
नई दिल्ली । एनडीए (NDA )ने बिहार(Bihar) में ऐतिहासिक जीत हासिल की है, जिसने 243 सीटों वाली विधानसभा(Assembly) में 202 सीटों पर विजय फताका(Vijay Fataka) फहराया। भाजपा ने 2010 के बाद अपना सबसे अच्छा प्रदर्शन किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की डबल-इंजन सरकार को बिहार की जनता ने पसंद किया। ऐतिहासिक मतदाता भागीदारी में महिलाएं और युवा मतदाता प्रमुख समर्थक बने, जो जमीनी स्तर की कल्याण योजनाओं से प्रभावित थे। यह जीत मजबूत शासन, सीट बंटवारे सहित पॉलिटिकल इंजीनियरिंग और जंगलराज के भय से जोड़कर देखी जा रही है। बिहार में NDA की जीत को 5 बिंदुओं से समझते हैं…
सीट बंटवारे का फॉर्मूला
एनडीए की जीत में चुनाव से पहले सावधानीपूर्वक तैयार सीट बंटवारे के फॉर्मूले का बड़ा योगदान माना जा रहा है। इस गठबंधन में भाजपा, जेडीयू, एलजेपी (रामविलास), HAM और आरएलएम शामिल थे। भाजपा और जदयू ने 101 सीटों पर चुनाव लड़ा, जो समानता का प्रतीक बना। एलजेपी (रामविलास) ने 29 सीटें लीं। HAM ने 15 की मांग के बावजूद 6 पर संतुष्टि जताई। ऐसी सीटों पर जोर दिया गया जहां दलों की मजबूत उपस्थिति थी, जिससे वोट बंटवारा कम हुआ। जीतन राम मांझी ने पीएम मोदी के प्रति समर्थन जताया, जिससे जातिगत और क्षेत्रीय रेखाओं पर एकता सुनिश्चित हुई। इस फॉर्मूले ने पिछले विवादों से बचाया, संसाधनों का बेहतर उपयोग संभव हुआ और वोट शेयर को सीटों में तब्दील किया जा सका।
एनडीए की जीत में चुनाव से पहले सावधानीपूर्वक तैयार सीट बंटवारे के फॉर्मूले का बड़ा योगदान माना जा रहा है। इस गठबंधन में भाजपा, जेडीयू, एलजेपी (रामविलास), HAM और आरएलएम शामिल थे। भाजपा और जदयू ने 101 सीटों पर चुनाव लड़ा, जो समानता का प्रतीक बना। एलजेपी (रामविलास) ने 29 सीटें लीं। HAM ने 15 की मांग के बावजूद 6 पर संतुष्टि जताई। ऐसी सीटों पर जोर दिया गया जहां दलों की मजबूत उपस्थिति थी, जिससे वोट बंटवारा कम हुआ। जीतन राम मांझी ने पीएम मोदी के प्रति समर्थन जताया, जिससे जातिगत और क्षेत्रीय रेखाओं पर एकता सुनिश्चित हुई। इस फॉर्मूले ने पिछले विवादों से बचाया, संसाधनों का बेहतर उपयोग संभव हुआ और वोट शेयर को सीटों में तब्दील किया जा सका।
जंगलराज के वापसी की आशंका
एनडीए ने लालू-रबड़ी के शासनकाल को (1990-2005) को जंगलराज बताया। एक तरह से भय दिखाया गया। उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा के काफिले पर हमले जैसी घटनाओं को विपक्षी आरजेडी से जुड़े गुंडों हरकत करार दिया गया। भाजपा और जदयू की सरकार को सुशासन के तौर पर पेश किया गया। नेताओं की बयानबाजी ने उन लोगों को आकर्षित किया जो अस्थिरता से डरते थे। इसे मोदी और नीतीश के विकास वाले वादों के साथ मिलाया गया, जिससे एनडीए ने गुंडाराज के खिलाफ रक्षक के रूप में अपनी छवि बनाई।
जातिगत गठबंधन का विस्तार
एनडीए की इस जीत में जातिगत गठबंधनों के विस्तार का योगदान नजर आता है। MY (यादव-मुस्लिम) को आरजेडी का पक्षधर माना गया। मगर ME फैक्टर ने महिलाओं और ईबीसी (आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग) पर जोर दिया, जिससे एनडीए का वोट शेयर महागठबंधन के 38% के मुकाबले लगभग 49% हो गया। भाजपा ने ऊपरी जातियों को एकजुट किया। जेडीयू ने कुर्मी और ईबीसी को सुरक्षित किया। एलजेपी (रामविलास), राष्ट्रीय लोक मोर्चा और हम(एस) ने दलित व पिछड़े जातियों की अपील बढ़ाई। इसने आरजेडी के ब्लॉक को कमजोर कर दिया। एनडीए के पास अधिक एकजुटता नजर आई।
महिलाओं का जुड़ाव और कल्याण योजनाएं
बिहार चुनाव में महिलाएं निर्णायक रहीं, जिनका मतदान प्रतिशत सुपौल, किशनगंज और मधुबनी जैसे जिलों में पुरुषों से 10-20 प्रतिशत अधिक था। चुनाव आयोग ने महिलाओं को मतदान में मार्गदर्शन करने के लिए 1.8 लाख से अधिक जीविका दीदियों को स्वयंसेवक के रूप में तैनात किया। एनडीए की स्वयं-सहायता समूहों, आजीविका और सुरक्षा के लिए कल्याण योजनाओं ने महिलाओं को आकर्षित किया। 14 लाख से अधिक नए युवा मतदाताओं में से कई महिलाएं थीं, जिन्होंने एनडीए के आधार का विस्तार किया और जीत के लिए निर्णायक अंतर बनाया।
नीतीश कुमार के प्रति आभार
नीतीश कुमार के प्रति अपील और जेडीयू का मजबूत उभार देखने को मिला। उम्र और शासन संबंधी चिंताओं के बावजूद उन्हें अच्छे शासन का पर्याय माना गया। नीतीश के लिए ‘बिहार का मतलब नीतीश कुमार’ और ‘टाइगर अभी जिंदा है’ जैसे नारे काफी असरदार रहे। भाजपा के साथ समान सीट बंटवारे ने जेडीयू के आत्मविश्वास को दर्शाया, जो भाजपा आलाकमान के रहते हुए हुआ। नीतीश कुमार की कल्याणकारी योजनाओं और जाति-संतुलन ने विश्वास को मजबूत किया। इस तरह बिहार के मतदाताओं के एक बड़े वर्ग का सीएम नीतीश और पीएम मोदी को साथ मिला।
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