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बाल गंगाधर तिलक का सही मूल्यांकन नहीं हुआ : प्रोफेसर कुलदीप चंद

जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय के दीनदयाल उपाध्याय शोधपीठ के तत्वावधान में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की 100वीं पुण्यतिथि पर शनिवार को ‘लोकमान्य तिलक: व्यक्तित्व एवं कृतित्व’ विषय पर एक अंतरराष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया।

संगोष्ठी में विषय प्रवर्तन करते हुए हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने कहा कि लोकमान्य तिलक का सही मूल्यांकन नहीं हुआ। उन्होंने गीता को समकालिक समय के संदर्भ में पुनर्व्याख्यायित करते हुए कहा कि अधर्म का विरोध करने के लिये शस्त्र उठाना धर्म है।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के भारत अध्ययन केन्द्र शताब्दी पीठ के आचार्य प्रो. राकेश कुमार उपाध्याय ने लोकमान्य तिलक की राष्ट्रवाद की अवधारणा पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि उनका राष्ट्रवाद चतुषसूत्रीय था, जिसके चार आधार स्वदेशी, स्वावलंबन, राष्ट्रीय शिक्षा तथा स्वराज्य थे। महात्मा गाँधी ने लोकमान्य तिलक की ही अवधारणाओं को प्रायोगिक रूप प्रदान किया और स्वदेशी, असहयोग, सविनय अवज्ञा जैसे आंदोलन चलाये।

मॉरीशस के विश्व हिन्दी सचिवालय के महासचिव प्रो. विनोद कुमार मिश्र ने लोकमान्य तिलक की शिक्षा की अवधारणा पर कहा कि बिना अच्छी शिक्षा के किसी भी देश का अतीत, वर्तमान और भविष्य तीनों प्रश्नांकित रहते हैं। तिलक के बताए राष्ट्रवादी शिक्षा के रास्ते से ही भारत की गौरवशाली संस्कृति जीवित रह सकती है।

राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय दमन के प्राचार्य प्रो. संजय कुमार सत्यार्थी ने लोकमान्य तिलक के स्वदेशी आंदोलन को परवर्ती राष्ट्रीय आंदोलनों की नर्सरी बताया। उन्होंने कहा कि इससे देश को मानसिक स्वतंत्रता प्राप्त हुई। ओमपाल सिंह ने कहा कि हमें अपने अतीत से सीखने की जरुरत है। क्योंकि अतीत की बुनियाद पर ही भविष्य का निर्माण होता है।

भारतीय गाँधी अध्ययन संस्थान की अध्यक्ष प्रो. शीला राय ने कहा कि शिक्षा से बढ़कर कोई समाज सुधार नहीं है। तिलक जी ने कई शिक्षण संस्थाओं की स्थापना की। उन्होंने विधवा विवाह का समर्थन किया। बाल विवाह, दहेज प्रथा और अस्पृश्यता का पूर्ण विरोध भी किया।

जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय की कुलपति डा. कल्पलता पांडेय ने अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए कहा कि तिलक जी के विचारों को नयी और आधुनिक पीढ़ी को बताना चाहिए ताकि उनमें अपने राष्ट्र के प्रति और अपनी गौरवशाली परम्परा के प्रति गौरव का बोध जगे।

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