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शोध में खुलासा, 5 वर्ष तक गंगाजल में विद्यमान रहते हैं जीवाणुरोधी औषधीय गुण

हरिद्वार । मोक्ष और जीवनदायनी गंगा नदी के जल पर हुए शोध ने एक बार फिर गंगाजल के महत्व को प्रमाणित किया है। गुरुकुल कांगडी समविश्वविद्यालय के वनस्पति एवं सूक्ष्म जीव विज्ञान विभाग में गंगाजल पर शोध हुआ है। इस शोध का निष्कर्ष है कि पांच वर्ष तक गंगाजल में जीवाणुरोधी औषधीय गुण विद्यमान रहते है। कुलपति प्रो. रूपकिशोर शास्त्री और कुलसचिव प्रो. दिनेश चन्द्र भट्ट ने विभागाध्यक्ष प्रो. आरसी दुबे के मार्गदर्शन में छात्रा शिवानी त्यागी के इस अध्ययन पर आधारित गंगाजल के मूल्यांकन पर खुशी जताई है।

हरिद्वार और ऋषिकेश के गंगाजल पर हुआ शोध
प्रो. दुबे ने बताया कि शोध में हरिद्वार एवं त्रिवेणी घाट ऋषिकेश के गंगाजल को शामिल किया गया। गंगाजल का तापमान शीतकाल से ग्रीष्मकाल में एक क्रम से बढ़ता है। गंगा की धारा का प्रवाह दर निचले तल (हरिद्वार) की अपेक्षा ऊपरी तल (ऋषिकेश) पर अधिक होता है।

शुद्धता के लिए सतत प्रवाह जरूरी
प्रो. दुबे का कहना है कि गंगाजल का प्रवाह जितना अधिक होगा, वह उतना ही शुद्ध एवं पवित्र होगा। इसलिए गंगा का अबाध प्रवाह जरूरी है। गंगाजल में कोलिफोर्म नामक जीवाणु पाये जाते हैं। शोध में मानकों के अनुसार इनकी संख्या सीमा के अंदर मिली। गंगाजल की गुणवत्ता जल की डीओ, बीओडी, सीओडी जल प्रवाह दर एवं अकार्बनिक रसायनों पर भी निर्भर करती है।

मानकों में गंगाजल खरा
शोध छात्रा शिवानी त्यागी ने विभाग की प्रयोगशाला में जीवाणुरोधी गुण, विषाणु पृथककरण, मिलीपोर फिल्टर, गंगाजल और आंत्रीय जीवाणु का अध्ययन किया। शिवानी का कहना है कि हरिद्वार और ऋषिकेश में गंगा का पानी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुरूप पीने योग्य है। शोध में इन मानकों का पूरा ध्यान रखा गया।

शोधार्थी के दावे का आधार
शिवानी ने बताया कि शोध में पाया गया कि घुलित आक्सीजन (डीओ) एवं जल प्रवाह दर जितना अधिक होगा, जैविक एवं रसायनिक आक्सीजन मांग (बीओडी, सीओडी) उतनी ही कम होगी, जिसके कारण जल में अकार्बनिक रसायन एवं सूक्ष्मजीवों की संख्या कम हो जाती है, जिसकी पुष्टि किए गए शोध में भौतिक, रसायन मानको एवं सूक्ष्मजीव वैज्ञानिक मानकों का डब्ल्यूक्यूआई, कोरिलेशन कोफिशियेन्ट, डेन्ड्रोग्राम, पीसीए द्वारा की गई। गंगाजल की जीवाणुरोधी क्षमता गंगाजल में उपस्थित विशेष प्रकार के बेक्टीरियोफाज (विषाणु) एवं एक जैव रसायन ”थायोपेस्टाइड्स“ के कारण होती है। शोध में आंत्रीय रोगजनक जीवाणुओं को नष्ट करने वाले बैक्टीरियोफाज का पृथककरण किया गया, जिसमें अन्य विषाणुओं के अतिरिक्त ई. कोलाई बैक्टिरियोफाज, सालमोनेला टाइफी बैक्टिरियोफाज एवं क्लेबसिऐला न्यूमोनी बैक्टिरियोफाज प्रमुख थे। विशेष तरह के विषाणुओं की उपस्थिति गंगाजल को शुद्धता प्रदान करती है।

ऋग्वेद में गंगाजल का महत्व
ऋग्वेद के अनुसार गंगा नदी में स्नान करने से मनुष्यों के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं एवं सभी प्राणी रोगमुक्त हो जाते हैं। यह पाप वस्तुतः शरीर के बाहर और अंदर पाये जाने वाले पीड़ादायी जीवाणु होते हैं। विशेष प्रकार के गुणों से परिपूर्ण होने के कारण गंगा नदी का वैज्ञानिक महत्व भी है।

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