रेस से अनुमति लेना पड़ेगी। शहर कांग्रेस से अनुमति लिए बगैर कोई भी नेता किसी कार्यक्रम का आयोजन नहीं करेगा। जब चिंटू यह चेतावनी दे रहे थे तब उनके स्वर तीखे थे। उनकी इस चेतावनी से कांग्रेस में खलबली मच गई है। इस समय चिंटू को प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी के राइट हैंड के रूप में पहचाना जाता है। अब चिंटू की यह चेतावनी आने वाले दिनों में कांग्रेस में बहुत गुल खिलाएगी… सभी की रुचि यह देखने में है कि अब इस चेतावनी के बाद क्या-क्या होता है…

ठंडे बस्ते में भाजपा की शहर इकाई
भाजपा इंदौर शहर अध्यक्ष का फैसला भी पूरे प्रदेश के फैसले हो जाने के बाद जाकर सबसे अंत में ले पाई थी। अब लगता है कि वह इसी परंपरा को शहर इकाई के गठन में भी अपनाने जा रही है। प्रदेश के अलग-अलग शहरों और जिले की भाजपा की इकाई की घोषणा होते जा रही है। इंदौर शहर इकाई के गठन को लेकर शुरू हुई कवायद ठंडे बस्ते में चली गई है। पहले तो कहा गया था कि श्राद्ध पक्ष शुरू हो गया है, इसलिए मामले को रोक दिया गया है। अब तो श्राद्ध समाप्त होने के साथ-साथ नवरात्रि का त्योहार भी समाप्त होने की ओर है, लेकिन शहर इकाई के गठन की फाइल भाजपा के प्रदेश मुख्यालय में अभी नहीं निकली है। एक अनार सौ बीमार वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए अभी तो किसी को खुश और किसी को नाराज नहीं किया जा रहा है, लेकिन अनंतकाल तक मामले को टालना भी संभव नहीं है। ऐसे में अब सभी की रुचि यह जानने में है कि शहर इकाई के गठन की हलचल कब शुरू होगी..?

नए आयुक्त ने दिया महापौर को झटका
इंदौर नगर निगम के नए आयुक्त दिलीपकुमार यादव ने आते ही सबसे पहले महापौर को झटका दे दिया है। यादव ने आने के बाद 15 दिन पहले चंदन नगर में बिना अनुमति के मुस्लिम नाम के गलियों के बोर्ड लगा देने के मामले में निलंबित किए गए दोनों इंजीनियरों को बहाल कर दिया। इसके साथ ही दोनों को कमाई वाले काम की पोस्टिंग भी दे दी। यह सब कुछ करने के दौरान महापौर से न तो चर्चा की गई और न ही उन्हें विश्वास में लिया गया। इस स्थिति का दर्द पिछली महापौर परिषद की बैठक में भी नजर आया। उस बैठक में महापौर ने खुद इन इंजीनियरों को बहाल कर दिए जाने के मामले पर अपनी नाराजगी जताई। अब इस नाराजगी को आयुक्त कितनी गंभीरता से लेते हैं इसका जवाब आने वाला वक्त देगा…

और आखिर में …
सराफा की चौपाटी को लेकर बात तो बहुत ज्यादा हो गई.. कमेटी भी बन गई, लेकिन नए स्वरूप में चौपाटी तैयार करने का काम नहीं हो पा रहा है। इसके पीछे कारण राजनीति है। अब महापौर और क्षेत्र की विधायक एक जाजम पर बैठें तो हो काम…
डा. जितेन्द्र जाखेटिया

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