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क्‍यों रखा जाता है निर्जला एकादशी व्रत? पौराणिक कथा से जानें इसके पीछे की वजह

नई दिल्ली। हिंदू मान्यताओं के अनुसार ज्येष्ठ मास(Jyeshtha month) के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी का व्रत रखा जाता है। माना जाता है कि इस दिन बिना कुछ खाए पिए व्रत रखने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस साल निर्जला एकादशी 10 जून को है। निर्जला एकादशी व्रत(Nirjala Ekadashi) का संबंध द्वापर युग से है। महाभारत काल(Mahabharata period) में पांडवों से जुड़ी एक कथा है जिसमें निर्जला एकादशी का महत्व बताया गया है।

कहते हैं कि एक बार महर्षि वेदव्यास (Maharishi Ved Vyas) ने पांडवों समेत कुंती और द्रौपदी को हर एकादशी पर व्रत रखने के लिए कहा था। यह बात सुनकर पांडु पुत्र भीम चौंक गए। भीम ने महर्षि से कहा कि हर मास में दो बार एकादशी आती है, इस तरह एक वर्ष में 24 एकादशी आती हैं। भीम के लिए हर एकादशी पर व्रत रखना संभव नहीं था। क्योंकि उसके पेट में वृक नाम की अग्नि है, जो अत्यधिक भोजन ग्रहण करने के बाद भी शांत नहीं होती है।



भीमसेन ने कहा कि वह कुछ घंटे भी भूखे नहीं रह सकते तो हर एकादशी पर बिना कुछ खाए पिए व्रत कैसे रखेंगे। तब महर्षि वेदव्यास ने इसका समाधान बताया। उन्होंने कहा कि ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को तुम निर्जला व्रत रखना, इससे तुम्हें 24 एकादशी व्रत का पुण्य मिलेगा। भीम ने गुरु के कहे अनुसार बड़े साहस के साथ निर्जला एकादशी का व्रत रखा। मगर आखिर में वह मूर्छित हो गया। तब पांडवों ने गंगाजल छिड़ककर उसकी मूर्छा दूर की। इस तरह निर्जला एकादशी को भीमसेन एकादशी भी कहा जाने लगा।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। हम इसकी पुष्टि नहीं करते है। कोई भी सवाल हो तो अपने विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। )

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