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आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी के मामले से 16वें जज ने भी स्वयं को अलग कर लिया

October 11, 2025


नैनीताल । आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी के मामले से (From the case of IFS officer Sanjiv Chaturvedi) 16वें जज ने भी स्वयं को अलग कर लिया (16th Judge also recused himself) ।

उत्तराखंड हाईकोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश, जस्टिस आलोक वर्मा ने चतुर्वेदी द्वारा दायर अवमानना याचिका की सुनवाई से स्वयं को अलग कर लिया है। यह याचिका केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) के सदस्यों और रजिस्ट्री के खिलाफ जानबूझकर नैनीताल उच्च न्यायालय के स्थगन आदेश की अवहेलना करने के आरोप में दायर की गई थी। सवाल यह है कि आखिर चतुर्वेदी को न्याय कहां और कैसे मिलेगा? यह मामला देश के न्यायिक इतिहास में रिकॉर्ड बन गया है, क्योंकि अब तक किसी एक व्यक्ति के मामलों से इतने अधिक न्यायाधीशों ने स्वयं को अलग नहीं किया था। सिर्फ 12 दिन पहले, नैनीताल उच्च न्यायालय के ही जस्टिस रवींद्र मैथानी ने भी चतुर्वेदी के एक मामले की सुनवाई से स्वयं को अलग करते हुए आदेश दिया कि “इस प्रकरण को ऐसे अन्य पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए, जिसका मैं (रवींद्र मैथानी, न्यायाधीश) सदस्य न हूं।”

गौरतलब है कि इन चारों न्यायाधीशों में से किसी ने भी अपने रिक्यूजल आदेश में कोई कारण नहीं बताया है। जस्टिस आलोक वर्मा का अचानक सुनवाई से अलग होना विशेष रूप से उल्लेखनीय है, क्योंकि वो 29 अगस्त तक मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंड पीठ में चतुर्वेदी के मामलों की सुनवाई कर रहे थे। उनके इस कदम ने न्यायिक और प्रशासनिक हलकों में जिज्ञासा और चर्चा को जन्म दिया है, क्योंकि इससे पहले भी कई न्यायाधीश बिना कारण बताए इस प्रकरण की सुनवाई से अलग हो चुके हैं।

यह इस वर्ष संजीव चतुर्वेदी के मामले में छठा न्यायिक रिक्यूजल है। फरवरी 2025 में केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) के दो सदस्य हरविंदर ओबेराय और बी. आनंद ने चतुर्वेदी के मामले की सुनवाई से स्वयं को अलग किया था, जबकि अप्रैल 2025 में नैनीताल एसीजेएम नेहा कुशवाहा ने भी उनके मामले की सुनवाई से स्वयं को अलग कर लिया था। इनके अलावा, उत्तराखंड उच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों द्वारा भी चतुर्वेदी के मामलों की सुनवाई से स्वयं को अलग कर लिया गया है।

अब तक संजीव चतुर्वेदी के मामलों की सुनवाई से कुल 16 न्यायाधीश स्वयं को अलग कर चुके हैं जिनमें दो सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस यू.यू. ललित, चार उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, दो निचली अदालतों के न्यायाधीश, तथा केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण के आठ सदस्य शामिल हैं, जिनमें एक कैट के अध्यक्ष भी रहे हैं। इस वर्ष अप्रैल 2025 में, अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नेहा कुशवाहा ने संजीव चतुर्वेदी द्वारा केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण के न्यायाधीश मनीष गर्ग के खिलाफ दायर मानहानि मामले की सुनवाई से स्वयं को अलग कर लिया था। इसका कारण उन्होंने कैट के ही एक अन्य न्यायाधीश डी.एस. माहरा से अपने “पुराने पारिवारिक संबंधों” को बताया था।

फरवरी 2025 में, कैट की एक खंड पीठ जिसमें हरविंदर ओबेराय और बी. आनंद शामिल थे, ने बिना किसी कारण का उल्लेख किए स्वयं को सुनवाई से अलग कर लिया था। इस क्रम में उन्होंने रजिस्ट्री को निर्देश दिया था कि भविष्य में चतुर्वेदी के मामले उनके समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध न किए जाएँ। यह पीठ उस समय चतुर्वेदी के वार्षिक मूल्यांकन रिपोर्ट को तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा द्वारा खराब किये जाने संबंधित मामले कि सुनवाई कर रही थी जब संजीव चतुर्वेदी ने एम्स दिल्ली में मुख्या सतर्कता अधिकारी रहते हुए भ्रष्टाचार के कई मामलों को उजागर किया था।

इससे पहले, वर्ष 2018 में, उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने आदेश दिया था कि तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा द्वारा संजीव चतुर्वेदी के वार्षिक मूल्यांकन रिपोर्ट को खराब किये जाने सेे संबंधित मामला केवल कैट की नैनीताल बेंच में ही सुना जाएगा ना कि दिल्ली बेंच में जैसा कि केंद्र सरकार चाह रही थी। इसके साथ ही उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार के रवैये को प्रथम दृष्ट्या प्रतिशोधात्मक बताते हुए केंद्र सरकार पर ₹ 25,000 का जुर्माना भी लगाया था। इस आदेश को सर्वोच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा और जुर्माने की राशि को बढ़ाकर ₹50,000 कर दिया था।

वर्ष 2021 में, उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने चतुर्वेदी के केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से संबंधित एक अन्य मामले में, जिसमें उन्होंने निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों की केंद्र सरकार में लेटरल एंट्री से जुड़ी अनियमितताओं को भी उजागर किया था, पर अपने पूर्व रुख को दोहराया। इस निर्णय को केंद्र सरकार ने पुनः सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। मार्च 2023 में, सर्वोच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने इस मामले को एक बड़ी पीठ के पास भेज दिया था ।

नवंबर 2013 में, सर्वोच्च न्यायालय के तत्कालीन न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई ने संजीव चतुर्वेदी द्वारा दायर एक मामले की सुनवाई से स्वयं को अलग कर लिया था। इस मामले में चतुर्वेदी ने हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और राज्य के अन्य वरिष्ठ राजनीतिज्ञों तथा नौकरशाहों की भ्रष्टाचार के विभिन्न मामलों में भूमिका की सीबीआई जांच की मांग की थी। साथ ही अपने ऊपर किए गए उत्पीड़न का भी उल्लेख किया था। बाद में, अगस्त 2016 में, सर्वोच्च न्यायालय केे ही एक अन्य न्यायाधीश यू.यू. ललित ने भी इस मामले की सुनवाई से स्वयं को अलग कर लिया था।

अप्रैल 2018 में, शिमला की एक अदालत के न्यायाधीश ने स्वयं को उस मानहानि मामले की सुनवाई से अलग कर लिया था, जिसे उस समय के हिमाचल प्रदेश के मुख्य सचिव विनीत चौधरी द्वारा संजीव चतुर्वेदी के खिलाफ दायर किया गया था। यह मानहानि मामला उस समय दायर किया गया था जब चतुर्वेदी ने सीवीओ, एम्स के रूप में अपनी जांच में पाए गए विनीत चौधरी के वित्तीय अनियमितताओं के मामलों की स्थिति रिपोर्ट हिमाचल प्रदेश सरकार को भेजी थी।

मार्च 2019 में, केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट), दिल्ली के तत्कालीन अध्यक्ष, जस्टिस एल. नरसिंहान रेड्डी ने संजीव चतुर्वेदी के विभिन्न स्थानांतरण याचिकाओं से संबंधित मामलों की सुनवाई से कुछ ‘दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं’ का हवाला देते हुए स्वयं को अलग कर लिया था। फरवरी 2021 में, केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण, दिल्ली के एक अन्य न्यायाधीश, आर.एन. सिंह ने भी संजीव चतुर्वेदी की केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से संबंधित मामले की सुनवाई से स्वयं को अलग कर लिया था।

नवंबर 2023 में, केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण के एक खंड पीठ, जिसमें मनीष गर्ग और छबीलेंद्र रौल शामिल थे, ने संजीव चतुर्वेदी के उस मामले की सुनवाई से स्वयं को अलग कर लिया था, जो मंत्रिमंडल की नियुक्ति संबंधी समिति से संयुक्त सचिव स्तर पर चतुर्वेदी के इम्पैनलमेंट से संबंधित दस्तावेजों की मांग से जुड़ा था। इस वर्ष जनवरी में, एक अन्य केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) के न्यायाधीश, जस्टिस राजीव जोशी ने भी चतुर्वेदी के केंद्र सरकार में लोकपाल में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति मामले की सुनवाई से स्वयं को अलग कर लिया था।

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