नई दिल्ली । कांग्रेस (Congress) ने मंगलवार को दावा करते हुए अडानी ग्रुप (Adani Group) पर मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के धीरौली में कोयला खदान के लिए नियमों को दरकिनार कर बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई करने का आरोप लगाया और इसे पर्यावरणीय त्रासदी और स्थानीय आदिवासियों के लिए सामाजिक और आर्थिक आपदा बताया। यह आरोप पार्टी के संचार प्रभारी और महासचिव जयराम रमेश (Jairam Ramesh) ने लगाए, साथ ही कहा कि इस परियोजना के तहत पेड़ों की कटाई शुरू कर दी गई है तथा वहां बाहरी लोगों के प्रवेश पर भी रोक लगाई गई है। हालांकि कांग्रेस के लगाए आरोपों को राज्य सरकार ने पहले भी बेबुनियाद बताकर खारिज कर चुकी है।
कांग्रेस के संचार प्रभारी और महासचिव जयराम रमेश ने कहा, ‘हमने पहले भी मध्य प्रदेश के धीरौली में मोदानी एंड कंपनी द्वारा कोयला खदान के लिए जंगल कटाई में प्रक्रियागत नियमों को पूरी तरह दरकिनार करने का मुद्दा उठाया था। अब रिपोर्ट सामने आई हैं कि भारी पुलिस मौजूदगी में गांव में बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई शुरू कर दी गई है।’ मोदी सरकार ने यह आवंटन 2019 में ऊपर से थोप दिया था, और अब 2025 में आवश्यक कानूनी मंजूरी के बिना ही इसे तेजी से आगे बढ़ाया जा रहा है।
हमने पहले भी इस मुद्दे को उठाया था कि मध्य प्रदेश के धीराौली में मोदानी एंड कंपनी द्वारा कोयला खदान के लिए जंगल कटाई में प्रक्रियागत नियमों को पूरी तरह दरकिनार किया गया है। अब रिपोर्ट्स सामने आई हैं कि भारी पुलिस बल की मौजूदगी में गाँव में बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई शुरू कर दी… https://t.co/Kuou2axRyH
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) November 25, 2025
‘ग्रामीणों को जंगल में जाे से रोका जा रहा’
मंगलवार को ‘एक्स’ पर पोस्ट करते हुए उन्होंने लिखा, ‘स्थानीय ग्रामीणों को जंगल के इलाके के पास जाने से रोका जा रहा है और बाहरी लोगों के प्रवेश पर भी रोक लगाई गई है। मध्य प्रदेश आदिवासी कांग्रेस के अध्यक्ष रामू टेकाम को इस मुद्दे को उठाने पर गिरफ्तार कर लिया गया है। यह एक पर्यावरणीय त्रासदी और स्थानीय आदिवासी जनजातियों के लिए एक सामाजिक और आर्थिक आपदा है जो अपनी आजीविका के लिए जंगलों पर निर्भर हैं।’
दो महीने पहले भी लगाए थे आरोप
इससे पहले 12 सितंबर को रमेश ने आरोप लगाया था कि मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले में अदाणी समूह की धीरौली कोयला खदान परियोजना में वन अधिकार अधिनियम, 2006 (FRA) और पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 (पेसा) का उल्लंघन किया गया है। हालांकि, तब मध्यप्रदेश सरकार ने विपक्षी कांग्रेस के इस आरोप को खारिज कर दिया था।
रमेश ने तब सोशल मीडिया पर लिखा था, ‘मध्य प्रदेश के धिरौली में मोदानी ने अपनी कोयला खदान के लिए सरकारी और वनभूमि पर पेड़ काटना शुरू कर दिया है । जंगलों की यह कटाई बिना स्टेज-II फॉरेस्ट क्लियरेंस के और वनाधिकार अधिनियम, 2006 (FRA) व PESA, 1996 का घोर उल्लंघन करते हुए। गाँववाले, जिनमें ज़्यादातर अनुसूचित जनजाति समुदाय और यहां तक कि एक विशेष रूप से संवेदनशील जनजातीय समूह (PVTG) शामिल हैं, इसका उचित ही विरोध कर रहे हैं।’
रमेश ने कहा था-5वीं अनुसूची में आता है कोयला ब्लॉक
आगे उन्होंने लिखा था, ‘यह कोयला ब्लॉक पाँचवीं अनुसूची क्षेत्र में आता है, जहां आदिवासी अधिकार और स्वशासन के प्रावधान संवैधानिक रूप से सुरक्षित हैं। इन संरक्षणों को पूरी तरह नज़रअंदाज़ किया गया है – ग्राम सभा से कोई परामर्श नहीं किया गया, जबकि पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 और सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय स्पष्ट रूप से ग्राम सभा की सहमति को अनिवार्य ठहराते हैं।’
जयराम रमेश ने आगे कहा था, ‘वनाधिकार अधिनियम, 2006 के अनुसार, वनभूमि को गैर-वन उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल करने का फैसला ग्राम सभाएं करती हैं। लेकिन इस मामले में ग्राम सभा की मंजूरी को दरकिनार किया गया प्रतीत होता है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से लगभग 3,500 एकड़ प्रमुख वनभूमि के डायवर्ज़न के लिए स्टेज-II अनुमति अभी तक नहीं मिली है- फिर भी मोदानी ने वनों की कटाई शुरू कर दी।’
‘परियोजनाओं के कारण पहले उजड़े परिवारों को अब फिर से बेदखली का सामना करना पड़ रहा है – यानी दोहरा विस्थापन। इस परियोजना के लागू होने से महुआ, तेंदू, औषधियां, ईंधन लकड़ी – सब कुछ समाप्त हो जाएगा। इसका सीधा असर आदिवासी समुदायों की आजीविका पर पड़ेगा। वन सिर्फ़ आजीविका ही नहीं हैं, बल्कि स्थानीय आदिवासी समूहों के लिए आस्था और संस्कृति का प्रतीक हैं। क्षतिपूरक वनरोपण इसका कोई वास्तविक या पारिस्थितिक विकल्प नहीं हो सकता।’
‘2019 में थोपा और अब बिना मंजूरी आगे बढ़ाया जा रहा’
पूर्व पर्यावरण मंत्री ने तब यह भी दावा किया था कि, ‘मोदी सरकार ने यह आवंटन 2019 में ऊपर से थोप दिया था, और अब 2025 में आवश्यक कानूनी मंजूरी के बिना ही इसे तेजी से आगे बढ़ाया जा रहा है। तब मध्य प्रदेश सरकार ने कहा था कि प्रोजेक्ट को पर्यावरण मंत्रालय से फाइनल मंज़ूरी मिल गई थी।
रमेश के आरोपों को गलत बताते हुए, मध्य प्रदेश सरकार ने कहा था कि सभी जरूरी मंजूरी और प्रोसेस का ठीक से पालन किया गया है और केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने धीरौली प्रोजेक्ट के लिए स्टेज-II की मंजूरी (फाइनल मंजूरी) दे दी है।
रमेश ने अडानी ग्रुप के धीरौली कोयला माइनिंग प्रोजेक्ट के लिए मंजूरी प्रोसेस में साफ गड़बड़ियों के अपने आरोपों को दोहराया था और कोयला मंत्रालय के 2023 में लोकसभा में दिए गए जवाब का हवाला देते हुए दावा किया था कि यह प्रोजेक्ट संविधान के पांचवें शेड्यूल के तहत सुरक्षित इलाके में आता है।
पिछले हफ्ते रमेश के आरोपों का जवाब देते हुए, पर्यावरण मंत्रालय ने कहा था, “पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने स्टेज-I और स्टेज-II दोनों की मंज़ूरी सही तरीके से दी है। संवैधानिक सुरक्षा के उल्लंघन के आरोप असल में गलत और गुमराह करने वाले हैं।”
रमेश ने आरोप लगाया था कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय का उनके बयानों पर दिया वह जवाब झूठा था, जिसमें कहा गया था कि माइनिंग की जमीन संविधान के पांचवें शेड्यूल के तहत सुरक्षित इलाके में नहीं आती।
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