ब्‍लॉगर

ताकि कड़ाके की सर्दी में न हो जरूरतमंदों की मौत

– योगेश सोनी

देश व दुनिया में राजनीतिक समीकरणों के बदलने के साथ मौसम भी बदल रहा है। हमारी विशेषता यह है कि हम किसी भी घटना व बदलते परिवेश के लिए हर वक्त तैयार रहते है लेकिन हमें इस बात के लिए भी तैयार रहना होगा कि इसबार सर्दी से किसी जरूरतमंद की जान न जाए। इसके लिए हमें सरकार व नेता से उम्मीद नहीं करनी और न ही उनपर निर्भर रहना है। केंद्र व राज्य सरकारें इस तरह की योजनाओं के लिए हर बार अथक प्रयास करते हुए गरीबों के लिए तमाम सुविधाओं की व्यवस्था करती है लेकिन इसके बाद भी हर साल ठंड से देशभर में बड़ी संख्या में लोगों की असमय मौत होती है। इसका कारण यह है कि या तो वो सरकार की सुविधाएं उनतक पहुंच नहीं पाती या फिर ऐसे लोग सुविधाओं तक नहीं पहुंच पाते।

देश में सर्दी ने दस्तक दे दी है। विभिन्न समाचार माध्यमों की सुर्खियां बदलने वाली है। हर रोज अखबार व चैनलों पर यह दिखाई व सुनाई देने ही वाला है कि कड़ाके की सर्दी से इतने लोगों की मौत, शासन लापरवाह व प्रशासन मौन आदि। लेकिन इसबार हम ऐसी खबरों को देखना नहीं चाहते। कोरोनाकाल से उपजी स्थिति के कारण यह संकट और भी गहरा हो सकता है। इससे निपटने एक रास्ता यह है कि इसबार आपको स्वयं को ही नेता, सरकार या गरीबों का मसीहा मानते हुए इस काम को अंजाम देना होगा। अपने पुराने या प्रयोग में न आने वाले कपड़े किसी को न तो बेचें और न फेकें। उन कपड़ों को राह चलते या किसी जरूरतमंद या किसी एनजीओ को दे दें।

जिन लोगों के पास कार है वे पुराने कपड़े अपनी कार में रखें व जहां भी रास्ते या अन्य स्थान पर किसी को ठंड से ठिठुरता दिखे तो उसे दें। इसके अलावा जो लोग बाकी साधनों का इस्तेमाल करते हैं वे अपनी सुविधा के मुताबिक कपड़ों का वितरण कर सकते हैं।

कई जगह देखा जाता है कि लोग पुराने कपड़े के बदले विभिन्न तरह के कांच और स्टील के बर्तन या अन्य छोटी-मोटी चीजें खरीदते हैं। वे ऐसा न करें व अपने मन से छोटा-सा लालच निकालते हुए किसी गरीब को कपड़े देने का प्रयास करें। जिन वस्तुओं को वो लेते हैं उनकी कीमत कपड़ों की कीमत की अपेक्षा बेहद कम होती है। गली-मोहल्ले में घूमने वाले इस तरह के फेरीवाले घरों से कपड़ा इकट्ठा कर उसे आगे बेच देते हैं। ऐसा करने से बेहतर है कि गरीब या जरूरतमंदों को कपड़े दिए जाएं। क्योंकि आपके दिये कपड़े से किसी की जान बच सकती है। आपके आसपास ही आसानी से वे लोग मिल जाते हैं जिन्हें हम इस तरह के कपड़े दे सकते हैं।

अक्सर कुछ लोगों को देखा है जो रात में अपने साथ कपड़े लेकर घूमते हैं जहां भी उन्हें जरूरतमंद लोग मिलते हैं, उन्हें कपड़े या कम्बल देकर चले जाते हैं। अधिकतर लोग ऐसे कामों के लिए अपनी व्यस्तता का हवाला देते हैं जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। इसमें दो राय नहीं कि आज हर किसी के पास समय की बेहद कमी है लेकिन मात्र कुछ समय निकालकर किसी की जान बचती है तो हमें यह जरूर करना चाहिए।

अधिकतर लोगों ने अपने समय का वर्गीकरण इस तरह कर रखा है कि उनके पास किसी अन्य चीजों के लिए समय ही नहीं है या यूं कहें कि इस व्यस्तता भरे जीवन में लोगों के पास अपने लिए भी समय नहीं बचा। खासतौर पर महानगरों में तो सूकून, चैन या आराम नाम की चीजें ही लोगों के जीवन से गायब हो गई हैं। लेकिन सोशल मीडिया पर किसी की ठंड से मौत होने की खबर पढ़कर या शेयर कर दुख जताने से बेहतर है कि आपके छोटे से प्रयास से यदि किसी की जान बच जाए तो निश्चित तौर पर स्वयं को भी अच्छा लगेगा। हम अधिकतर काम सरकार पर छोड़ देते हैं लेकिन कुछ स्वयं करें तो देश की दशा बदल सकती है। हमें अपने मन में एक छोटा-सा प्रण यह करना होगा कि हमारे आसपास भूख या ठंड से किसी की मौत न हो।

बहरहाल, गरीबों को ठंड से बचाने के लिए सरकार के साथ हर क्षेत्र की संबंधित एनजीओ व जनता को भी पहल करते हुए गरीब व जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए। आंकड़ों व खबरों पर गुस्सा निकालने की बजाय सब साथ काम करें। हम तीर्थस्थलों पर जाते हैं लेकिन यदि किसी की जिंदगी बचाकर या यूं कहें कि किसी को नई जिंदगी देकर उससे ज्यादा पुण्य यहीं कमा लें तो गलत नहीं होगा।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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